गौशाला में पशुओं का पृथक्कीकरण कैसे करें

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गौशाला में पशुओं का पृथक्कीकरण कैसे करें
अजय कुमार, दीप नारायण सिंह, ममता, रजनीश सिरोही एवं यजुवेन्द्र सिंह
पशुधन उत्पादन एवं प्रबन्धन विभाग, दुवासू, मथुरा।

पृथक्कीकरण का एक आदर्श गौशाला प्रबन्धन में महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि पृथक्कीकरण के आधार पर ही पशुओं का समुचित प्रबन्धन किया जा सकता है। पृथक्कीकरण के द्वारा हम अपने पशुओं को स्वस्थ एवं निरोगी रख सकते हैं, साथ ही ऐसे पशुओं से उसकी पूर्ण क्षमता के अनुसार दूध उत्पादन भी प्राप्त कर सकते हैं। पृथक्कीकरित पशुओं में प्रजनन सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं जैसे गर्भ का ना रूकना, मदकाल का सम्यक रूप से ना आना, अनुउर्वरता की समस्या होना इत्यादि के होने की समस्या अत्यन्त ही कम रहती है, क्योंकि अधिकतर समस्यायें संतुलित खान-पान एवं रखरखाव के कारण होती हैं। समुचित पृथक्कीकरण के द्वारा हम पशुओं को उनकी आयु, उत्पादन, प्रजनन अवस्था, गर्भावस्था, समुचित स्वास्थ्य एवं बीमारी के आधार पर संतुलित आहार प्रदान कर सकते हैं एवं इस आधार पर हम अच्छे पशु का चयन कर सकते हैं, साथ ही न्यूनतम लागत में हमें अधिकतम लाभ भी प्राप्त होगा।
गौशाला में पशुओं को पृथक्कीकरण करने की विधियां-
गौशाला में पशुओं को पृथक्कीकरण करने हेतु विभिन्न आधार हैं, जिसके अनुसार हम पशुओं को उनकी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं, लिंग, नस्ल, जाति, वंश, गर्भित, बीमारी के अनुसार विभिन्न भागों में पृथक्कीकरित कर सकते हैं साथ ही उनका समुचित प्रबन्धन भी कर सकते हैं-
1. प्रजाति/जाति के आधार पर- पशुओं को उनकी प्रजाति के अनुसार विभिन्न बाड़ों/शेड. में पृथक्कीकरित कर सकते हैं जैसे गौवंशीय एवं महिष वंशीय पशु । इस व्यवस्था के अनुसार रखरखाव एवं उत्पादन के आधार पर हम दाना, हरा चारा एवं सूखे चारे की मात्रा का निर्धारण कर सकते हैं।
2. नस्ल के आधार पर- गौशाला को अत्यधिक आकर्षक एवं समरूपता लाने हेतु गौशाला के विभिन्न पशुओं को उनकी नस्ल के आधार पर पृथक्कीकरित कर सकते हैं। जैसे साहीवाल, गिर, लाल सिन्धी, हरियाना, मुर्रा, भदावरी आदि।
3. आयु के आधार पर- गौशाला में हम पशुओं को उनकी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे नवजात वत्स अर्थात दूध पीने की अवधि, युवावस्था, परिपक्वास्था, दुग्धावस्था, शुष्कावस्था एवं प्रौढावस्था आदि विभिन्न भागों में पृथक्कीकरित कर सकते हैं।
क. नवजात वत्स- सामान्यतया सभी नस्ल के नवजात बछड़ों को प्रथम तीन माह की अवस्था तक बिना लिंग भेदभाव के एक साथ रखते हैं, परन्तु साथ ही यह भी ध्यान देते हैं कि एक बाड़े में 30 से अधिक बछड़े/बछिया नही हों। यदि पेन/बाड़ों की समुचित उपलब्धता हो तो 3-6 माह की उम्र के बछड़े/बछियाओं को हम पृथक बाड़ें में रख सकते हैं साथ ही हम उन्हें काफ स्टार्टर, मिल्क रिप्लेसर आदि उनकी उम्र/वजन के आधार पर दे सकते हैं, जिससे हमें दूध उत्पादन व्यवसाय में अत्याधिक लाभ होगा। अन्यथा की स्थिति में यदि पेन/बाड़ों की समुचित उपलब्धता नहीं हो तो हम 1-6 माह की उम्र तक हम गाय के वच्चों को एक साथ रख सकते हैं, परन्तु यह संख्या एक बाड़े में 30 से अधिक नही होनी चाहिये। छःमाह की आयु होने के उपरान्त नवजात बछडों/बछियाओं को उनके लिंग के आधार पर पृथक्कीकरित कर देना चाहिये, क्योंकि यह अवस्था यौनाप्रारम्भ अवस्था होती है। एक अच्छा नन्दी/सांड़ अथवा गाय प्राप्त करने के लिये यह अत्यन्त आवश्यक है कि 6 माह की उम्र के पश्चात हम लिंग के आधार पर उन्हें अलग-अलग कर दें। तत्पश्चात 1-2 वर्ष के नर एवं मादा पशुओं को हमें अलग बाड़े. में रखना चाहिये।
सामान्यतया गौशालाओं में देशी गौवंशीय पशु ही पाले जाते हैं और नवजात बच्चों से मां का दूध नही छुड़ाया जाता है, परन्तु विदेशों एवं विदेशी गौवंशीय पशुओं में यह प्रक्रिया अपनाई जाती है, तथा इसके आधार पर भी पृथक्कीकरण करते हैं।
ख. परिपक्वता अवस्था के आधार पर- गौशाला में बछड़ों/बछियों को परिपक्वता अवस्था के आधार पर भी पृथक्कीकरण कर सकते हैं। परिपक्वता अवस्था का आकलन आयु अथवा शारीरिक वजन के आधार पर की जाती है।
ग. गर्भित अवस्था के आधार पर-गर्भित पशुओं को समुचित आहार प्रदान करने हेतु पृथक्कीकरण अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि गर्भित पशु के गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास हेतु अतिरिक्त आहार की आवश्यकता होती है। अतः प्रथम तीन माह, तीन से छह एवं छह से नौ माह के गर्भस्थ पशु को अलग-अलग बाडे में पृथक्कीकरित कर सकते हैं, एवं उनका समुचित प्रबन्धन कर सकते हैं।
घ. दुधारू अवस्था के आधार पर- पशुओं को उनके दूध उत्पादन क्षमता के आधार पर भी हम
पृथक्कीकरण कर सकते हैं तथा दूध उत्पादन के आधार पर उनको प्रदान किये जाने वाले आहार का भी निर्धारण कर सकते हैं।
ड. शुष्क अवस्था के आधार पर- शुष्क पशुओं को दुधारू पशुओं से अलग रखते हैं, क्योंकि अधिकांशतः शुष्क पशु गर्भित होते हैं।
च. प्रजनन अवस्था के आधार पर-जो नर अथवा मादा पशु प्रजनन हेतु प्रयोग मे लाने हैं, उनको भी हमें अलग बाड़े में रखना चाहिए, क्योंकि प्रजनन क्षमता के समुचित विकास एवं गर्भधारण के लिये प्रजनन काल से पूर्व उनका उचित पोषण प्रबन्ध करना अत्यन्त आवश्यक है।
छ. बीमारी के आधार पर- बीमार पशुओं को हमेशा स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिये, जिससे छुआछूत की बीमारी/संक्रमण स्वस्थ पशुओं में नही फैले। इसके लिये गौशाला में एक तरफ आइसोलेशन बाड़ा बनाते हैं, साथ ही नये खरीदे पशु अथवा मेले/प्रदर्शनी से लौटे पशु को भी कम से कम 30 दिन के लिये क्वारनटाइन बाड़ा में अपनी निगरानी में रखना अत्यन्त आवश्यक है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गौशाला में पशुओं का पृथक्कीकरण के द्वारा हम एक आदर्श, स्वस्थ एवं आर्थिक रूप से स्वावलम्बी गौशाला स्थापित कर सकते हैं, साथ ही कम लागत में अधिक लाभ कमा सकते हैं।

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