नवजात बछड़े की देखभाल एवं रखरखाव की जरुरी बातें

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CARE OF CALVES
CARE AND MANAGEMENT OF CALVES

नवजात बछड़े की देखभाल एवं रखरखाव की जरुरी बातें

डॉ० विपिन सिंह 1, डॉ० मोहित महाजन 2, डॉ० अखिल पटेल,3 डॉ० शिव प्रसाद4

 

भारतीय अर्थव्यस्था में पशुपालन का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है, खासकर ग्रामीण किसानो की आय का प्रमुख स्रोत पशुपालन ही है। पशुओ में मुख्यतः गोवंशीय एवं महिषवंशीय पशुओ से प्रोटीन का श्रोत दूध तथा दूध से बने उत्पाद, मांस तथा मांस से बने उत्पाद तथा चमड़े से बने उपयोगी उत्पाद इत्यादि की प्राप्ति होती है जो की आम जन मानस के लिए अत्यंत ही उपयोगी है। पशुओं की नयी पीढ़ी उनके बछड़ो (शावक) से तैयार होती है परन्तु यदि इन नवजात बछड़ो की उचित देखभाल न की जाये तो इनकी मृत्युदर में बृद्धि हो सकती है जिससे किसान को अर्थिंक और पशुधन की हानि हो सकती है।

किसान भाई या पशुपालक निम्न बातों को ध्यान में रखकर नवजात बछड़े को एवं पशुधन की हानि से बचा जा सकता है:

जन्म के समय नवजात बछड़े की देखभाल कैसे करें :

  • जन्म का समय करीब आने पर मादा गर्भित पशु का विषेश ध्यान रखना चाहिए, क्यों कि कभी कभी सामान्य जन्म होने में समस्या हो जाती है और इसमे नवजात शावक के मृत्यु के आसार बढ़ जाते हैं।
  • इस जन्म लेने की समस्या में बाधा से निपटने के लिए यदि मादा पशु के बार बार जोर लगाने और एक घंटे से अधिक का समय ले तो तत्काल किसी पंजीकृत पशुचिकित्सक की मदत लेकर इस समस्या से बचा जा सकता है। इसमे जच्चा और बच्चा बिना किसी हानि के सुरक्षित हो जायेंगे।

 

नवजात में होने वाली प्रमुख समस्याए एवं निदान :

  • जन्म के समय नवजात बछड़े में चोट लगने तथा यदि कठिन ब्यात हो रहा हो तो आक्सीजन की कमी के कारण स्वसन क्रिया में परेशानी बढ़ सकती है । इस समस्या से निदान के लिए ब्यात के पश्चात मादा पशु को उसके शावक को चाटने देना चाहिए तथा उसके नाक तथा मुह से तरल चिपचिपे पदार्थ को निकाल देना चाहिए और उसके शरीर को रगड़ना चाहिए जिससे उसके शरीर का तापमान कम नही होगा तथा उसे श्वसन क्रिया में आसानी होगी ।
  • सुस्तपन का होना सामन्यता बछड़े को १ घंटे की भीतर खड़ा हो जाना चाहिए यदि बछड़ा खड़े होने में देरी लगाये और दूध पीने में रुची ना दिखाए तो ये सुस्तपन का संकेत है ।
  • सुस्तपन बछड़े में प्रमुख कारणों से हो सकता है जैसे की खून में आक्सीजन की कमी जिससे पेट में अम्लता बढती है , खून में ग्लूकोज की कमी इत्यादि।
  • इन सब कारणों के चलते शावक माता का प्रथम दूध जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं उचित मात्रा में नही पी पाता जिससे रोग प्रतिरोधक छमता कारक जिसे इमुनोग्लोबुलिन कहते हैं शरीर में नही पहुचता और बछड़े को बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है ।
  • इसीलिए जन्म के एक घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम का पिलाना अत्यंत ही आवश्यक होता है, जिससे शावक की रोग प्रतिरोधक छमता में बृद्धि होती है और बीमारी के आने का खतरा टल जाता है।
  • सुरुआत में शावक को माँ का दूध थन से पीने देना चाहिए तथा धीरे धीरे उसे बोतल से दूध पीने की आदत दिलानी चाहिए जिससे उसे जरुरत के हिसाब से संतुलित मात्रा में दूध पिलाया जा सके।
  • बछड़े के साथ साथ उसकी माँ को थनेला रोग न हो उसका भी ध्यान देना चाहिए वरना दूध की गुडवत्ता प्रभावित होगी जो की बछड़े और जन मानस दोनों के लिए ही हानिकारक है ।
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१ से १० दिन के बछड़े का संवर्धन :

  • जन्म के तुरंत बाद बछड़े का वजन लेना आवश्यक होता है जिससे की भविष्य में उम्र के साथ बृद्धि दर सुचारू हो रही है यां नही इसका अंदाजा आसानी से लग जाता है और महत्वपूर्ण उपाय किये जा सकते हैं।
  • जन्म के पश्चात शावक की नाभि नली को लगभग उपर से दो इंच दूर किसी साफ अवजार से काटकर उस पर ३.५  प्रतिशत या अधिक सांद्रता वाले टिंचर आयोडिन नामक संक्रमण रोकने की दवा से साफ ३० सेकेंड तक  डुबाकर रखना चाहिए जिससे नाभि के पकने वाली बीमारियों तथा ज्वर (नेवल इल) से बचा जा सकता है। और इस प्रक्रिया को १२ घंटे के उपरांत दोहराना चाहिए ।
  • नवजात बछड़ी को जन्म के २ घंटे की भीतर २ लीटर खीस तथा १२ घंटे के भीतर १ से २ लीटर वजन के अनुसार खीस पिलाना चाहिए जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है।
  • मादा पशु तथा शावक को सामान्य गर्म हवादार तथा स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए और उसके बिछावन के लिए सूखे घास का प्रयोग करना चाहिए तथा समय समय पर इसे बदलते रहना चाहिए।
  • बछड़ी के रखने के स्थान को रोजाना साफ करना चाहिए तथा वहा निसंक्रामक दवा का छिडकाव करना चाहिए जिससे हानिकारक जीवाणुओं तथा मक्खियों से फैलने वाले रोग से उसे बचाया जा सके ।
  • जन्म के पश्चात बछड़ी को पेट के कीड़े तथा दस्त जिसे काफ स्कावर बीमारी भी बोलते है के होने का भय रहता है जिसमे कभी-कभी बछड़े की मृत्यु भी हो जाती है और किसान को आर्थिक और पशुधन की हानि होती है
  • बछड़ी के पेट के कीड़े में मुख्य गोल क्रिम नामक कीड़ा पाया जाता है जिससे बचने के लिए पशुचिकित्सक से परामर्श लेकर पेट के कीड़े की दवा समय समय पर देते रहना चाहिए।
  • प्रथम क्रिमनाशक दवा १० से १४ दिनों के भीतर देना चाहिए उसके बाद बछड़ी को हर महीने एक बार ६ माह तक क्रिमनाशक दवा देना चाहिए ।
  • पशुचिकित्सक से सलाह लेकर विटामिन- E , सेलेनियम ,विटामिन A और D का इंजेक्शन लगवाना चाहिए जिससे बिमारियों से उसे बचाया जा सके।
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१ माह के बछड़े का संवर्धन:

  • बछड़ी की सींग को जड़ से निकलवा देना चाहिए जिससे उसके टूटने, सींग के कैंसर रोग तथा घाव होने का खतरा नही रहता है।

२ से ६  माह के बछड़े का संवर्धन :

  • सामान्यता बछड़ी को ४ से ८ सप्ताह की उम्र में माँ का दूध छुडा देना चाहिए परन्तु इसके पहले यह ध्यान रखना चाहिए की बछड़ा स्वस्थ है, तथा ०.५ से ०.८ किग्रा. दान खाने योग्य हो गया हो ।
  • नियमित अंतराल पैर बछड़ी का वजन लेना चाहिए और शारीरिक बृद्धि को देखना चाहिए की सुचारू है या नही।
  • पेट के कीड़े की दवा समय समय पर देना चाहिए ।
  • पशुचिकित्सक के परामर्श से बछड़ी में लंगड़ा बुखार, ब्रुसेला तथा थैलेरिया जैसी घातक और जानलेवा बिमारियों से बचने के लिए समयानुसार टीका (वैक्सीन) लगवाना चाहिए।
  • इन सभी जरुरी बातों को ध्यान में रखकर किसान भाई अपने पशुधन को बचा सकते हैं और उनसे लाभदायक उत्पाद प्राप्त कर सकते हैं जिससे उन्हें आर्थिक लाभ भी होगा और पशुधन भी लाभान्वित होगा ।

 

 

Authors Detail

  • डॉ० विपिन सिंह
    टीचिंग परसनल , मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग. जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)
  • डॉ० मोहित महाजन
    पी.एच.डी. स्कॉलर मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग.  जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)
  • डॉ० अखिल पटेल,

सहायक प्राध्यापक, मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग , यस. वी. पी. यू. ए. टी. मेरठ (उत्तर प्रदेश)

  • डॉ० शिव प्रसाद

प्राध्यापक  मादा रोग एवं प्रसूति विज्ञान विभाग. जी. बी. पी. यू. ए. टी. पंत नगर (उत्तराखंड)

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