पशुपालकों की समस्या तथा उसका समाधान

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पशुपालकों की समस्या तथा उसका समाधान

 

पशु के लिए संतुलित दाना मिश्रण कैसे बनायें?

संतुलित दाना मिश्रण कैसे बनायें

पशुओं के दाना मिश्रण में काम आने वाले पदार्थों का नाम जान लेना ही काफी नही है। क्योंकि यह ज्ञान पशुओं का राशन परिकलन करने के लिए काफी नही है। एक पशुपालक को इस से प्राप्त होने वाले पाचक तत्वों जैसे कच्ची प्रोटीन, कुल पाचक तत्व और चयापचयी उर्जा का भी ज्ञान होना आवश्यक है। तभी भोज्य में पाये जाने वाले तत्वों के आधार पर संतुलित दाना मिश्रण बनाने में सहसयता मिल सकेगी। नीचे लिखे गये किसी भी एक तरीके से यह दाना मिश्रण बनाया जा सकता है, परन्तु यह इस पर भी निर्भर करता है कि कौन सी चीज सस्ती व आसानी से उपलब्ध है।

1.

मक्का/जौ/जई 40 किलो मात्रा
बिनौले की खल 16 किलो
मूंगफली की खल 15 किलो
गेहूं की चोकर 25 किलो
मिनरल मिक्सर 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो

2.

जौ 30 किलो
सरसों की खल 25 किलो
बिनौले की खल 22 किलो
गेहूं की चोकर 20 किलो
मिनरल मिक्स 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो

3.

मक्का या जौ 40 किलो मात्रा
मूंगफली की खल 20 किलो
दालों की चूरी 17 किलो
चावल की पालिश 20 किलो
मिनरल मिक्स 02 किलो
साधारण नमक 01 किलो
कुल 100 किलो

4.

गेहूं जौ या बाजरा 20 किलो मात्रा
बिनौले की खल 27 किलो
दाने या चने की चूरी 15 किलो
बिनौला 15 किलो
आटे की चोकर 20 किलो
मिनरल मिक्स 02 किलो
नमक 01 किलो
कुल 100 किलो

ऊपर दिया गया कोई भी संतुलित आहार भूसे के साथ सानी करके भी खिलाया जा सकता है। इसके साथ कम से कम 4-5 किलो हरा चारा देना आवश्यक है।

दाना मिश्रण के गुण  लाभ

  • यह स्वादिष्ट व पौष्टिक है।
  • ज्यादा पाचक है।
  • अकेले खल, बिनौला या चने से यह सस्ता पड़ता हैं।
  • पशुओं का स्वास्थ्य ठीक रखता है।
  • बीमारी से बचने की क्षमता प्रदान करता हैं।
  • दूध व घी में भी बढौतरी करता है।
  • भैंस ब्यांत नहीं मारती।
  • भैंस अधिक समय तक दूध देते हैं।
  • कटडे या कटड़ियों को जल्द यौवन प्रदान करता है।

संतुलित दाना मिश्रण कितना खिलायें

  1. शरीरकी देखभाल के लिए:
  •  गाय के लिए 1.5 किलो प्रतिदिन व भैंस के लिए 2 किलो प्रतिदिन
  1. दुधारूपशुओं के लिए:
  • गाय प्रत्येक 2.5 लीटर दूध के पीछे 1 किलो दाना
  • भैंस प्रत्येक 2 लीटर दूध के पीछे 1 किलो दाना
  1. गाभिनगाय या भैंस के लिए:
  • 6 महीने से ऊपर की गाभिन गाय या भैंस को 1 से 1.5 किलो दाना प्रतिदिन फालतू देना चाहिए।
  1. बछड़ेया बछड़ियों के लिए:
  • 1 किलो से 2.5 किलो तक दाना प्रतिदिन उनकी उम्र या वजन के अनुसार देना चाहिए।
  1. बैलोंके लिए:
  • खेतों में काम करने वाले भैंसों के लिए 2 से 2.5 किलो प्रतिदिन
  • बिना काम करने वाले बैलों के लिए 1 किलो प्रतिदिन।

नोट : जब हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो उपरलिखित कुल देय दाना 1/2 से 1 किलो तक घटाया जा सकता है।

पशुओं को कितना चारा पानी देना चाहिए ?

निम्न लिखित अनुसूची अपनाई जानी चाहिए:-
(क) रोज़ का आहार 3-4 भागों में बांटना चाहिए|
(ख) दाना दो बराबर भागों में दिया जाना चाहिए|
(ग) सूखा व हर चारा अच्छी तरह मिलाकर देना चाहिए|
(घ) कमी के समय साईंलेज दिया जाना चाहिए|
(ङ) चारा खिलने के बाद ही दाना देना चाहिए|
(च) औसतन वज़न की गाय को 35-40 लीटर प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती है|

क्या अजोला से पशुओं में दूध बढ़ा सकते है ?

अजोला में मौजूद पोषक तत्व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। इसमें लगभग 30 प्रतिशत तक प्रोटीन की मात्रा होती है साथ ही लाइसिन, अर्जिनीन और मेथियोनीन से भरपूर है। अजोला में लिग्निन की सूक्ष्म मात्रा से पशुओं में पाचन सरलता से होता है। ऐसा कहा जाता है कि यदि यूरिया की जगह अजोला का प्रयोग किया जाए तो फिर उत्पादन भी अच्छा होता है। क्योंकि इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 30 फीसदी होती है, इसके अतिरिक्त खनिज भी अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं।

दूध उत्पादन में उपयोगी अजोला-

दूध उत्पादन में अजोला काफी उपयोगी है। इससे दूध में वसा की मात्रा बढ़ती है। अजोला के चलते दूध का उत्पादन बीस फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। संकर नस्लीय गायों में अजोला की सहायता से खर्च भी कम होता है साथ ही दूध का उत्पादन भी 35 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है। इसे राशन के साथ समान अनुपात में मिलाकर पशु को खिलाया जा सकता है। इस प्रकार महंगे राशन से खर्च कम किया जा सकता है।

शुद्ध प्रजाति का इस्तेमाल-

यदि अजोला की शुद्ध प्रजाति का इस्तेमाल किया जाए तो इससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इसका अधिक उत्पादन लेने के लिए इसकी कटाई 1 सेमी. पर कर दें। भारत में अजोला की औसत लंबाई 2 से 3 सेमी. तक होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य-

यदि अजोला की बात करें तो यह देश में चारा की उपलब्धता कम खर्च में बढ़ाई जा सकती है। इसे अधिक सरलता से बढ़ाया जा सकता है। इसे गाय, भैंस, बकरी आदि के लिए अच्छा चारा के रूप में दिया जा सकता है। इसे तालाब, नदी और गड्ढे में आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। अजोला को रबी और खरीफ के मौसम में आसानी से उगा सकते हैं। यह रासायनिक खाद का एक विकल्प के तौर पर है। इसके उपयोग से पशुओं में बांझपन की समस्या में कमी लायी जा सकती है।

कैसे उगाएं अजोला-

नेशनल रिसोर्स डेवलेपमेंट विधि के अनुसार इसे प्लास्टिक शीट के साथ 2 मी.X 2मी. X 0.2मी का क्षेत्र तैयार कर इसमें 15 किग्रा. तक उपजाऊ मिट्टी डालते हैं। फिर इसे 2 किग्रा. गोबर और 30 ग्राम सुपर फास्फेट डालते हैं। इसके बाद में पानी डालकर इसका स्तर 10 सेमी. तक पहुंचा दिया जाता है। अब अजोला की एक किग्रा. की मात्रा को डालते हैं। देखते ही देखते 10 से 15 दिन बाद अजोला की लगभग आधा किलो मात्रा मिलनी शुरु हो जाती है। अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 20 ग्राम सुपर फास्फेट तथा एक किग्रा. की मात्रा हर पांच साल बाद डालनी चाहिए।

एक गाय का खाने का कितना खर्चा आता है और उससे कितना कमा सकते हैं ?

21हरे चारा का खर्चा – ₹2 * 20kg = ₹40
सूखे चारा का खर्चा – ₹5 * 2kg = ₹10
फीड का खर्चा – ₹20 * 9 kg = ₹180
मिनरल मिक्सचर – ₹10

प्रतिदिन का खर्चा – ₹239

पशु का दस्त, मोक का इलाज कैसे करें ?

आपकी गाय और भैंस को दस्त लग जाने पर उनका गोबर बहुत यादा पतला हो जाता है और उससे ज्यादा बदबू आने लगता है।

निम्न कारण से दस्त लग सकता हैं –

  1. दूषित पानी या दूषित हरा चारा से हो सकता है
  2. गाय भैंस को जो ज्यादा फीड खिलाने से या ज्यादा गिला करके खिलाने से पशु के पेट में इंफेक्शन हो सकता है और उससे पशु का हाजमा खराब हो जाता है

पशुओं को कितना चारा पानी देना चाहिए ?

निम्न लिखित अनुसूची अपनाई जानी चाहिए:-
(क) रोज़ का आहार 3-4 भागों में बांटना चाहिए|
(ख) दाना दो बराबर भागों में दिया जाना चाहिए|
(ग) सूखा व हर चारा अच्छी तरह मिलाकर देना चाहिए|
(घ) कमी के समय साईंलेज दिया जाना चाहिए|
(ङ) चारा खिलने के बाद ही दाना देना चाहिए|
(च) औसतन वज़न की गाय को 35-40 लीटर प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती है|

बछड़ों- बछड़ियों को खीस कितना और कैसे पिलाना चाहिये?

सबसे ध्यान देने योग्य बात है कि पैदा होने के बाद जितना जल्दी हो सके खीस पिलाना चाहिये। इसे गुनगुना (कोसा) कर के बछड़े के भार का 10 वां हिस्सा वज़न खीस कि मात्रा 24 घंटों में पिलाएं। जन्म के 24 घंटों के बाद बछड़े की आंतों की प्रतिरोधी तत्व (इम्यूनोग्लोब्यूलिन) को सीखने की क्षमता कम हो जाती है। और तीसरे दिन के बाद तों लगभग समाप्त हो जाती है। इसलिए बछडों को खीस पिलाना आवश्यक है।

घरेलू तरीके से भैंस का दूध कैसे बढाये ?

कई लोग अपने गाय और भैंसों से अधिक दूध प्राप्त करने के लिए टीके आदि का सहारा लेतें हैं, यह पहले कारगर तो साबित होता है लेकिन कई बार इसका प्रभाव विपरीत भी पड़ जाता है.

किसान भाइयों आज हम इस लेख के माध्यम से आपको एक ऐसे रामबाण घरेलू उपाय के बारे में बताएंगे जो गाय और भैंस का दूध बढाने में कारगर साबित होता है. उपाय बहुत सरल है और आपको बहुत ही जल्द इसके नतीजे भी मिलने लगेंगे

दूध में फैट और SNF कैसे बढाएं ?

दूध में फैट और SNF मात्रा होती है वो आहार के साथ साथ पशु के जीन और नस्ल पर निर्भर करता है। अगर आप वही आहार दो अलग नस्ल के पशु को देंगे फिर भी उनकी जो फैट की मात्रा है उसमे बहुत ही ज्यादा फरक रहता है। अगर आपको दूध फैट के आधार में बेचना है तोह पशु खरीदते समय उसका फैट की मात्रा जाँच करवा लें।

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ऐसे में पशुपालक अपने दुधारू पशु को हरे चारे और सूखे चारे का संतुलित आहार देकर दूध में वसा की मात्रा को बढ़ा सकते हैं।

किसान भाई नीचे दिए फार्मूले से फ़ायदा उठा सकते हैं। यह रोशन पशुओं को देना होता है जो दूध देते हैं।
A) एक सो ग्राम टाटा का नमक
B) दो सो ग्राम सरसों का तेल
C) एक सो ग्राम गुड
D) सो ग्राम कैल्शियम
इन चारों चीजों को मिलाकर दुधारू पशुओं को दें इस से अंदर की कमज़ोरी कम होगी और पशु जितना जियादा हो सके दूध देगा

बछडी(calf) कैसे तैयार करें ?

नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

  • बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
  • मक्खन निकाला हुआ दूध देना
  • दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
  • दूध के विकल्प देना
  • काफ स्टार्टर देना
  • पोषक गाय का दूध पिलाना।

घर पर पशु दाना/आहार बनाने की विधी क्या है कृपया सुझाऐं?

निम्न लिखित विधी द्वारा पशु दाना/आहार घर पर बनाया जा सकता है:- 10 कि.ग्रा. पशुआहार बनाने के लिए बराबर मात्रा में अनाज, चिकर ओर खल(3.33 कि.ग्रा.प्रत्येक) लें ओर इसमें 200ग्राम नमक व 100 ग्राम खनिज लवण मिलाएं| कृपया यह सुनिश्चित करें कि अनाज पूरी तरह पिसा हुआ व खल पूरी तरह तोडी हुई हो (यदि खल पूरी तरह पाउडर नहीं बना हो तो एक दिन पहले 2 ग्राम को पानी से भिगो दें) अगली सुबह पीसी हुई नरम खल को उपरोक्त अनाज नमक व खनिज लवण में मिलाए| इस पशु दाने को पशु को पशु कि आवश्यकता अनुसार सूखे घास व हरे चारे में खिलाया जा सकता है|

गाय व भैंसों के लिए सन्तुलित आहार कैसी होनी चहिये?

वैज्ञानिक दृष्टि से दुधारू पशुओं के शरीर के भार के अनुसार उसकी आवश्यकताओं जसे जीवन निर्वाह, विकास तथा उत्पादन आदि के लिए भोजन के विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट्स, वसा, खनिज,विटामिन तथा पानी की आवश्यकता होती है|पशु को 24 घण्टों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू भोज्य तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते है| जिस आहार में पशु के सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अपुपात तथा मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं|
पशुओं में आहार की मात्रा उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन की अवस्था पर निर्भर करती है| पशु को कुल आहार का 2/3 भाग मोटे चारे से तथा 1/3 भग दाने के मिश्रण द्वारा मिलाना चाहिए| मोटे चारे में दलहनी तथा गैर दलहनी चारे का मिश्रण दिया जा सकता है| दलहनी चारे की मात्रा आहार में बढने से काफी हद तक दाने की मात्रा को कम किया जा सकता है|
वैसे तो पशु के आहार की मात्रा का निर्धारण उसके शरीर की आवश्यकता व कार्य के अनुरूप तथा उपलब्ध भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के आधार पर गणना करके किया जाता है लेकिन पशुपालकों को गणना कार्य की कठिनाई से बचाने के लिए थम्ब रुल को अपनाना अधिक सुविधा जंक है| इसके अनुसार हम मोटे तौर पर व्यस्क दुधारू पशु के आहार को तीन वर्गों में बांट सकते है|1.जीवन निर्वाह के लिए आहार 2.उत्पादन के लिए आहार तथा 3.गर्भवस्था के लिए आहार|

1.जीवन निर्वाह के लिए आहार:-

यह आहार की वह मात्रा है जिसे पशु को अपने शरीर को स्वत रखने के लिए दिया जाता है| इसे पशु अपने शरीर के तापमान को उचिर सीमा में बनाए रखने, शरीर की आवश्यक क्रियायें जैसे पाचन क्रिया ,रक्त परिवाहन,श्वसन, उत्सर्जन, चयापचय आदि के लिए काम में लाता है| इससे उसके शरीर का बजन भी एक सीमा में स्थिर बना रहता है|चाहे पशु उत्पादन में हो या न हो इस आहार को उसे देना ही पड़ता है इसके आभाव में पशु कमज़ोर होने लगता है जिसका असर उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन क्षमता पर पड़ता है|इस में देसी गाय (ज़ेबू) के लिए तूड़ी अथवा सूखे घास की मात्रा 4 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल के लिए यह मात्रा4 से 6 किलो तक होती है| इसके साथ पशु को दाने का मिश्रण भी दिया जाता है जिसकी मात्रा स्थानीय देसी गाय (ज़ेबू) के लिए 1 से 1.25 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्क की देशी गाय याँ भैंस के लिए इसकी मात्रा 2.0 किलो रखी जाती है|
इस विधि द्वारा पशु को खिलने के लिए दाने का मिश्रण उचित अवयवों को ठीक अनुपात में मिलाकर बना होना आवश्यक है| इसके लिए स्व्स्म निम्नलिखित घटकों को दिए हुए अनुपात में मिलाकर सन्तोषजनक पशु दाना बना सकते हैं|

खलियां (मूंगफली,सरसों ,तिल,बनौला, आलसी आदि की खलें)
25-35 प्रतिशत

मोटे अनाज
(गेहूं, जौ, मक्की, जार आदि)
25-35 प्रतिशत

अनाज के बाईप्रोडक्ट्स
(चोकर,चून्नी,चावल की फक आदि )
10-30 प्रतिशत

खनिज मिश्रण
1 प्रतिशत

आयोडीन युक्त नमक
2 प्रतिशत

विटामिन्स ए,डी.-3 का मिश्रण
20-30 ग्रा.प्रति 100 किलो

2.उत्पादन के लिए आहार:-

उत्पादन आहार पशु की वह मात्रा है जिसे कि पशु को जीवन निर्वाह के लिए दिए जाने वाले आहार के अतिरिक्त उसके दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है| इसमें स्थानीय गाय (ज़ेबू) के लिए प्रति 2.5 किलो दूध के उत्पादन के लिए जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त 1 किलो दाना देना चाहिए जबकि संकर/देशी दुधारू गायों/भैंसों के लिए यह मात्रा प्रति 2 कोलो दूध के लिए दी जाती है| यदि हर चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो हर 10 किलो अच्छे किस्म के हरे चारे को देकर 1 किलो दाना कम किया जा सकता है| इससे पशु आहार की कीमत कुछ कम हो जाएगी और उत्पादन भी ठीक बना रहेगा| पशु को दुग्ध उत्पादन तथ आजीवन निर्वाह के लिए साफ पानी दिन में कम से कम तीन बार जरूर पिलाना चाहिए|

3.गर्भवस्था के लिए आहार:-

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पशु की गर्भवस्था में उसे 5वें महीने से अतिरिक्त आहार दिया जाता है क्योंकि इस अवधि के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि बहुत तेज़ी के साथ होने लगती है| अत: गर्भ में पल रहे बच्चे की उचित वृद्धि व विकास के लिए तथा गाय/भैंस के अगले ब्यांत में सही दुग्ध उत्पादन के लिए इस आहार का देना नितान्त आवश्यक है|इसमें स्थानीय गायों (ज़ेबू कैटल) के लिए1.25 किलो तथा संकर नस्ल की गायों व भैंसों के लिए 1.75 किलो अतिरिक्त दाना दिया जाना चाहिए| अधिक दूध देने वाले पशुओं को गर्भवस्था में 8वें माह से अथवा ब्याने के 6 सप्ताह पहले उनकी दुग्ध ग्रंथियों के पूर्ण विकास के लिए की इच्छानुसार दाने की मात्रा बढा देनी चाहिए| इस के लिए ज़ेबू नस्ल के पशुओं में 3 किलो तथा संकर गायों व भैंसों में 4-5 किलो दाने की मात्रा पशु की निर्वाह आवश्यकता के अतिरिक्त दिया जाना चाहिए|इससे पशु अगले ब्यांत में अपनी क्षमता के अनुसार अधिकतम दुग्धोत्पादन कर सकते हैं|

पशुओं के आहर व पानी की दिनचर्या कैसी होनी चहिये?

(क) चारा बांट कर दिन में 3-4 बार खिलना चहिये। (ख) दाना मिश्रण भी 2 बार बराबर- बराबर खिलाना चहिये। (ग) हरा और सूखा चारा (भूस और घास) मिश्रित कर खिलाना चाहिये। (घ) घास की कमी के दिनों साइलेज उपलब्ध कराना चाहिये। (ङ) दाना, चारे के उपरांत खिलाना चाहीये। (च) प्रतिदिन औसतन गाय को 35-40 लीटर पानी कि आवश्यकता होती है।

घर पर पशु दाना/आहार बनाने की विधी क्या है कृपया सुझाऐं?

निम्न लिखित विधी द्वारा पशु दाना/आहार घर पर बनाया जा सकता है:- 10 कि.ग्रा. पशुआहार बनाने के लिए बराबर मात्रा में अनाज, चिकर ओर खल(3.33 कि.ग्रा.प्रत्येक) लें ओर इसमें 200ग्राम नमक व 100 ग्राम खनिज लवण मिलाएं| कृपया यह सुनिश्चित करें कि अनाज पूरी तरह पिसा हुआ व खल पूरी तरह तोडी हुई हो (यदि खल पूरी तरह पाउडर नहीं बना हो तो एक दिन पहले 2 ग्राम को पानी से भिगो दें) अगली सुबह पीसी हुई नरम खल को उपरोक्त अनाज नमक व खनिज लवण में मिलाए| इस पशु दाने को पशु को पशु कि आवश्यकता अनुसार सूखे घास व हरे चारे में खिलाया जा सकता है|

कृपया हमें यह सुझाव दें कि दूध देने वाले पशु को कितना पशु दाना/आहार देना चाहिए?

दूध देने वाले पशु को उसकी उत्पादक क्षमता के अनुसार पोषाहार की आवश्यकता होती है| पोषाहार संतुलित हिना चाहिए| पोषाहार संतुलित बनाने के लिए इसके उचित मात्रा व भाग में प्रोटीन, ऊर्जा, वसा व खनिज लवण होने चाहिए|| औसतन एक देसी गाय को 1 कि.ग्राम अतिरिक्त पशु दाना प्रत्येक 2.5 कि.ग्रा. दूध उत्पादन पर देना आवश्यक है| उपरोक्त पशु दाना रख-खाव आहार के अतिरिक्त होना चाहिए उदहारण के लिए:- गाय का वज़न : 250 कि.ग्रा. (अन्दाज़)| दूध उत्पादन : 4 कि.ग्रा.प्रतिदिन| आहार जो दिया जाना है| भूसा/प्राल : 4 कि.ग्रा| दाना 2.85 4 कि.ग्रा (1.25 4 कि.ग्रा रखरखाव और1.6 4 कि.ग्रा आहार दूध उत्पादन के लिए)

बछड़ों- बछड़ियों को खीस कितना और कैसे पिलाना चाहिये?

सबसे ध्यान देने योग्य बात है कि पैदा होने के बाद जितना जल्दी हो सके खीस पिलाना चाहिये। इसे गुनगुना (कोसा) कर के बछड़े के भार का 10 वां हिस्सा वज़न खीस कि मात्रा 24 घंटों में पिलाएं। जन्म के 24 घंटों के बाद बछड़े की आंतों की प्रतिरोधी तत्व (इम्यूनोग्लोब्यूलिन) को सीखने की क्षमता कम हो जाती है। और तीसरे दिन के बाद तों लगभग समाप्त हो जाती है। इसलिए बछडों को खीस पिलाना आवश्यक है।

बछड़ा कैसे तैयार करें?

जन्म के ठीक बाद बछड़े के नाक और मुंह से कफ अथवा श्लेष्मा इत्यादि को साफ करें।
आमतौर पर गाय बछड़े को जन्म देते ही उसे जीभ से चाटने लगती है। इससे बछड़े के शरीर को सूखने में आसानी होती है और श्वसन तथा रक्त संचार सुचारू होता है। यदि गाय बछड़े को न चाटे अथवा ठंडी जलवायु की स्थिति में बछड़े के शरीर को सूखे कपड़े या टाट से पोंछकर सुखाएं। हाथ से छाती को दबाकर और छोड़कर कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
नाभ नाल में शरीर से 2-5 सेमी की दूरी पर गांठ बांध देनी चाहिए और बांधे हुए स्थान से 1 सेमी नीचे से काट कर टिंक्चर आयोडीन या बोरिक एसिड अथवा कोई भी अन्य एंटिबायोटिक लगाना चाहिए।
बाड़े के गीले बिछौने को हटाकर स्थान को बिल्कुल साफ और सूखा रखना चाहिए।
बछड़े के वजन का ब्योरा रखना चाहिए।
गाय के थन और स्तनाग्र को क्लोरीन के घोल द्वारा अच्छी तरह साफ कर सुखाएं।
बछड़े को मां का पहला दूध अर्थात् खीस का पान करने दें।
बछड़ा एक घंटे में खड़े होकर दूध पीने की कोशिश करने लगता है। यदि ऐसा न हो तो कमजोर बछड़े की मदद करें।
बछड़े का भोजन (Feeding Calves)
नवजात बछड़े को दिया जाने वाला सबसे पहला और सबसे जरूरी आहार है मां का पहला दूध, अर्थात् खीस। खीस का निर्माण मां के द्वारा बछड़े के जन्म से 3 से 7 दिन बाद तक किया जाता है और यह बछड़े के लिए पोषण और तरल पदार्थ का प्राथमिक स्रोत होता है। यह बछड़े को आवश्यक प्रतिपिंड भी उपलब्ध कराता है जो उसे संक्रामक रोगों और पोषण संबंधी कमियों का सामना करने की क्षमता देता है। यदि खीस उपलब्ध हो तो जन्म के बाद पहले तीन दिनों तक नवजात को खीस पिलाते रहना चाहिए।

जन्म के बाद खीस के अतिरिक्त बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक मां के दूध की आवश्यकता होती है। उसके बाद बछड़ा वनस्पति से प्राप्त मांड और शर्करा को पचाने में सक्षम होता है। आगे भी बछड़े को दूध पिलाना पोषण की दृष्टि से अच्छा है लेकिन यह अनाज खिलाने की तुलना में महंगा होता है। बछड़े को दिए जाने वाले किसी भी द्रव आहार का तापमान लगभग कमरे के तापमान अथवा शरीर के तापमान के बराबर होना चाहिए।

बछड़े को खिलाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बरतनों को अच्छी तरह साफ रखें। इन्हें और खिलाने में इस्तेमाल होने वाली अन्य वस्तुओं को साफ और सूखे स्थान पर रखें।

पानी का महत्व

ध्यान रखें हर वक्त साफ और ताजा पानी उपलब्ध रहे। बछड़े को जरूरत से ज्यादा पानी एक ही बार में पीने से रोकने के लिए पानी को अलग-अलग बरतनों में और अलग-अलग स्थानों में रखें।

खिलाने की व्यवस्था

बछड़े को खिलाने की व्यवस्था इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस प्रकार का भोज्य पदार्थ दिया जा रहा है। इसके लिए आमतौर पर निम्नलिखित व्यवस्था अपनाई जाती है:

बछड़े को पूरी तरह दूध पर पालना
मक्खन निकाला हुआ दूध देना
दूध की बजाए अन्य द्रव पदार्थ जैसे ताजा छाछ, दही का मीठा पानी, दलिया इत्यादि देना
दूध के विकल्प देना
काफ स्टार्टर देना
पोषक गाय का दूध पिलाना।
पूरी तरह दूध पर पालना

50 किलो औसत शारीरिक वजन के साथ तीन महीने की उम्र तक के नवजात बछड़े की पोषण आवश्यकता इस प्रकार है:
सूखा पदार्थ (डीएम) 1.43 किग्रा

पचने योग्य कुल पोषक पदार्थ (टीडीएन) 1.60 किग्र

कच्चे प्रोटीन 315 ग्राम

यह ध्यान देने योग्य है कि टीडीएन की आवश्यकता डीएम से अधिक होती है क्योंकि भोजन में वसा का उच्च अनुपात होना चाहिए। 15 दिनों बाद बछड़ा घास टूंगना शुरू कर देता है जिसकी मात्रा लगभग आधा किलो प्रतिदिन होती है जो 3 महीने बाद बढ़कर 5 किलो हो जाती है।
इस दौरान हरे चारे के स्थान पर 1-2 किलो अच्छे प्रकार का सूखा चारा (पुआल) बछड़े का आहार हो सकता है जो 15 दिन की उम्र में आधा किलो से लेकर 3 महीने की उम्र में डेढ किलो तक दिया जा सकता है।
3 सप्ताह के बाद यदि संपूर्ण दूध की उपलब्धता कम हो तो बछड़े को मक्खन निकाला हुआ दूध, छाछ अथवा अन्य दुग्धीय तरल पदार्थ दिया जा सकता है।
बछड़े को दिया जाने वाला मिश्रित आहार
बछड़े का मिश्रित आहार एक सांद्र पूरक आहार है जो ऐसे बछड़े को दिया जाता है जिसे दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों पर पाला जा रहा हो। बछड़े का मिश्रित आहार मुख्य रूप से मक्के और जई जैसे अनाजों से बना होता है।
जौ, गेहूं और ज्वार जैसे अनाजों का इस्तेमाल भी इस मिश्रण में किया जा सकता है। बछड़े के मिश्रित आहर में 10% तक गुड़ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
एक आदर्श मिश्रित आहार में 80% टीडीएन और 22% सीपी होता है।
नवजात बछड़े के लिए रेशेदार पदार्थ
अच्छे किस्म के तनायुक्त पत्तेदार सूखे दलहनी पौधे छोटे बछड़े के लिए रेशे का अच्छा स्रोत हैं। दलहन, घास और पुआल का मिश्रण भी उपयुक्त होता है।
धूप लगाई हुई घास जिसकी हरियाली बरकरार हो, विटामिन-ए, डी तथा बी-कॉम्प्लैक्स विटामिनों का अच्छा स्रोत होती है।
6 महीने की उम्र में बछड़ा 1.5 से 2.5 किग्रा तक सूखी घास खा सकता है। उम्र बढने के साथ-साथ यह मात्रा बढ़ती जाती है।
6-8 सप्ताह के बाद से थोड़ी मात्रा में साइलेज़ अतिरिक्त रूप से दिया जा सकता है। अधिक छोटी उम्र से साइलेज़ खिलाना बछड़े में दस्त का कारण बन सकता है।
बछड़े के 4 से 6 महीने की उम्र के हो जाने से पहले तक साइलेज़ को रेशे के स्रोत के रूप में उसके लिए उपयुक्त नहीं माना जा सकता।
मक्के और ज्वार के साइलेज़ में प्रोटीन और कैल्शियम पर्याप्त नहीं होते हैं तथा उनमें विटामिन डी की मात्रा भी कम होती हैं।
पोषक गाय के दूध पर बछड़े को पालना

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2 से 4 अनाथ बछड़ों को दूध पिलाने के लिए उनकी उम्र के पहले सप्ताह से ही कम वसा-युक्त दूध देने वाली और दुहने में मुश्किल करने वाली गाय को सफलतापूर्वक तैयार किया जा सकता है।
सूखी घास के साथ बछड़े को सूखा आहार जितनी कम उम्र में देना शुरू किया जाए उतना अच्छा। इन बछड़ों का 2 से 3 महीने की उम्र में दूध छुड़वाया जा सकता है।
बछड़े को दलिए पर पालना

बछड़े के आरंभिक आहार (काफ स्टार्टर) का तरल रूप है दलिया। यह दूध का विकल्प नहीं है। 4 सप्ताह की उम्र से बछड़े के लिए दूध की मात्रा धीरे-धीरे कम कर भोजन के रूप में दलिया को उसकी जगह पर शामिल किया जा सकता है। 20 दिनों के बाद बछड़े को दूध देना पूरी तरह बंद किया जा सकता है।
काफ स्टार्टर पर बछड़े को पालना

इसमें बछड़े को पूर्ण दुग्ध के साथ स्टार्टर दिया जाता है। उन्हें सूखा काफ स्टार्टर और अच्छी सूखी घास या चारा खाने की आदत लगाई जाती है। 7 से 10 सप्ताह की उम्र में बछड़े का दूध पूरी तरह छुड़वा दिया जाता है।
दूध के विकल्पों पर बछड़े को पालना

यह अवश्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि नवजात बछड़े के लिए पोषकीय महत्व की दृष्टि से दूध का कोई विकल्प नहीं है। हालांकि, दूध के विकल्प का सहारा उस स्थिति में लिया जा सकता है जब दूध अथवा अन्य तरल पदार्थों की उपलब्धता बिल्कुल पर्याप्त न हो।

दूध के विकल्प ठीक उसी मात्रा में दिए जा सकते हैं जिस मात्रा में पूर्ण दुग्ध दिया जाता है, अर्थात् पुनर्गठन के बाद बछड़े के शारीरिक वजन का 10%। पुनर्गठित दूध के विकल्प में कुल ठोस की मात्रा तरल पदार्थ के 10 से 12% तक होती है।

दूध छुड़वाना

बछड़े का दूध छुड़वाना सघन डेयरी फार्मिंग व्यवस्था के लिए अपनाया गया एक प्रबन्धन कार्य है। बछड़े का दूध छुड़वाना प्रबन्धन में एकरूपता लाने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बछड़े को उसकी आवश्यकता अनुसार दूध की मात्रा उपलब्ध हो और दूध की बर्बादी अथवा दूध का आवश्यकता से अधिक पान न हो।
अपनाई गई प्रबन्धन व्यवस्था के आधार पर जन्म के समय, 3 सप्ताह बाद, 8 से 12 सप्ताह के दौरान अथवा 24 सप्ताह में दूध छुड़वाया जा सकता है। जिन बछड़ों को सांड के रूप में तैयार करना है उन्हें 6 महीने की उम्र तक दूध पीने के लिए मां के साथ छोड़ा जा सकता है।
संगठित रेवड़ में, जहां बड़ी संख्या में बछड़ों का पालन किया जाता है जन्म के बाद दूध छुड़ाना लाभदायक होता है।
जन्म के बाद दूध छुड़वाने से छोटी उम्र में दूध के विकल्प और आहार अपनाने में सहूलियत होती है और इसका यह फायदा है कि गाय का दूध अधिक मात्रा में मनुष्य के इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है।
दूध छुड़वाने के बाद

दूध छुड़वाने के बाद 3 महीने तक काफ स्टार्टर की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जानी चाहिए। अच्छे किस्म की सूखी घास बछड़े को सारा दिन खाने को देना चाहिए। बछड़े के वजन के 3% तक उच्च नमी वाले आहार जैसे साइलेज़, हरा चारा और चराई के रूप में घास खिलाई जानी चाहिए। बछड़ा इनको अधिक मात्रा में न खा ले इसका ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इसके कारण कुल पोषण की प्राप्ति सीमित हो सकती है।

बछड़े की वृद्धि
बछड़े की वृद्धि वांछित गति से हो रही है या नहीं इसे निर्धारित करने के लिए वजन की जांच करें।

पहले 3 महीनों के दौरान बछड़े का आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है।
इस चरण में बछड़े का खानपान अगर सही न हो तो मृत्यु दर में 25 से 30% की वृद्धि होती है।
गर्भवती गाय को गर्भावस्था के अंतिम 2-3 महीनों के दौरान अच्छे किस्म का चारा और सांद्र आहार दिया जाना चाहिए।
जन्म के समय बछड़े का वजन 20 से 25 किग्रा होना चाहिए।
नियमित रूप से कृमिनाशक दवाई दिए जाने के साथ-साथ उचित आहार दिए जाने से बछड़े की वृद्धि दर 10-15 किग्रा प्रति माह हो सकती है।
बछड़े के रहने के स्थान का महत्व
बछड़ों को अलग बाड़े में तब तक रखा जाना चाहिए जब तक कि उनका दूध न छुड़वा दिया जाए। अलग बाड़ा बछड़े को एक दूसरे को चाटने से रोकता है और इस तरह बछड़ों में रोगों के प्रसार की संभावना कम होती है। बछड़े के बाड़े को साफ-सुथरा, सूखा और अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए। वेंटिलेशन से हमेशा ताजी हवा अन्दर आनी चाहिए लेकिन धूलगर्द बछड़ों के आंख में न जाएं इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।

बछड़े के रहने के स्थान पर अच्छा बिछौना होना चाहिए ताकि आराम से और सूखी अवस्था में रह सकें। लकड़ी के बुरादे अथवा पुआल का इस्तेमाल बिछौने के लिए सबसे अधिक किया जाता है। बछड़े के ऐसे बाड़े जो घर के बाहर हों, आंशिक रूप से ढके हुए और दीवार से घिरे होने चाहिए ताकि धूप की तेज गर्मी अथवा ठंडी हवा, वर्षा और तेज हवा से बछड़े की सुरक्षा हो सके। पूरब की ओर खुलने वाले बाड़े को सुबह के सूरज से गर्मी प्राप्त होती है और दिन के गर्म समयों में छाया मिलती है। वर्षा पूरब की ओर से प्राय: नहीं होती।

बछड़े को स्वस्थ्य रखना
नवजात बछड़ों को बीमारियों से बचाकर रखना उनकी आरंभिक वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और इससे उनकी मृत्यु दर कम होती है, साथ ही बीमारी से बचाव बीमारी के इलाज की तुलना में कम खर्च में किया जा सकता है। बछड़े का नियमित निरीक्षण करें, उन्हें ठीक तरह से खिलाएं और उनके रहने की जगह और परिवेश को स्वच्छ रखें।

https://ec.europa.eu/commission/presscorner/detail/en/QANDA_20_885

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