कोरोना से उत्पन्न आर्थिक संकट मे बकरी पालन को स्वावलम्बन का साधन बनाये

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कोरोना से उत्पन्न आर्थिक संकट मे बकरी पालन को स्वावलम्बन का साधन बनाये

डॉ अशोक कुमार पाटिल एवं डॉ आर के जैन
पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविधालय, महू (म॰ प्र॰)

कोरोना वायरस द्वारा उत्पन्न महामारी ने सम्पूर्ण विश्व को एक आर्थिक संकट मे डाल दिया है l हम सतत समाचारो के माध्यम से देख रहे है की भारत मे लाखों की संख्या मे मज़दूरों का पलायन एक जगह से दूसरी जगह हो रहा है, इससे आप सीधे समझ सकते है की उनके रोजगार सतत जा रहे है l हाल ही मे प्रकाशित आईएलओ मॉनिटर के तीसरे संस्करण ‘कोविड-19 और काम की दुनिया’ में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर करीब 3.3 अरब श्रमिक हैं l करीब दो अरब नौकरियां असंगठित अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्र में हैं और ये ऐसे श्रमिक हैं जिनकी नौकरियां जाने का सबसे ज्यादा खतरा है l भारत मे ही देखे तो लाखों लोगों के सामने रोजगार की एक बड़ी समस्या खड़ी होने वाली है, ओर इस स्थिति से निपटने ओर जो जहा है उसे वही पर स्वावलंबन प्रदान करने मे पशुपालन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है l अगर हम देखे तो खेती में पशुपालन एक महत्वपूर्ण अवयव के रूप में हमेशा से उपयोगी रहा है। महामारी एवं सूखे के क्षेत्र में इसका महत्व और बढ़ जाता है और उसमें भी बकरी पालन सूखे की दृष्टिकोण व छोटे किसानों के लिहाज से काफी प्रभावी है, क्योंकि इसमें लागत कम होने के साथ ही साथ आजीविका के विकल्प भी बढ़ जाते हैं। अब लोगो को पशुपालन के प्रति जागरूक होना चाहिए ओर सरकार को भी इस विषय पर विशेष ध्यान देना चाहिये ओर कई योजनाओ के माध्यम से कोशिश करनी चाहिये की पशुपालन एक मुख्य व्यवसाय के रूप मे सामने आए l
भारत मे खेती और पशु पालन दोनों एक दूसरे के पर्याय माने जाते हैं, और हमारी आजीविका इन्हीं दो के इर्द गिर्द अधिकांशतः घूमती रहती है। खेती कम होने की दशा में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन पशुपालन हो जाता है। सरकार के सामने अब एक बहुत बड़ी चुनोति होगी की इन प्रवासी मजदूरों को उनके क्षेत्र मे रोजगार उपलब्ध कराना ओर इस स्थिति मे देखे तो बकरी पालन स्वावलंबन का एक सस्ता एवं अच्छा रास्ता हो सकता है बशर्ते उनको इसके फ़ायदों से अवगत कराना होगा l गरीब की गाय के नाम से मशहूर बकरी हमेशा ही आजीविका के सुरक्षित स्रोत के रूप में पहचानी जाती रही है। बकरी छोटा जानवर होने के कारण इसके रख-रखाव का खर्च भी न्यूनतम होता है। इसी के साथ साथ इस व्यवसाय मे जोखिम भी कम रहता है। सूखे के दौरान भी इसके खाने का इंतज़ाम आसानी से हो सकता है, इसके साज-संभाल का कार्य महिलाएं एवं बच्चे भी कर सकते हैं और साथ ही आवश्यकता पड़ने पर इसे आसानी से बेचकर अपनी जरूरत भी पूरी की जा सकती है।
अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से छोटे तथा भूमिरहित किसानों के लिये बकरियाँ रीढ़ की हड्डी साबित होती है। बकरी जुगाली करने वाला पशु है। यह पूरा खाना एक बार में न खाकर थोड़ा-थोड़ा खाना पसंद करती है। सामान्यतया बकरियों मे सारे आवश्यक पोषक तत्वो की पुर्ति अच्छे चरागाहों मे चरने से हो जाती है। अगर इनके चरने के लिए आसपास जगह उपलब्ध हो, तो ये शरीर की आवश्यकता अनुसार पोषक तत्व गृहण कर लेती है। पर्याप्त मात्रा मे अगर चरागाह उपलब्ध नही हो तो बकरियों को बांधकर भी पाला जा सकता है ।

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बकरी पालन को स्वावलंबन का जरिया बनाते समय हमे कुछ महत्वपूर्ण बातो को ध्यान मे रखना चाहिये अन्यथा पशुपालक को भारी नुकसान भी हो सकता है ओर हम समय के उस दौर मे खड़े है जिसमे नुकसान मे जाना या रिस्क लेना हमारे लिए एवम परिवार के लिए बिलकुल भी उचित नहीं है l इसलिए पशुपालक भाइयो बकरी पालन से अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए निम्न बातो पर जरूर ध्यान देवे l
बकरी पालन प्रारंभ करने से पहले उनकी नशलों के बारे मे अच्छे से जानकारी हासिल कर लेना चाहिये ताकि हमारी उपयोगिता के हिसाब से हम नस्ल का चयन कर सके, वैसे तो बकरियो की बहुत सारी नश्ले होती है परंतु हमारे यहा मुख्य रूप से अगर जमुनापरी, सिरोही, बीटल एवं बरबरी को पाले तो अच्छा लाभ होगा l नस्ल चयन के साथ ही साथ हमे इनके वैज्ञानिक तरीके से रख रखाव और खान पान की जानकारी होना भी बहुत जरूरी है l
बकरियाँ कई प्रकार के खाघ सामग्री जैसे- झाडियों के पत्ते, जंगली घास, वृक्षो की पत्तियाँ, खरपतवार एवं अन्य प्राकृतिक पोधों का सेवन भली-भांति करती है। इन चरागांहों मे चराने समय यह बात ध्यान देनि चाहिये की बकरियाँ ठंड और बरसात के प्रति काफी संवेदन शील होती है, अतः अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिए भेजना चाहिए और बरसात में गीली जगह या दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए।
अगर चराने के लिए जगह पर्याप्त है, तो दाना देने की भी उतनी जरूरत नहीं पड़ती, परंतु अगर ज्यादा वजन एवं उत्पादन लेना है तो हमे कुछ दानो का मिश्रण देना होगा l समान्यत: देखा गया है की गांवो मे लोग बकरी पालन को मुख्य व्यवसाय के रूप मे नहीं करते इसलिए वो इसके पोषण पर ज्यादा ध्यान नहीं देते है ओर जो इससे मिल जाता है, उसी मे संतुष्ट हो जाते है l परंतु किसान भाई लगभग 80 से 90 प्रतिशत तो मेहनत बकरियो के रख रखाव पर कर ही रहे है, बस थोड़ा सा अतिरिक्त ओर ध्यान दे लेवे तो इनको अच्छा लाभ मिल सकता है, जैसे की गाँव मे आहार के साथ खनिज मिश्रण नहीं मिलाते है जो की आहार का सर्वाधिक महत्तवपूर्ण अवयव है l ऐसा पाया गया है की खनिज मिश्रण देने से लगभग 25 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन मे बढ़ोतरी होती है साथ ही मेमनो की वृद्धि भी तेजी से होती है एवं जनन संबंधी परेशानियों मे भी कमी आती है l जब इतने सारे लाभ एक मिश्रण खिलाने से हो सकते है तो क्यो न इस चीज को महत्तव दिया जावे, इसलिए सभी पशुपालको भाइयो को इसका ज्ञान होना बहुत जरूरी है l
गांवो मे एक चीज ओर देखि गयी है की बकरी पालक बंधु बकरियो को टीका लगवाने मे मुंह मोड़ते है ओर जब सरकारी डॉक्टर ओर उनका स्टाफ जाता है या कैम्प लगाते है तो अपने पशुओ को लेकर आने मे भी पूरा सहयोग नहीं करते है l टिकाकरण को लेकर कुछ भ्रांतिया फैली हुई है परंतु हम आपको बता देवे की टिकाकरण आपकी बकरी को बीमारियो से बचाने का एक सस्ता ओर आसान तरीका है l वेक्सीन की महत्ता आप इससे ही समझ सकते है की सारा विश्व आज कोरोना महामारी के लिए टीका बनाने मे लगा है ताकि हम इस बीमारी से भविष्य मे बचे रहे l इसलिए सभी बकरी पालक भाइयो को अपने क्षेत्र के डॉक्टर से मिलकर मुख्यत: बकरी प्लेग, एंटेरोटोक्सेमिया, गोट पॉक्स, ऐन्थ्रेक्स ओर खुरपका मुहपका बीमारी का टीका अपनी बकरियो को जरूर लगवाना चाहिए l
दुर्भाग्य से बकरियां अक्सर विभिन्न कीड़ों और परजीवियों से ग्रस्त रहती हैं। और हमारे पशुपालक भाईयो को इन कीड़ो के बारे मे जानकारी न होने के कारण काफी हानि उठानी पड़ती है l इसलिए अपनी बकरियों के शरीर से समय-समय पर कीड़े निकालने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेवे ओर उचित दवाई देकर इस हानि से बचने का प्रयास करे l
एक बात ओर हमारे ध्यान मे आती है की पशुपालक भाई अपने घर के सामने खुली जगह मे ही बकरियो को बांध देते है जिससे की उन पर वातावरण के बदलाव का सीधा सीधा प्रभाव पड़ता है ओर इस बदलाव को सहन करने मे उनकी अधिकतम ऊर्जा खर्च हो जाती है l अगर पक्का घर नहीं बना सकते तो इनके लिए एक कच्चा घर या त्रिपाल या फालतू बोरो को सिलकर कुछ ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे की वे सीधे तौर पर वातावरण के संपर्क मे न आवे l
जैसा की समाचारो के माध्यम से विदित हो रहा है की कोरोना के साथ जंग लंबी चलेगी ओर रोजगार के बहुत सारे संसाधन इस महामारी से बंद भी हो जाएंगे l ऐसी स्थिति मे इतने सारे लोगो को रोजगार उपलब्ध कराना सरकार के सामने एक बड़ी चुनोती रहेगी l उत्पादन के हर साधन का पूरा – पूरा इस्तेमाल किए बिना देश को खुशहाल नहीं बनाया जा सकता है। लगातार बढ़ते बकरी मांस ओर दूध की मांग को ध्यान मे रखकर हम कह सकते है की बकरी – पालन व्यवसाय का भविष्य उज्ज्वल होगा यह लोगो को रोजगार देने मे तथा माननीय प्रधानमंत्री जी के आत्म-निर्भर भारत अभियान मे भी एक महत्तवपूर्ण भूमिका निभा सकता है l बस, जरूरत इस बात की है कि बकरी – पालन का धंधा वैज्ञानिक एवं आधुनिक ढंग से किया जाए ताकि इस व्यवसाय से अधिक से अधिक आमदनी हासिल कर सके ।
इस व्यापार को चलाने के लिए मार्केटिंग की आवश्यकता बहुत अधिक होती है, और ऐसा देखा गया है कि किसान माल तो तैयार कर लेता है परंतु उसे अच्छा दाम लेने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है l इसी कारण जब किसानो के बीच व्यापारिक दृष्टि से बकरी पालन का विषय जाता है तो वो कहते है कि इनको पालना तो आसान है परंतु इनको अच्छे दामों पर बेचना कुछ कठिन कार्य है l इस समस्या के समाधान के लिए सरकार को कुछ विचार करना होगा, उनके प्रोडक्ट को निर्माण स्थान (लोकलीय) पर ही खरीदना होगा l सरकार किसानो कि फसलों को एक न्यूनतम सपोर्ट मूल्य पर खरीदकर और संग्रहीत करती है, ऐसा ही कुछ पशुपालन के बारे मे भी सोचना होगा, कुछ आयात निर्यात कि योजनाये बनानी होगी जिसमे किसान की सीधी भागेदारी हो जिससे कि उन्हे अपने प्रोडक्ट का उचित मूल्य मिल सके l

सफल बकरी पालन की सम्पूर्ण जानकारी

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