समृद्ध गौ संवर्धन ,गोपालन एवं गोशाला प्रबंधन

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समृद्ध गौ संवर्धन ,गोपालन एवं गोशाला प्रबंधन

 

गाय अपनी स्वस्थ अवस्था में हमें अमृत समान दूध देती है, खेती के लिए बैल देती है, ईधन के लिए गोबर देती है और जिसका मूत्र औषधियों में काम आता है। उसी गाय को लोग वृद्ध होने पर जंगल में छोड़ देते है। जहां से उसे कुछ लोग पकड़कर बूचड़खानों में कत्ल होने के लिए बेच देते है। कई बार ऐसी गायों को सीधे ही बूचड़खानों में भेजे जाने के लिए बेच दिया जाता है। इस प्रकार की गायो को पुलिस पकड़ कर गौशाला में लाती है। गौशाला में सभी गायो की सेवा कर एवं दवाई इत्यादि देकर उनकी सम्पूर्ण देखरेख प्रारम्भ हो जाती है।

मानवीय आधार पर ऐसी गायों का शेष जीवन भी शांतिपूर्वक गुजरे और गायों की देखभाल के लिए गौशाला में इस भावना के साथ गौशाला का संचालन किया जाता रहा है। गौशाला में उन गायों को रखा जाता है, जो दूध नही देती, जिन्हें उनके मालिकों द्वारा छोड़ दिया जाता है या जिन्हे बूचडखाने ले जाने से बचाया जाता है।

गौ सेवा के लाभ

  • गौ माता जिस जगह खड़ी रहकर आनंदपूर्वक चैन की सांस लेती है । वहां वास्तु दोष समाप्त हो जाते हैं ।
  • गौ माता में तैंतीस कोटी देवी देवताओं का वास है ।
  • जिस जगह गौ माता खुशी से रभांने लगे उस देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।
  • गौ माता के गले में घंटी जरूर बांधे ; गाय के गले में बंधी घंटी बजने से गौ आरती होती है ।
  • जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है ।
  • गौ माता के खुर्र में नागदेवता का वास होता है । जहां गौ माता विचरण करती है उस जगह सांप बिच्छू नहीं आते ।
  • गौ माता के गोबर में लक्ष्मी जी का वास होता है ।
  • गौ माता के मुत्र में गंगाजी का वास होता है ।
  • गौ माता के गोबर से बने उपलों का रोजाना घर दूकान मंदिर परिसरों पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता है सकारात्मक ऊर्जा मिलती है ।
  • गौ माता के एक आंख में सुर्य व दूसरी आंख में चन्द्र देव का वास होता है ।
  • गाय इस धरती पर साक्षात देवता है ।
  • गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है । मनोकामना पूर्ण करने वाली है ।
  • गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगों की क्षमता को कम करता है ।
  • गौ माता की पूंछ में हनुमानजी का वास होता है । किसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पूंछ से झाड़ा लगाने से नजर उतर जाती है ।
  • गौ माता की पीठ पर एक उभरा हुआ कुबड़ होता है । उस कुबड़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है । रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबड़ में हाथ फेरने से रोगों का नाश होता है ।
  • गौ माता का दूध अमृत है ।
  • गौ माता धर्म की धुरी है ।
    गौ माता के बिना धर्म कि कल्पना नहीं की जा सकती ।
  • गौ माता जगत जननी है ।
  • गौ माता पृथ्वी का रूप है ।
  • गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है । गौ माता के बिना देवों वेदों की पूजा अधुरी है ।
  • एक गौ माता को चारा खिलाने से तैंतीस कोटी देवी देवताओं को भोग लग जाता है ।
  • गौ माता से ही मनुष्यों के गौत्र की स्थापना हुई है ।
  • गौ माता चौदह रत्नों में एक रत्न है ।
  • गौ माता साक्षात् मां भवानी का रूप है ।
  • गौ माता के पंचगव्य के बिना पूजा पाठ हवन सफल नहीं होते हैं ।
  • गौ माता के दूध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।
  • गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है । उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती ।
  • तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है । वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौ लोकधाम में वास मिलता है ।
  • गौ माता के गोबर से ईंधन तैयार होता है ।
  • गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यों की आराध्य है; इष्ट देव है ।
  • साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है ।
  • गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है ।
  • गौ माता में दिव्य शक्तियां होने से संसार का संतुलन बना रहता है ।
  • गाय माता के गौवंशो से भूमि को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है ।
  • गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है । गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है ।
  • जहां गौ माता निवास करती है वह स्थान तीर्थ धाम बन जाता है ।
  • गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तीर्थो के पुण्यों का लाभ मिलता है ।
  • जिस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली में गुड़ को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड़ को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है ।
  • गौ माता के चारो चरणों के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है ।
  • गाय माता आनंदपूर्वक सासें लेती है; छोडती है । वहां से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है ।
  • गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे ।
  • गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लिये हैं ।
  • जब गौ माता बछड़े को जन्म देती तब पहला दूध बांझ स्त्री को पिलाने से उनका बांझपन मिट जाता है ।
  • स्वस्थ गौ माता का गौ मूत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपड़े में छानकर सेवन करने से सारे रोग मिट जाते हैं ।
  • गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जिसे भी देखती है उनके ऊपर गौकृपा हो जाती है ।
  • गाय इस संसार का प्राण है ।
  • काली गाय की पूजा करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं । जो ध्यानपूर्वक धर्म के साथ गौ पूजन करता है उनको शत्रु दोषों से छुटकारा मिलता है ।
  • गाय धार्मिक ; आर्थिक ; सांस्कृतिक व अध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन् ।

सिर्फ गाय का गोबर ही आपको लखपति बना देगा, जानिए आपको क्या करना है…

  • गोबर से बने उपलों का उपयोग विभिन्न मांगलिक कार्यों में किया जाता है. यही वजह है कि ऑनलाइन बाजार में इसकी खासी मांग बढ़ी है.
  • गाय के गोबर से लेकर उससे बना उपला, जिसे गोइठा और कंडा भी कहते हैं, ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर अपनी जगह बना चुका है. ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स इन कंडों को भी शानदार पैकिंग में होम डिलीवरी कर रही हैं. ईबे, शॉपक्लूज, वेदिक गिफ्ट शॉप, अमेजन आदि कई साइट्स पर कंडे बिक रहे हैं,
  • जहां ऑर्डर करने पर कुछ ही दिनों में उसकी डिलीवरी हो जायेगी. यही नहीं, ग्राहकों की सहूलियत के लिए कई साइट्स पर इन उपलों के आकार और वजन का भी ब्यौरा मौजूद है़ इन साइट्स पर एक दर्जन उपलों का मूल्य एक सौ रुपये से लेकर तीन सौ रुपये तक है.
  • दो दर्जन मंगवाने पर इन पर डिस्काउंट भी दिया जा रहा है. त्यौहारी मौसम में इन उपलों पर कई डिस्काउंट ऑफर भी दिये जाते हैं. यहां आपको उपलों की कीमत भले ही थोड़ी ज्यादा लगे, लेकिन इसके आध्यात्मिक इस्तेमाल को देखते हुए यह कीमत कुछ भी नहीं.
  • धार्मिक कार्यों में गाय के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है. गाय के गोबर से बने उपले से हवन कुंड की अग्नि जलायी जाती है. आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठ कर गाय के गोबर से घर के मुख्य द्वार को लीपती हैं.
  • इंटरनेट पर आपको ऐसी कई वेबसाइट्स मिल जायेंगी, जो सिर्फ गौ-उत्पाद आपके द्वार तक पहुंचाने की सुविधा देती हैं. इन्हीं में से एक है ‘गौक्रांति डॉट ओआरजी’ इस साइट पर आपको गाय का गाेबर और उससे बने उपले, साबुन, भगवान की मूर्तियां, ऑर्गैनिक पेंट, हवन के लिए धूप के अलावा परिष्कृत गौमूत्र भी उपलब्ध है. यह कंपनी अपना कच्चा माल गुजरात से लेकर भोपाल तक की लगभग 15 गौशालाओं से मंगवाती है़
  • गाय के गोबर के उपलों का व्यापार अब वैश्विक आकार ले चुका है और खुदरा विक्रेताओं के पास इसकी डिलीवरी के लिए बड़े पैमाने पर ऑर्डर आ रहे हैं. तेजी से शहरी होती जा रही देश की आबादी के लिए अब यह सब दुर्लभ होता जा रहा है. यही वजह है कि देश और देश के बाहर खास अवसरों पर इन उपलों की मांग बढ़ रही है.
  • इस लिए आप भी इसका बिज़नेस शुरू कर सकते है . अगर आप गांव में रहते है तो आप को गोबर भी आसानी से मिल जएगा. गोबर को ऑनलाइन बेचने के लिए आप या तो अपनी खुद की वेबसाइट जैसे “गौक्रांति डॉट ओआरजी” बना सकते है . जा फिर जो पॉपुलर वेबसाइट जैसे ईबे, शॉपक्लूज, वेदिक गिफ्ट शॉप, अमेजन आदि है वहां पर सेलर बन कर बेच सकते है .सेलेर बनने के लिए हर वेबसाइट की अलग अलग डिमांड्स है . जिसे आप आसानी से पूरा कर सकते है .
  • यह बात अलग है कि ये उपले बाजार में या आपके पड़ोस में ग्वाले से मिलने वाले उपलों से महंगी कीमत पर मिलेंगे. अपनी असली कीमत से करीब पांच गुना ज्यादा दाम पर मिलने वाले ऑनलाइन गोबर के कंडे ग्राहकों से ज्यादा ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट के लिए फायदे का सौदा हैं. इनसे आप को काफी मुनाफा हो सकता है.R
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गौ – महिमा (गोबर,गोमय/cow dung)

१. अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने ।
तासां ऋषभपत्नीना, पवित्रकायशोधनम् ।।
यन्मे रोगांश्चशोकांश्च , पांप में हर गोमय ।

अर्थात- वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय ,उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर ।तुम मेरे रोग औरमानसिक शोक और ताप का नाश करो ।

२. गोमय वसते लक्ष्मी – वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर लक्ष्मी का वास होता है ।गोमय गाय के गोबर रस को कहते है ।यह कसैला एंव कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है ।गोबर को अन्य नाम भी है गोविन्द,गोशकृत,गोपुरीषम्,गोविष्ठा,गोमल आदि।

३. गोबर गणेश की प्रथम पुजा होती है और वह शुभ होता है ।मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है ।जलावन एंव जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्ध है ।

४. गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक,शोधक,क्षारक,वीर्यवर्धक ,पोषक,रसयुक्त ,कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्िनग्ध तथा मल आदि को दूर करने वाला होता है ।

५. गोबर मे नाईट्रोजन ,फास्फोरस ,पोटेशियम ,आयरन ,जिंक,मैग्निज ,ताम्बा ,बोरोन,मोलीब्डनम्,बोरेक्स,कोबाल्ट-सलफेट,चूना ,गंधक,सोडियम आदि मिलते है ।

६. गाय के गोबर में एेन्टिसेप्टिक,एन्टिडियोएक्टिव एंव एन्टिथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग १६ प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है ।

७. मैकफर्सन के अनुसार गोबर के समान सुलभ कीटनाशक द्रव्य दूसरा नहीं है रूसी वैज्ञानिक के अनुसार आण्विक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवारें पूर्ण सक्षम है ।भोजन का आवश्यक तत्व विटामिन बी-१२ शाकाहारी भोजन में नहीं के बराबर होता है ।

८. गाय की बड़ी आँतो में विटामिन बी-१२ की उत्पत्ति प्रचूर मात्रा में होती है पर वहाँ इसका आवशोषण नहीं हो पाता अत: यह विटामिन गोबर के साथ बहार निकल आता है प्राचीनकाल में ऋषि-मूनि गोबर के सेवन से पर्याप्त विटामिन बी -१२ प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ लेते थे ।गोबर के सेवन तथा लेपन से अनेक व्याधियाँ समाप्त होती है ।

९. प्रो.जी. ई. बीगेंड,- इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने गोबर पर सतत प्रयोग से सिद्ध किया कि गोबर में मलेरिया एंव क्षयरोग के जीवाणुओ को तुरन्त नष्ट करने की क्षमता होती है ।

१०- गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है ,दुर्गन्धनाशक है एंव उत्तम वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है ।यह त्वचा रोग खाज,खुजली,श्वासरोग,जोड़ो के दर्द सायटिका आदि में लाभदायक है ।गोबर में बारीक सुती कपड़े को गोबर को दबाकर छोड दे थोड़ी देर बाद इस कपड़े को निचोड़कर गोमय प्राप्त कर सकते है ।इससे अनेक त्वचा रोगों में स्नान करते है ,मुहासे दूर करके चेहरे की कान्ति बनाये रखता है ,गोमय के साथ गेरू तथा मूलतानी मिट्टी व नीम के पत्तों को मिलाकर नहाने का साबुन बनाया जाते है यह चेहरे की झुरियाँ दूर करता है ।

 लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्वमड्गंला । 
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पाण्डुनन्दन ।। 

 

अर्थात- गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है ,इसिलिए गोबर से लेपन करना चाहिए ।

२. सामान्यता गोमय कटु,उष्ण ,वीर्यवर्धक ,त्रिदोषशामक तथा कुष्ठघ््न ,छर्दिनिग्रहण,रक्तशोधक,श्वासघ््न और विष्घ््न है ।यह विष नाशक है विषों में गोमय-स्वरस का लेप एंव अंजन उपयोगी साबित हुए है ।गाय का गोबर तिमिर रोग में ,नस्य रूप में प्रयुक्त होता है ।बिजौरा नींबू की जड़,गौघृत,मन:शिला को गोमय में पीसकर लेप करने से मुख की कान्ति बढ़ती है ।
३. आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है ।ताज़ा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एंव कीटाणु नाशक है ।

४. सर्पदंश ,विषधर साँप ,बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है अति विषाक्त्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा हृदय को सुरक्षित रखता है ।बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है ।

५. पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्माद ,अपस्मार शोथ ,उदररोग,बवासीर ,भगंदर ,कामला,विषमज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है ।मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्ननायुतंत्र को परिपुष्ट करता है ।

६. चेन्नई के डा. किंग के अनुसार गाय के गोबर किटाणु मारने की क्षमता रहती है ,इसमें ऐसी बिमारी के समय दूषित पानी में गाय का गोबर पानी में मिलाकर पानी शुद्ध कर उपयोग से प्लेग नहीं होता है ।और जिस भाग में बिजली का करन्ट लगा हो उस भाग पर गाय का गोबर लगाने से बिजली के करन्ट के असर में कमी अाती है ।

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७. गाय के गोबर से बनी राख का उपयोग किसान भाई अपनी फसल को किटाणुओ ,बिमारीयों व जीवजन्तुओ से बचाने के लिए आदिकाल से प्रयोग करते आ रहे है ।

८. वैज्ञानिकों के अनुसार सेन्द्रिय खाद से पैदा किया आनाज खाने से हार्टअटैक नहीं होता है ।क्योंकि देशी खाद से शरीर द्वारा चाही गयी ४००मिलीग्राम मैग्निशियम तत्व की मात्रा मिलती है ।जो रासायनिक खाद में नहीं मिलती है ।मेग्नेशियम तत्व शरीर में रक्तप्रवाह के लिए रहना आवश्यक है ।

९. अग्निहोत्र जो कि यज्ञ काआधार है पुरातन वैदिक विज्ञान की अनमोल देन है ।गोबर से बनी यज्ञ समिधा का गौघृत के साथ उपयोग आदि काल से करते आ रहे है ।अग्निहोत्र से कई क्षेत्रों में जैसे कृषि ,वातावरण,जैव प्रजन्न व मनचिकित्सा तथा प्रदुषण दूर करने में विस्मयकारी रूप से लाभ होता है ।

१०. गोबर के कंडों से किये गये अग्निहोत्र से सूक्ष्मऊर्जा,तरगें ,एंव पौष्टिक वायु वातावरण में नि:सृत होते है ।जिसमें वनस्पतियों को पोषण प्राप्त होकर फसल में वृद्धि होती है ।पशुधन के स्वास्थ्य में सुधार तथा दूग्ध की गुणवत्ता में और प्रमाण में वृद्धि होती है ।केचुएँ व मधुमक्खियों में भी वृद्धि पायी जाती है ।अग्निहोत्र का भस्म एक उत्तम खाद है एंव कीटनियंत्रक औषध बनाने में भी उपयोगी है ।अग्निहोत्र की भस्म से बीज प्रक्रिया एंव बीज संस्कार अंकुरण अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से होता है ।

अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जाहृनवी स्वंय । 
अष्टएैश्वर्यमयी लक्ष्मी गोमय वसते सदा ।। 

अथार्त – गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है ।तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है ।और आठ एैश्वर्यों से सम्पन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है ।

२. तृणं चरन्ती अमृतं क्षरन्ती :- गायमाता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है।इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्थान प्राप्त है ।गोबर को सारे शरीर पर मलकर धूप में बैठने से खाज ,खुजली आदि त्वचा रोग नष्ट हो जाते है ।

३. हमारे प्रायश्िचत विधान में पञ्चगव्य( गोबर,गोमूत्र ,दूग्ध ,दही,घी )सेवन का बड़ा मैहत्व बताया गया है । जैसे अग्नि में ईंधन जल जाता है ,से ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है ।गोबर रोगों के कीटाणु और गन्ध को दूर करने में अद्वितीय है ।

४. छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर का तिलक देने की प्रथा है ।भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उिच्छष्ठ स्थान को शुद्ध करने के लिए ,गोबर का चौका लगाया जाता है ।

५. मृतगर्भ ( पेट में मरा हूआ बच्चा ) बाहर निकालने के लिए गोमय (गोबर का रस) ७ तोला,गौदूग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए । बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा ।और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है ।

६. पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनो के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए ।और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए ।और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए ।

७. शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपडें में छानकर उससे भर दें ।इसपर यही श्रेष्ठ उपाय है ।और साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए ।गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बूखार एंव मलेरिया रोगाणु का नाश होता है ( डा़़. बिग्रेड,इटली )

८. पेट में छोटे -छोटे कीडे हुए हो तो ,गोबर की सफेद राख २ तोला लेकर १० तोला पानी मिलाकर ,पानी कपडें में छान लें । तीन दिन तक सुबह – शाम यही पानी पीलायें ।और रतौंधी में ताजे गोमय को लेकर के आँख में आँजने से दस दिन में राेग से छुटकारा हो जायेगा ।

९. दाँत की दुर्गन्ध,जन्तु और मसूडें के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें ,जब उसका धुआं निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा लें ,सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपडछान कर लें ,इस मंजन से प्रतिदिन दाँत साफ़ करने से दाँत के सब रोग नष्ट हो जाते है ।

१०. आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से धूम्रपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है ।और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है ।

 

         पंचगव्य

भारत में  गाय

 

गोमुत्र भारतीय परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न केवल पवित्र है बल्कि इसके विभिन्न महत्वपूर्ण औषधीय उपयोग भी हैं। आयुर्वेद में शास्त्रीय ग्रंथों अर्थात् चरक, सुश्रुत और वाग्भट्ट संहिता में अष्ट मुत्र (आठ प्रकार के मूत्र) के साथ-साथ उनके गुणों, संकेत और योगों का वर्णन किया गया है। गोमूत्र उनमें से एक है। कहा जाता है कि गोमूत्र का आध्यात्मिक प्रभाव भी होता है। गोमूत्र को जीवन का जल या “अमृता” (अमरत्व का पेय) के रूप में वर्णित किया गया है, जो भगवान का अमृत है। “पंचगव्य” गोमूत्र, दूध, गोबर, घी और दही का मिश्रण है। भारतीय गाय की नस्लें अनोखी और विशिष्ट प्रजातियाँ हैं, जिन्हें “कामधेनु” (मानव जाति की सभी इच्छाओं को पूरा करने वाली) और “गौमाता, (गाय को माँ कहा जाता है) के रूप में जाना जाता है।

गौमूत्र के गुण

गोमूत्र उन रोगों को नष्ट करता है जो जहर (टॉक्सिन) के कारण होते हैं। गोमूत्र की मदद से विभिन्न जहरीले रसायनों को शुद्ध किया जा सकता है। गोमूत्र मानव शरीर में रोगों के खिलाफ प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाकर प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाता है । गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, फॉस्फेट, सोडियम, मैंगनीज, लोहा, सिलिकॉन, क्लोरीन, मैग्नीशियम, मैनिक, साइट्रिक, टार्टरिक और कैल्शियम लवण, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, खनिज, लैक्टोज, एंजाइम, क्रिएटिनिन, हार्मोन और गोल्ड एसिड मानव शरीर के समान होते हैं।

गोमूत्र उन रोगों को नष्ट करता है जो जहर (टॉक्सिन) के कारण होते हैं। गोमूत्र की मदद से विभिन्न जहरीले रसायनों को शुद्ध किया जा सकता है। गोमूत्र मानव शरीर में रोगों के खिलाफ प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाकर प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाता है । गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, फॉस्फेट, सोडियम, मैंगनीज, लोहा, सिलिकॉन, क्लोरीन, मैग्नीशियम, मैनिक, साइट्रिक, टार्टरिक और कैल्शियम लवण, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, खनिज, लैक्टोज, एंजाइम, क्रिएटिनिन, हार्मोन और गोल्ड एसिड मानव शरीर के समान होते हैं।

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आचार्य गुण दोषों पर प्रभाव शरीर पर अन्य प्रभाव
चरक 10 मीठा वात, पित्त और कफ  घटाना कृमिनाशक , विभिन्न त्वचा विकारों में उपयोग, कुष्ठ रोग, खुजली और जलोदरमें फायदेमंद

 

सुश्रुता 11सूत्र तीखा, तीक्ष्ण, गर्म, हल्का, क्षारीय वात और कफ घटाना बुद्धि और पाचन शक्ति को बढ़ावा देता है, पेट का दर्द, पाचन संबंधी विकार, कब्ज शुद्धि व एनीमा देने के लिए रेचक के रूप में उपयोगी।

 

बी -1 : कुछ महत्वपूर्ण सूत्रीकरण जिसमें गोमूत्र का उपयोग किया जाता है

  1. आश्विनकुमार
  2. अर्शकुठार रस
  3. संजीवनीवटी
  4. मंडुरवटक
  5. पुनर्नवमंदूर
  6. पंचामृतलोहमंदुर
  7. त्रिशुनादिमांडुर
  8. अग्निमुकम्मंदुर
  9. पंचगव्यघृताहीता
  10. काशीसादतैला

बी -2 : गोमूत्र की रासायनिक संरचना 15

पानी – 95%

यूरिया – 2.5%

खनिज, लवण, हार्मोन, एंजाइम – 2.5%

स्वस्थ गोमूत्र में 1.025- 1.045 तक के विशिष्ट गुरुत्व के साथ 17-45 मिली / किलोग्राम / दिन की मात्रा होती है। इसका पीएच मौसमी विविधताओं के साथ 7.4 से 8.4 के बीच होता है। यूरिया नाइट्रोजन और कुल नाइट्रोजन क्रमशः 23-28 मिलीलीटर / किग्रा / दिन और 40-45 मिलीलीटर / किग्रा / दिन के बीच भिन्न होता है। अन्य महत्वपूर्ण घटक नीचे तालिका में दिए गए हैं।

तालिका 3: स्वस्थ गोमूत्र के रासायनिक घटक

 

अमोनिया नाइट्रोजन 1-1.7 मिली / किग्रा / दिन
ऑलेंटोइन 20-60 मिली / किग्रा / दिन
कैल्शियम 0.1-1.4 मिली / किग्रा / दिन
क्लोराइड 0.1-1.1 मिमी / किग्रा / दिन
क्रिएटिनिन 15-20mg / किग्रा / दिन
मैग्नीशियम 3.7mg / किग्रा / दिन
पोटेशियम 0.08-0.15 मिमी / किग्रा / दिन
सोडियम 0.2-1.1 मिमी / किग्रा / दिन
सल्फेट 3-5mg / kg / दिन
यूरिक एसिड 1-4mg / किग्रा / दिन
ल्यूकोसाइट <15micro यह

यूरिया एक मजबूत रोगाणुरोधी एजेंट है और यह प्रोटीन चयापचय को समाप्त करता है, जबकि यूरिक एसिड में रोगाणुरोधी गतिविधि होती है और यह संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद करता है। स्वस्थ गोमूत्र में कॉपर वसा के जमाव को नियंत्रित करता है, आयरन आरबीसी के उत्पादन के लिए जिम्मेदार होता है जबकि सोडियम और पोटेशियम शरीर में इलेक्ट्रोलाइट के रूप में प्रमुख भूमिका निभाता है। उनके कार्यों के साथ अन्य महत्वपूर्ण सामग्री इस प्रकार हैं ।

  1. क्रिएटिनिन – यह एक जीवाणुरोधी के रूप में कार्य करता है ।
  2. औरम हाइड्रॉक्साइड – जीवाणुरोधी, प्रतिरक्षा में सुधार, मारक के रूप में कार्य करता है।
  3. एनजाइम्यूरेकेनेज – यह रक्त के थक्के को भंग करने, हृदय रोग में सुधार, रक्त परिसंचरण के लिए जिम्मेदार है।
  4. कॉलोनी उत्तेजक कारक – कोशिका विभाजन और गुणन के लिए प्रभावी।
  5. लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन के लिए एरिथ्रोपोइटिन प्रमुख उत्तेजक कारक है।
  6. गोनैडोट्रोपिन – मासिक धर्म चक्र, शुक्राणु उत्पादन को बढ़ावा देता है।
  7. एंटीकैंसर पदार्थ- कार्सिनोजेनिक कोशिकाओं के गुणन को रोकता है।

बी 3 : एन्जाइम्स

  1. लैक्टेट-डिहाइड्रोजनास – 780 यूनिट | लेफ्टिनेंट
  2. क्षारीय फॉस्फोटेज – 110 केए यूनिट
  3. एसिड फॉस्फोटेस – 620 XA इकाई
  4. एमाइलेज – 236 इकाई
  5. विट-सी – 408mg | लेफ्टिनेंट
  6. विट-बी 1 – 444.125 माइक्रोग्राम | एलटी
  7. विट-बी 2 – 0.6339mg | लेफ्टिनेंट
  8. प्रोटीन – 1037 ग्राम | लेफ्टिनेंट
  9. यूरिक एसिड – 028mg | लेफ्टिनेंट
  10. क्रिएटिनिन – 9970 ग्राम | लेफ्टिनेंट
  11. लैक्टेट – 7830 मिलिमोल | लेफ्टिनेंट
  12. फिनोल – 7580mg | 100 मि.ली.
  13. मुक्त वाष्पशील फिनोल – 7130mg | 100 मि.ली.
  14. यौगिक वाष्पशील फिनोल – 3420mg | 100 मि.ली.
  15. सुगंधित हाइड्रोक्सी एसिड – 7030mg | 100 मि.ली.
  16. कैल्शियम – 735 मिलिमोल | लेफ्टिनेंट
  17. फॉस्फोरस – 4805milimol | लेफ्टिनेंट

गाय के मूत्र के तत्कालीन प्रभाव

गोमूत्र पर नवीनतम शोध कहते हैं कि कैंसर मानव के लिए सबसे खतरनाक बीमारी है, जिसका उपचार जैसे किमोथेरेपी, सर्जरी, रेडियोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी के साथ-साथ जीन थेरेपी जैसे नए उपचारों के तौर तरीकों से किया जा सकता है, लेकिन सफलता दर बहुत अधिक नहीं है।  इसके दुष्प्रभाव रोगियों का इलाज करने पर दिखते हैं। वैकल्पिक औषधीय उपचार भी कैंसर की रोकथाम और नियंत्रण में सहायक होने का दावा किया गया है। गोमूत्र चिकित्सा में यह भी पाया गया कि इसमे कैंसर विरोधी गुण हैं।

 

एक अध्ययन में विभिन्न संक्रमणों पर काबू पाने और बेहतर सुरक्षा के लिए कोशिका-मध्यस्थता और प्रतिरक्षा संरक्षण के उच्च स्तर को प्राप्त करने में इम्युनोडेफिशिएंसी विषयों में मदद करने के लिए गोमूत्र डिस्टिलेट की निर्धारक भूमिका का उल्लेख किया गया है। गोमूत्र अरक को गोमूत्र की आसवन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है। गोमुत्रार्क (~ गोमूत्र आसवन) और गोमूत्र के परिणाम लगभग समान हैं। यह पाया गया कि गोमूत्र के रासायनिक और औषधीय गुण गोमुत्र अर्क में संरक्षित हैं। गोमूत्र के अर्क में अमोनिया की बहुत नगण्य मात्रा है जो कि रोगियों के लिए स्वीकार्य है। अध्ययन में पाया गया कि गोमूत्र आसवन यानी गोमूत्र अर्क में एंटीऑक्सीडेंट क्षमता है। गोमुत्र अर्क में एंटीऑक्सिडेंट और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव भी है।

 

रोगाणुरोधी दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध विकसित करने के विभिन्न तरीके हैं। आज कल एंटीबायोटिक्स का उपयोग काफी बढ़ गया है। बहुत सारी दवाएं हैं जो विभिन्न बैक्टीरिया और वायरस के खिलाफ निष्प्रभावी हैं। वैन्कोमाइसिन प्रतिरोधी है एंटरोकोकस के लिये, व सिप्रोफ्लोक्सासिन प्रतिरोधी है पी. एरुजिनोसा के लिये जैसे कुछ उदाहरण हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि गौ मूत्र दवाओं के प्रतिरोधी बैक्टीरिया और वायरस के खिलाफ बहुत प्रभावी है।

 

रोगाणुरोधक

घाव भरने की प्रक्रिया में गोमूत्र प्रभावकारी है।  गौ मूत्र 1% w / w नाइट्रोफुरज़ोन मरहम की अपेक्षा घाव को तेजी से ठीक करता है।

 

कृमिनाशक

गौ मूत्र अर्क, 1% और 5%  पाइपरज़ीन साइट्रेट से बेहतर कृमिनाशक है।

 

बायोइन्हेन्सर

‘बायोइन्हेन्सर’ / ‘बायोपोटेंटियेटर’ ऐसे पदार्थ हैं जो पदार्थ की जैवउपलब्धता एवं जैव-प्रभावकारिता को बढ़ाते हैं, खुद की कोई गतिविधि किए बिना । आयुर्वेद ने दवाओं के बायोएन्हेंसिंग गुणों का वर्णन करने के लिए ‘योगवाही’ सिद्धांत का उल्लेख किया है। यह मौखिक जैवउपलब्धता को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी खुराक और साइड इफेक्ट कम होते हैं। अनुसंधान के आधुनिक तरीकों के साथ आयुर्वेदिक विज्ञान को एकीकृत करके, हम अधिक जीवन-शक्ति वाला गौ मूत्र विकसित कर सकते हैं जो कि एंटिफंगल, रोगाणुरोधी एजेंटों  में बायोएन्हेंसर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। आयुर्वेद रसायन में औषधि द्वारा शरीर मे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुण होते हैं। गौ मूत्र में समान रसायन तत्त्व होते हैं और यह बायोएन्हेंसर के रूप में भी काम करता है। (गोमूत्र आसवन) गौ मूत्र की तुलना में अधिक प्रभावी बायोएन्हेंसर है। गौ मूत्र अर्क एंटीबायोटिक्स के परिवहन को 2 से 7 गुना आंतों के पार बढ़ाता है।  गौ मूत्र की बायो-इन्हेन्सिग की क्षमता सेल झिल्ली में दवाओं के अवशोषण को बढाने की है।

 

आम संक्रमण और रोगजनकों के खिलाफ शरीर के रोग प्रतिरोध क्षमता मे सुधार के लिए जड़ी-बूटियों और खनिजों (जैसे चवन्प्राश और पंचगव्य) का उपयोग आयुर्वेद का प्रमुख मार्गदर्शक रहा है। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है कि प्रतिदिन गौ मूत्र का सेवन करने से रोगों की प्रतिरोधक क्षमता 104% तक बढ़ जाती है।

 

गौमूत्र अर्क द्वारा गुर्दे की पथरी को ठीक कर गुर्दे के कार्य की बहाली पर महत्वपूर्ण प्रभाव दिखाता है। गौमूत्र की यह क्रिया कैल्शियम ऑक्सालेट के उत्सर्जन को कम करने और क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया को बाधित करने के कारण होती है।

 

समृद्ध गौ संवर्धन ,गोपालन एवं गोशाला प्रबंधन से संबंधित विशेष जानकारी के लिए आप निम्नलिखित पुस्तकों को पीडीएफ में डाउनलोड कर सकते हैं:

Manual on Management Gaushala Hind-min

 

व्यावसायिक पशुपालन

 

डॉ जितेंद्र सिंह
पशुचिकित्सा अधिकारी
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

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