भदावरी भैंस:अधिक घी उत्पादन के लिए उत्तम नस्ल

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भदावरी भैंस:अधिक घी उत्पादन के लिए उत्तम नस्ल

डेयरी व्यवसाय में अधिक मुनाफ़ा कमाने के लिए दूध की प्रोसेसिंग कर पनीर या घी के रूप में बेचा जाता है, जिससे दूध बेचने की तुलना में अधिक मुनाफा कमाया जाता है। भारतीय डेरी व्यवसाय में घी का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत में प्रोसेसिंग होने वाले दूध की सबसे ज्यादा मात्रा घी में परिवर्तित की जाती हैं। भारत में भैसों की लगभग 23 नस्लें है जिनमे से 16 नस्लों को राष्ट्रीय पशु अनुवंशिक संस्थान ब्यूरो (NBAGR) द्वारा मान्यता प्रदान की गई है। पंजीकृत नस्लों में से भदावरी एक महत्वपूर्ण नस्ल है क्योंकि ये अपने दूध में सबसे ज्यादा वसा यानी फैट के लिए प्रसिद्ध है। भदावरी भैंस के दूध में औसतन 8% वसा पाई जाती है, जो देश में पाई जाने वाली भैंस की किसी भी नस्ल से अधिक है। भारत सरकार द्वारा भदावरी नस्ल के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी में एक परियोजना चलाई जा रही है। परियोजना के तहत रखे गए भदावरी भैंस के दूध में 14 % तक भी वसा पाई गई है।

भदावरी भैंस के दूध का औसत संगठन

  • वसा — 8.2% (6-14 %)
  • कुल ठोस तत्व — 19%
  • प्रोटीन — 4.11%
  • कैल्सियम — 205.72 मिग्रा./100 मिली.
  • फास्फोरस — 140.9 मिग्रा./100 मिली.
  • जिंक — 3.82 माइक्रो ग्रा./मिली.
  • कॉपर — 0.24 माइक्रो ग्रा./मिली.
  • मैग्नीज — 0.117 माइक्रो ग्रा./मिली.

प्राप्ति स्थल

यह प्रजाति यमुना तथा चम्बल के दोआब में पायी जाती है, मुख्यतया उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश में पायी जाती है। वर्तमान में इस नस्ल की भैसें आगरा की बाह तहसील, भिण्ड के भिण्ड तथा अटेर तहसील, इटावा (बढ़पुरा, चकरनगर), ओरैय्या तथा जालौन जिलों में यमुना तथा चम्बल नदी के आस-पास के क्षेत्रों में पाई जाती है। इसका नाम आजादी से पहले भदावर रियासत के नाम पर पड़ा, आजादी से पूर्व इटावा, आगरा, भिण्ड, मुरैना तथा ग्वालियर जनपद में कुछ हिस्सों को मिलाकर एक रियासत थी जिसे भदावर कहते थे।

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पहचान एवं विशेषताएं

यह प्रजाति माध्यम आकर और तिकोना शरीर लिए हुए होती है। यह आगे से पतली और पीछे से चौड़ी होती है। रंग काला तांबिया होता है, टांगे छोटी तथा मजबूत होती है, घुटने से नीचे का हिस्सा गेंहुए रंग का होता है तथा शरीर पर बाल कम होते है। सिर के अगले हिस्से पर आँखों के ऊपर वाला भाग सफेदी लिए हुए होता है। गर्दन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती है जिन्हें कंठ माला या जनेऊ कहते है। सींग तलवार के आकर के होते हैं तथा मुड़े हुए हल्के बाहर की और निकले हुए होते हैं। पूँछ लम्बी घनी होती है, कभी कभी भूरी व सफेद सिरे पर गुच्छे होते हैं। अयन का रंग गुलाबी होता है, अयन कूप छोटा अल्प विकसित होता है और थन नुकीले होते हैं। इस नस्ल के वयस्क पशुओं का औसतन भार 300-400 किग्रा. होता है। छोटे आकार तथा कम भार की वजह से इनकी आहार आवश्यकता भैंसों की अन्य नस्लों (मुख्यतया मुर्रा, नीली रावी, जाफरावादी, मेहसाना आदि) की तुलना के काफी कम है जिससे इसे कम संसाधनों में गरीब किसानों पशुपालकों भूमिहीन कृषकों द्वारा आसानी से पाला जा सकता है।

उत्पादन स्तर

हालांकि भदावरी भैसों मुर्रा भैंसों की तुलना में दूध उत्पादन थोड़ा कम होता है पर दूध में वसा का अधिक प्रतिशत, विषम परिस्थितियों में रहने की क्षमता, बच्चों में कम मृत्यु दर, छोटा शरीर जिस वजह से कम आहार आवश्यकता आदि गुणों के कारण यह नस्ल किसानों में काफी लोकप्रिय है। भदावरी भैंस औसतन 5-6 किग्रा. दूध प्रतिदिन देती, लेकिन अच्छे पशु प्रबंधन द्वारा प्रतिदिन अधिक दूध प्राप्त किया जा सकता है। भदावरी भैसें एक ब्यांत (लगभग 290 दिन) में औसतन 1450 किग्रा. दूध देती हैं हालांकि अच्छे प्रबंधन द्वारा 1800 किग्रा. तक दूध प्राप्त किआ जा सकता है।

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नस्ल की देख रेख 

  • शैड की आवश्यकता: अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए।
  • गाभिन पशुओं क देखभाल: अच्छे प्रबंधन का परिणाम अच्छे कटड़े में होगा और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है। गाभिन भैंस को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वे शारीरिक रूप से भी बढ़ती है।
  • कटड़ों की देखभाल और प्रबंधन: जन्म के तुरंत बाद नाक या मुंह के आस पास चिपचिपे पदार्थ को साफ करना चाहिए। यदि कटड़ा सांस नहीं ले रहा है तो उसे दबाव द्वारा बनावटी सांस दें और हाथों से उसकी छाती को दबाकर आराम दें। शरीर से 2-5 सैं.मी. की दूरी पर से नाभि को बांधकर नाडू को काट दें। 1-2 प्रतिशत आयोडीन की मदद से नाभि के आस पास से साफ करना चाहिए।
  • सिफारिश किए गए टीके: जन्म के 7-10 दिनों के बाद इलैक्ट्रीकल ढंग से कटड़े के सींग दागने चाहिए। 30 दिनों के नियमित अंतराल पर डीवार्मिंग देनी चाहिए। 2-3 सप्ताह के कटड़े को विषाणु श्वसन टीका दें। क्लोस्ट्रीडायल टीकाकरण 1-3 महीने के कटड़े को दें।

भदावरी भैंस का औसत उत्पादन स्तर Average Milk Production

  • प्रतिदिन दुग्ध उत्पादन (Daily Milk Production) —   4-5 किग्रा.
  • प्रति ब्यांत दुग्ध उत्पादन (Lactation Yield)  —   1430 ली.
  • ब्यांत की औसत अवधि (Lactation Length) —-  290 दिन
  • दो ब्यांत का अंतर (Calving Interval)  —–    475 दिन
  • पहले ब्यांत के समय औसत उम्र (Age at First Calving)  —-   47 महीने
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भदावरी नस्ल की भैंसों के दूध में अधिक मात्र में वसा (फैट) होने की वजह से भदावरी नस्ल घी उत्पादन हेतु पालने हेतु उचित नस्ल है। यह नस्ल उन क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त है जहां आवागमन एवं दुग्ध संरक्षण की उचित सुविधाएँ नहीं है जिससे दूध बेचने के बजाय दूध से घी निकालकर महीने में एक या दो बार शहर ले जाकर बेचा जा सकता है। साथ ही घी जल्दी से खराब होने वाला उत्पाद भी नहीं है इसलिए महीनों तक रखा जा सकता है इसलिए मजबूरी में कम दाम पर बेचने की आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि भैंस का दूध A2 Milk होता है तो आजकल शहरों में A2 घी के रूप में अधिक कीमत में बेच सकते है और किसान भाई अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

https://www.krishisewa.com/articles/livestock/66-bhadawari_bhans.html

 

https://www.pashudhanpraharee.com/importance-of-milk-productsvalue-addition-milk-processing/

डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश

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