पशुपालकों द्वारा पशुरोग के इलाज के लिए किए जाने वाले कारगर घरेलू नुस्खा

0
380

पशुपालक की अपनी पशु चिकित्सा।

1.टिंचर आयोडिन- इस दवाई को घाव साफ करने के पश्चात लगाया जाता है। कीटाणुओं को खत्म कर घाव ठीक हो जाता है। आवश्यकतानुसार गहरे घाव में दवा की पट्टी बनाकर चिमटी से रख देते हैं ,ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिये। यह जीवाणु नाशक एवं उत्तेजक होने से खून का संचालन भी बढ़ाती है। जिससे घाव शीघ्र ठीक हो जाता है।

2.टिंचर बेन्जोइन- इस दवा को ताजा घाव से बहते हुये खून को बन्द करने हेतु लगाया जाता है यदि पशु का किसी वजह से सींग टूट जाय तो सींग को साफ करने के बाद पट्टी बांधे, उस पर इस दवा को डालकर भिगो दें। कुछ देर में पट्टी चिपक जायेगी तथा खून का रिसाव एक दम बन्द हो जायेगा। यदि पशु को ठंड लग जाये या निमोनिया हो जावे तो आधा बाल्टी गर्म पानी में 1 से 2 चम्मच दवा डालें तथा इसकी भाप पशु को सूघांयें (बफारा दें)

3.बोरिक एसिड पाउडर- यह गंधहीन, एन्टीसेप्टिक, सफेद पाउडर होता है। इस पाउडर को सीधे घाव पर लगाया जाता है। बोरिक पाउडर व ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिलाकर पशु के होठ, जीभ के छालों पर लगाने से आराम मिलता है। घाव थनों पर 1:2 अनुपात (बोरिक पाउडर-वैसलीन) में लगाये।

4.मैगनेषियम सल्फेट-यह सफेद, गंधहीन, कडवा, रवा के रूप में होता हैं।

(1) कब्ज होने पर- छोटे पशु 90-100 ग्राम, बडे़ पशु 500 ग्राम पानी में घोलकर एवं बत्तीसा 100 ग्राम मिलाकर नाल द्वारा आराम से पिलावें आवष्यकतानुसार 8-10 घण्टे बाद पुनः एक खुराक और दी जा सकती है।

(2) बुखार में-200-300 ग्राम (कल्मी शोडा मिलाकर देना चाहिये)

(3) सडे घाव में-दवा के गाढे घोल में कपड़ा गीला कर रख दिया जाता है। एक दो दिन में सडा भाग गल जाता है। व घाव ठीक होने लगता है। पशु के अंग पर चोट, सूजन मोंच हो तो 2 लीटर पानी में 100 ग्राम दवा डाल कर सेंक करें।

READ MORE :  MASTITIS METRITIS AGALACTIA IN SWINE

5.जिंक आॅक्साइड- यह स्वादहीन, गंधहीन, सफेद रंग का पाउडर होता है। इसे गीली खाज खुजली में लगाया जाता है। इसको मलहम के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

6.लाल दवा- (पोटासियम परमेग्नेट) यह गंधहीन, काले रंग के बारीक दानों के रूप में होती है। इसे पानी में मिलने से पानी का रंग गुलाबी हो जाता है यह एन्टीसेप्टिक, डिसइन्फेक्टेन्ट का कार्य करता है।

दवा का 1 प्रतिशत घोल घावों, थन, सडी पूॅंछ आदि को धोने एवं साफ करने के लिये काम आती है।
खुरपका-मुहपका रोग में इसके घोल से पशुओं खुर, मुंह साफ किये जाते है।
सर्प काटने के ताजे घाव पर दवा का पाउडर लगाने से लाभ मिलता है।

धूनी (फ्यूमिगेषन) देने हेतु फार्मेल्डिहाइड घोल के साथ मिलाकर उपयोग करते है।
एन्टीडोट-अफीम, मारफीन, एल्कोलाइडल जहर।

7. तारपीन का तेल (टरपेनटाईन आॅयल) यह रंगहीन, तीखा होता है तथा अलग तरह की गंध होती है।

पशु के घाव में कीडे़ (मेगोट्स) पड़ जायें तो इस तेल को लगाने से कीड़े मर जाते हैं और घाव पर मक्खियां भी नहीं बैठतीं।
पशु को आफरा (पेट फूलना) में 30 मि.ली. तारपिन का तेल और 250 ग्राम मीठा तेल (अल्सी, मॅूगफली, तिली) मिलाकर पिलायें। आवष्यकतानुसार एक खुराक और दें। पशु का आफरा कम हो जायेगा।
आधा बाल्टी गर्म पानी में 20 मि.ली. तारपिन का तेल डालें तथा निमोनिया/ठण्ड से पीड़ित पशु को बफारा देने से लाभ मिलता है।

8. कैरन तेल (Carron oil)- चूने का पानी और अलसी का तेल बराबर मात्रा मिलाने पर कैरन तेल बन जाता है। इसमें थोड़ा सा कपूर मिलायें। इस तेल को जले हुये भाग पर लगाने से जल्द आराम मिल जाता है।

9.अरण्डी का तेल (Castor oil)- यह एक हल्के पीले रंग का वनस्पति तेल है। इसकी कुछ बूॅदें आंख में डालने से कचरा आसानी से निकल जाता है। यह परगेटिव एवं हल्का एस्ट्रिनजेन्ट होता है।
पशु को कब्ज होने पर-छोटे पशु 30 मि.ली., बडे़ पशु को 1/2-1 लीटर पिलायें।
10.एक्रीफलेविन (Acrifiavine) यह एक नारंगी रंग पाउडर हैं यह जीवाणुनाषक हैं दवा का 1 भाग और 1000 भाग पानी मिलाकर घोल तैयार किया जाता है। इसका उपयोग एन्टी सेप्टिक के रूप में किया जाता हैं।

READ MORE :  Monsoon nearing, fear of lumpy skin disease in cattle resurfaces

11. गंधक का मलहम (Sulphur Ointment) गंधक एक पीले रंग का ठोस पदार्थ होता है। यह मलहम गंधक पाउडर और बैसलीन के 1ः8 के अनुपात में मिलाकर बनाया जाता है। पशु के खाज खुजली के अंग को साफ कर इस मलहम को लगाया जाता है। गंधक से गोल्डन लोषन तैयार किया जाता है।

12. नीला थोथा-(Copper Sulphate) यह कणदार, नीले रंग का होता है। यह कृमिनाषक, परजीवीनाषक एवं कास्टिक के रूप में उपयोग होता है।

13. गैमेक्सीन (Gammaxene) यह एक सफेद पाउडर होता है। कीटनाषक परजीवीनाषक है। पशु के शरीर पर जू, किलनी, पडने पर कण्डे की राख में मिलाकर लगाने से जू किलनी मर जाते हैं। दवा लगाने के पूर्व पशु के मुॅह पर मुसीका जरूर लगायें। ध्यान रहे दवा को पशु न चाटें।

14. अनोमियम कार्बोनेट (Ammonium Carbonate) यह एक सफेद पाउडर होता है, अनोमिया की गंध आती है। निम्नानुसार दवाओं में मिलाकर प्रयोग में लाई जाती है।

पोटासियम क्लोराइड-30 ग्राम
जेठीमध (मुलेठी)-60 ग्राम
अमोनियम कार्बोनेट-30 ग्राम
उक्त मिश्रण के तीन बराबर भाग करके दिन में तीन बार पशु को 1/2 किलो गुड़ में मिलाकर दें। दवा खांसी, सर्दी, श्वांस नली के रोग के लिये उपयोगी है।

15. कार्बोलिक एसिड-(Carbolic acid) मीठे स्वाद और तीखी गंध वाला यह रवेदार, सफेद रंग का होता है। हवा में खुला रखने पर आद्रता आ जाती है। इसका उपयोग रोगाणुरोधक, कीटाणुनाषक के रूप में किया जाता है। कुत्ते के काटे जाने पर ताजे घाव पर इसे लगाना लाभदायक होता है।

16. कपूर (Camphor) यह रंगहीन, विषेष तरह की गंध आती है, ज्वलनषील और हवा में खुला रखने पर उड़ जाता है। इसे रोगाणुरोधक, उत्तेजक पदार्थ, कफोटत्सारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। सर्दी, जुकाम में लाभकारी हैं।

READ MORE :  मानसून पूर्व पशुओं का स्वास्थ्य प्रबंधन

17. ग्लिसरीन (Glycerine) यह रंगहीन, गंधहीन गाढ़ा सा द्रव चखने पर मीठा होता है। यह एण्टीसेप्टिक, रेचक के रूप में उपयोग करते हैं।

18. सामान्य औषधियां- (पशु पालक घर पर स्वयं बना सकते है।)
1.जेर न गिरने पर (Retention of placenta)
बडे़ पशु हेतु-
बांस के पत्ते -400 ग्राम
खारी नमक -200 ग्राम
दोनों को एक लीटर पानी में उबाल कर पशु को पिलायें।

2. कब्जियत मेंः-
मेगनेशियम सल्फेट-250 ग्राम
सोंठ -20 ग्राम
कालानमक -50 ग्राम
नौसादर – 25ग्राम
सभी को गुड या तेल में दिन में एक बार दें।

1.भूख उत्तेजक-
कलमी शोरा -10 ग्राम
नौसादर – 25 ग्राम

अमोनियम कार्ब. – 10 ग्राम
खाने का सोड़ा – 50 ग्राम
गुड या1/2 ली. पानी में दिन में एक बार

2.दस्त रोकने में
खड़िया मिटटी – 100 ग्राम एक लीटर चावल के माड में या
कत्था – 25 ग्राम पानी में घोलकर नाल से पिलावें
खाने का सोड़ा – 50 ग्राम 1/2 दिन में दो बार
3.सर्दी/खांसी में-
नौसादर – 25 ग्राम
मुलेठी – 50 ग्राम
अजवाईन- 10 ग्राम 1/2 भाग चटनी बनाकर खिलायें
सौंठ – 25 ग्राम दिन में दो बार
गुड़ – 500 ग्राम

प्राथमिक चिकित्सा का बनियादी प्रषिक्षण स्कूल में, काम करने के स्थानों में सिखाया जाना चाहिये। हमारे आधुनिक और तनाव-पूर्ण जीवन के लिए अनिवार्य है कि हम सभी लोग यह चिकित्सा प्रणाली सीखें तथा आपात्कालीन परिस्थिती में प्राथमिक उपचार से अपने पशु की रक्षा कर सकें।

सलाहाकार:-
डाॅ. निष्मा सिंह

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON