घोड़ा पालन: एक लाभकारी व्यवसाय

0
2681

घोड़ा पालन: एक लाभकारी व्यवसाय

विगत कुछ दशकों से घोड़ा पालन तथा घुड़सवारी में लोगों का रुझान धीरे धीरे कम होते जा रहा था लेकिन फैशन के दौर में तथा वेस्टर्न कल्चर के नजदीक आते हुए भारतीय संस्कृति तथा समाज में इसका यानी कि घुड़सवारी का कल्चर पुनः लौट आया है। अब देखने को मिलता है कि बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों में हॉर्स राइडिंग सिखाया जाता है। लड़के, लड़कियां खूब इंटरेस्ट लेकर हॉर्स राइडिंग सीखते हैं। कुछ-कुछ फार्म हाउस, इंटरटेनमेंट पार्क में घोड़ी को रखा जाता है तथा लड़के लड़कियां उस पर चढ़कर फोटो खिंचवाते हैं तथा सोशल मीडिया पर डाल कर खुश होते हैं ।फार्म हाउस में घोड़े पाले जा रहे हैं। देश के बड़े-बड़े शहरों में स्टड फार्म खुल रहे हैं जहां पर लड़के लड़कियां घुड़सवारी का मजा ले रहे हैं तथा सीख रहे हैं ।फिल्म तथा सीरियल या डॉक्यूमेंट्री में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। घोसवारी को लोग अब स्टेटस सिंबल मानने लगे हैं जो कभी सैकड़ों साल पहले हुआ करता था। घोड़ा रखना या घुड़सवारी करना ना केवल शौक का चीज रह गया है बल्कि इसका इस्तेमाल हॉर्स थेरेपी में भी किया जा रहा है। विशेषज्ञों द्वारा ऐसा दावा किया जाता है कि हर्ष थेरेपी में एक स्ट्रेस रिलीवर हार्मोन का स्राव होता है जो मनुष्य के स्ट्रेस को कम करता है तथा मनुष्य में प्रसन्नता लाता है।
घोड़ा मनुष्य से सम्बंधित संसार का सबसे प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है. यह काफी वफादार पशु है जो आज से नहीं बल्कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही देश के कई राजघरानों में मौजूद है. पहले राजा-महाराजा घोड़ों का सबसे ज्यादा मात्रा में इस्तेमाल करते थे. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा जीवन सवारी के साधनों में बदलाव होता गया और गाड़ियों, रिक्शे आदि का चलन बढ़ता चला गया. बाद में गाड़ियों के बाद भी उनका लगाव घोड़ों के प्रति कम नहीं हुआ. बेहतर नस्ल वाले घोड़ों को फौज में इस्तेमाल किया जाने लगा. बता दें कि जो भी लोग घोड़े पालन का कार्य करते है और उनकी अच्छी तरह से देखरेख का कार्य करते है वह काफी अच्छी कमाई करते है. वह बेहतरीन नस्ल के घोड़ों को पालकर उनको घुड़सावरी के शौकीन, घोड़ों को खेल में आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं.

यदि आपके पास “पर्याप्त भूमि – पर्याप्त समय ” उपलब्ध है तो आप घोड़े पालने का आनंद उठा सकते हैं। कुछ समय बाद घोड़ों और इंसानों के बीच विकसित होने वाला भावनात्मक जुड़ाव बेमिसाल होता है। घोड़ा बहुत बुद्धिमान और भावुक पशु होता है जो आपका जीवन बदल देगा। घोड़ों के साथ पारस्परिक क्रिया तनाव मुक्त करने वाली सबसे अच्छी गतिविधियों में से एक है। हालाँकि, यदि आप अपनी संपत्ति में घोड़े पालने का फैसला करते हैं तो आपको पूरी तरह से तैयार होना पड़ेगा और आवश्यक प्रतिबद्धता के साथ-साथ वित्तीय समस्या पर भी विचार करना होगा। घोड़ों या किसी भी अन्य मवेशी को एक दिन से ज्यादा अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। घोड़े पालने का अर्थ है, वर्ष के 365 दिन उनकी देखभाल करना, निरीक्षण करना, साफ-सफाई करना, उन्हें खिलाना-पिलाना और समस्याओं का समाधान करना। इसलिए, यदि आप सप्ताहांत के लिए कहीं जाना चाहते हैं तो आपको अपने घोड़ों का ध्यान रखने के लिए किसी अनुभवी और भरोसेमंद व्यक्ति को नियुक्त करना चाहिए। इसके अलावा, यदि आपके पास विशेष आवश्यकताओं वाले घोड़े हैं और/या यदि आपके खेत में वर्ष के ज्यादातर समय पर्याप्त चारा नहीं उगता तो आपको अपने प्रत्येक घोड़े को खिलाने के लिए प्रति माह 15000-20000 खर्च करने पड़ेंगे। इसमें आपको घोड़े रखने के लिए एक अच्छी और वैध संपत्ति के निर्माण और रखरखाव से संबंधित लागतों के साथ घोड़े खरीदने की लागत , पशु चिकित्सक की लागत (सामान्य और आपातकालीन), घोड़े के विभिन्न उपकरणों की लागत जोड़ने की भी जरुरत होती है।

पाले जाने वाले एक घोड़े का औसत जीवनकाल 30 वर्ष होता है। एक औसत घोड़ा पांच वर्ष की आयु में अपनी प्रजनन अवधि में पहुंचता है। उससे पहले, घोड़े पर सवारी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसकी कंकाल और हड्डियां पूरी तरह से विकसित नहीं होती हैं। रेस में दौड़ने वाले घोड़ों पर आमतौर पर 1-1.5 वर्ष में सवारी शुरू कर दी जाती है, और इसीलिए आमतौर पर उन्हें 6 वर्ष की आयु में सेवामुक्त कर दिया जाता है। उनमें से कुछ हमेशा के लिए अपाहिज हो जाते हैं और कइयों को 3 वर्ष की आयु तक मार दिया जाता है। चूँकि, आप अपने घोड़ों के साथ लम्बे समय तक रिश्ता बनाना चाहते हैं इसलिए आपको उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें सम्मान के साथ अपना जीवन बिताने का मौका देना चाहिए।

घोड़ा पालन का इतिहास (History of Horse breed):

घोड़े को पालतू बनाने का इतिहास काफी अज्ञात है. कई लोगों का मत है कि सात हजार वर्ष पूर्व दक्षिणी रूस के पास आर्यों ने पहली बार घोडा पालन का कार्य शुरू किया था. बाद में इस बात को कई लेखकों और विज्ञानवेताओं ने इसके आर्य से जुड़े इतिहास को गुप्त रखा. वास्तविकता यही है कि अनंतकाल पूर्व हमारे पूर्वजों आर्यों ने इस घोड़ें को पालतू बनाने का कार्य किया. बाद में यह एशिया महाद्वीप से यूरोप तक और फिर बाद में अमरीका तक फैला. घोड़ों के इतिहास पर लिखी गई प्रथम पुस्तक शालिहोत्र है जिसे शलिहोत्र ऋषि ने महाभारत काल के समय पूर्व लिखा था. भारत में लंबे समय से अनिश्चिकाल से देशी अश्व चिकित्सक को शलिहोत्री कहते है.

READ MORE :  COMMON HORSE DISEASES

घोड़े की नस्लें (Horse Breeds):

घुड़सवारी को एक अंतराष्ट्रीय खेल का दर्जा मिला हुआ है. अगर हम भारत में घोडा पालन की बात करें तो घोड़ों का पालन अधिकतर राजस्थान, पंजाब, गुजरात, और मणिपुर में किया जाता है. देश में इन घोड़ों की अलग-अलग नस्लें पाई जाती है. अगर अव्वल दर्जे के घोड़े की बात करें तो मारवाड़ी और कठियावाड़ी को अव्वल दर्जे का घोड़ा कहा गया है

मारवाड़ी घोड़ा-

इस घोड़े का इस्तेमाल राजाओं के जमाने में युद्द में किया जाता था. इसलिए कहावत है कि घोड़ों के शरीर में राजघरानों का लहू दौड़ता है. राजस्थान के मारवाड़ में इस नस्ल के बहुतायत घोड़े पाए जाते है. इन घोड़ों की लंबाई 130 से 140 सेमी और ऊंचाई 150 से 160 सेमी तक होती है. इन घोड़ों का इस्तेमाल खेल प्रतियोगिताओं, सेना के युद्धों, और राजघरानों की शान को बढ़ाने के लिए करते है.एक घोड़ा कई लाक तक कीमत में बिकता है.

कठियावाड़ी घोड़ा-

इस घोड़े का जन्मस्थली गुजरात का सौराष्ट्र इलाका माना जाता है.इस घोड़े की नस्ल काफी बढ़िया मानी जाती है.इसका रंग ग्रे और गर्दन लंबी होती है. यह घोड़ा 147 सेमी ऊंचा होता है. गुजरात राज्य के जूनागढ़, कठियावाड़ और अमरेली में यह घोड़ा पाया जाता है.

स्पीती घोड़ा-

यह घोड़ा पहाड़ी क्षेत्रों के लिए बेहतर माना जाता है. यह ज्यादातर हिमाचल प्रदेश के इलाकों में पाया जाता है. इस नस्ल के घोड़े ऊंचे पहाड़ी इलाकों में काफी बेहतर तरीके से कार्य करते है.

मणिपुरी पोनी घोड़ा-

इस किस्म के घोड़े को भी काफी अच्छा माना गया है. इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते हैं.इस नस्ल के घोड़े का इस्तेमाल अधिकतर युद्ध और खेल के लिए किया जाता है.यह एक ऐसा घोड़ा है जो कि अलग-अलग रंगों में पाया जाता है.

भूटिया घोड़ा-

यह घोड़ा सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में पाया जाता है. इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से दौड़ और ढोने में किया जाता है.

कच्छी सिंध घोड़ा-

इस नस्ल के घोड़े को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कच्छी -सिंधी घोड़े को सातवीं नस्ल के रूप में पंजीकृत कर दिया है. यह घोड़ा गर्म और ठंडे दोनों वातावरण को सहन कर आसानी से जीवित रह सकता है. घोड़े की इस नस्ल को अपने धैर्य स्तर के लिए पहचाना जाता है. इस घोड़े की कीमत 3 लाख से 14 लाख रूपये के बीच होती है.

इन सभी नस्लों में मारवाड़ी, कठियावाड़ी और मणिपुरी घोड़े की नस्ल बेहतर मानी जाती है. इसीलिए इनका वाणिज्यिक पालन किया जा रहा है. इसके अलावा भारतीय घोड़े का निर्यात भी किया जाता है.

घोड़ापालन ऐसे करें (How to do Horse husbandry)

अगर आपके पास पर्याप्त मात्रा में भूमि उपलब्ध है तो आप अपनी संपत्ति में घोडा पालन का आनंद उठा सकते है. घोड़ा एक बुद्धिमान और भावुक पशु होता है.इसीलिए घोड़ा पालन करना जितना सरल है वह उतना ही जिम्मेदारी से भरा कार्य भी है. घोड़ापालन का अर्थ है- साल के 365 दिन घोड़े की देखभाल करना, निरीक्षण करना, साफ-सफाई करना, खाना-खिलाना और उससे जुड़ी समस्याओं का समाधान करना. ऐसे में अगर आपने घोड़ा पाल रखा है और आप कही दो -चार दिन या सप्ताह के लिए बाहर जा रहे है तो आपको घोड़े के लिए किसी अनुभवी और जरूरतमंद व्यक्ति की नियुक्ति करके जाना चाहिए. आपको घोड़े हेतु पर्याप्त चारे की व्यवस्था करनी होगी.

जीवनकाल (Life Spam)

घोड़ा का जीवनकाल 25 से 30 वर्ष तक का ही होता है. एक औसत घोड़ा पांच से छह साल की अवधि में प्रजनन तक तैयार होता है. उससे पहले उसकी सवारी नहीं करना चाहिए. क्योंकि उसकी कंकाल और हड्डियां पूरी तरह से विकसित नहीं होता है. रेस में दौड़ने वाले घोड़ों पर आमतौर पर 1.5 वर्ष में सवारी को शुरू कर देना चाहिए. कुछ घोड़े समय के साथ कई बार अपाहिज हो जाते है और कई को 3 वर्ष की आयु तक मार दिया जाता है.

घोड़े का भोजन (Horse Food)

घोड़ा अपने वजन का 1 प्रतिशत से ज्यादा घास खा सकता है. अगर आपके पास युवा और पौष्टिक घोड़े है तो आप वर्षभर विभिन्न प्रकार का चारा उगता है तो आप घोड़े को ताजा और सूखी घास दे सकते है. इसमें घास, दूब, लोबिया, ब्रासिका आदि है. घोड़ों के पोषण को पूरा करने के लिए भूसी, चुंकदर, पेलेट मिक्स, जई, बाजरा, कटी हुई घास और विटामिन का प्रयोग तब किया जाता है जब आप घोड़ों का वजन बढ़ाना चाहते है. बूढ़े, चोटिल घोड़े को अधिक विटामिन की जरूरत पड़ती है. इसके अलावा जई की घास भी बड़े घोड़ों और घोड़ियों की प्रारंभिक गर्भावस्था के लिए उपयुक्त चारा है. घोड़ों के कुल आहार में नाइट्रेट का स्तर 0.5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

READ MORE :  Polo & Horse Riding as Emerging Startup in India

घोड़ो का रहन सहन (Horse lifestyle)

घोड़ों के लिए अस्तबल और एक पर्याप्त आश्रय स्थान होना जरूरी होता है. उनके लिए हमें एक सुरक्षित, एक बाहरी आश्रय, एक चारागाह और एक ठहरने का स्थान, विभिन्न प्रकार का चारा रखने के लिए और तैरीके लिए एक या दो अलग कमरे, घोड़ों के लिए दवाएं और प्राथमिकता चिकित्सा किट रखने के लिए एक कमरे और विशेष मेड़ की जरूरत होती है ताकि हमारे घोड़े बाहर न निकले. घोड़े के लिए ऐसा स्थान तैयार करे जो कि बारिश और धूप से हर तरह से बच सकें. घोड़े की कोठरी में बिस्तर के रूप में लकड़ी के बुरादे का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. प्रत्येक घोड़े के पालन हेतु 170 वर्ग फीट स्थान की जरूरत है. कोठरी हवादार और साफ़ सुथरी होनी चाहिए.कोठरी ऐसी तैयार होती है जिसकी आधी खिड़की खुली होती है और उसमें मुख्य दरवाजा होता है.

घोड़ें की देखभाल (Horse care)

घोड़ापालक को चाहिए कि आपका घोड़ा हमेशा स्वस्थ रहे. इसीलिए उसके इलाज से संबंधित पशु-चिकित्सक का नंबर आपके पास हर वक्त मौजूद होना चाहिए. यदि वह वक्त पर नहीं आ सकता है तो उसके मार्गदर्शन में आप घोड़े की देखभाल कर सकते है. इसके लिए आपके पास अस्तबल में सूखी और साफ अलमारी होनी चाहिए जहां पर चिकित्सा सहायक किट और दवाओं को रखा जा सके . इसके अलावा आपको घोड़ों के स्वस्थ्य की नियमित जांच करानी चाहिए. घोड़ों के रोग की पहचान का सीधा लक्षण है कि वह सीधे खड़ा नहीं हो पाता, पूरे दिन सोना और कुछ घंटो तक ना खा पाना. घोड़ों को पशु चिकित्सकों से नियमित टीका भी लगवाना चाहिए. घोड़े अक्सर मक्खी और कीड़े आदि से परेशान होते है जो घोड़ों की आंख के पास मंडराते रहते है. आप पर्याप्त मात्रा में विभिन्न रंगों और आकार के फ्लाई मास्क को घोड़ो को पहना सकते हैं. इसके जरिए वह अच्छे से देख पाते हैं और उनकी आंखों को काफी सुरक्षा मिलती है.

घोड़ों का ध्यान कैसे रखें:

चूँकि, हमने घोड़े पालने का फैसला किया है इसलिए एक व्यवस्थित और साफ़-सुथरी जगह का होना आवश्यक है, जहाँ हम अपने पशुओं के लिए कुछ दवायें और स्वास्थ्य उपचार किट रखते हैं। आज नहीं तो कल, हमें निश्चित रूप से उन उत्पादों की जरुरत पड़ेगी, और बीच रात में अपने तड़पते हुए घोड़े को छोड़कर विशेष दवाखाना खोजना कोई अच्छा विकल्प नहीं है। किसी भी मामले में, आपके पास हमेशा अपने नजदीक स्थित लाइसेंस प्राप्त पशु-चिकित्सक का टेलीफोन नंबर मौजूद होना चाहिए। यदि पशु-चिकित्सक हमारे स्थान पर नहीं आ सकता, केवल तभी हमें उसके मार्गदर्शन के साथ उनमें से किसी भी चीज का प्रयोग करना चाहिए, विशेष रूप से सुई का।

सर्वप्रथम, हमारे पास एक सूखी और साफ अलमारी होनी चाहिए, जहाँ चिकित्सा सहायक किट और दवाओं को रखा जायेगा। दूसरा, हमें एक फ्रिज की जरुरत होती है, जहाँ कुछ विशेष दवाओं को रखा जायेगा।

पॉविडोन-आयोडीन, विभिन्न आकार की पट्टियां, विभिन्न प्रकार के दर्दनाशक, हाइड्रोजन के पेरोक्साइड, पेनिसिलिन और कोर्टीसोन वे उत्पाद हैं जिन्हें चोट या बीमारी की स्थिति में सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है। हमें अपने स्थान पर घोड़ों को लाने से पहले उन उत्पादों की सूची बनाने के लिए पशु चिकित्सक से परामर्श ले लेना चाहिए जिन्हें हमें खरीदना है। यदि हमारे घोड़े को आपातकालीन स्थिति में पशु अस्पताल ले जाने की जरुरत पड़ती है तो इस स्थिति के लिए हमें अपने क्षेत्र में स्थित 2-3 वैध घोड़े ढोने वाले एजेंटों के बारे में भी पता करना होगा।

इसके अलावा, हमें नियमित रूप से अपने घोड़ों के स्वास्थ्य की जांच करनी चाहिए। घोड़ों में होने वाली सबसे आम असामान्य स्थितियों में कब्ज, पेट दर्द और पानी की कमी शामिल हैं। कब्ज की स्थिति में घोड़ा मल-त्याग नहीं कर पाता है। ज्यादा समय तक रहने पर, कब्ज की वजह से बहुत ज्यादा स्वास्थ्य समस्याएं हो जाएँगी। आमतौर पर, घोड़े दिन में कई बार मल-त्याग करते हैं। यदि हम देखते हैं कि हमारे किसी घोड़े ने कुछ घंटों से मल त्याग नहीं किया है तो हम तुरंत इसकी जांच कर सकते हैं कि वो कब्ज से पीड़ित है या नहीं। आमतौर पर, जब कोई अपने कान को स्वस्थ घोड़े के पेट के पास रखता है तो उसे पाचन प्रक्रिया सुनाई देगी जो एक छोटे कारखाने के समान आवाज़ करती है। इसलिए, यदि हमारे घोड़े ने दिन में सामान्य तरीके से खाया है, और मल-त्याग नहीं किया और हम पाचन की आवाज़ नहीं सुन पाते हैं तो हमें तुरंत पशु चिकित्सक को बुलाना चाहिए। घोड़ों के रोगों के अन्य सामान्य लक्षण हैं: खड़ा ना हो पाना, पूरे दिन सोना और कुछ घंटे तक कुछ ना खाना-पीना। सामान्य तौर पर, घोड़ों को उचित समय अंतराल पर और आपातकाल के दौरान (जैसे स्थानीय महामारी) लाइसेंस प्राप्त पशु चिकित्सक से टीका लगवाना चाहिए और कीड़े बाहर निकालने चाहिए। टीकाकरण पर और अधिक पढ़ें।

हमें अपने घोड़ों की साफ-सफाई पर भी ध्यान देना चाहिए। घोड़े को तैयार करना एक आवश्यक प्रक्रिया है जो उसकी त्वचा के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है और साथ ही घोड़े और इंसान के रिश्ते को मजबूत बनाता है। विशेष दुकानों में आपको घोड़े को संवारने के उपकरण (कंघी आदि) मिल सकते हैं। संवारने की आवृत्ति के संबंध में कोई नियम नहीं है। कुछ मालिकों को अपने घोड़ों को प्रतिदिन तैयार करना अच्छा लगता है, जिससे उन्हें उनसे संवाद करने का मौका मिलता है। अन्य मालिक अपने घोड़ों को हफ्ते में एक बार संवारते हैं। इसके अलावा, गर्म स्थानों में, अपने घोड़ों को विशेष शैम्पू की मदद से हफ्ते में एक बार नहलाना लाभदायक होता है।

READ MORE :  History and Importance of Equines in Indian Agrarian Sector

जब घोड़े बूढ़े होते हैं तो उनके दांत स्वाभाविक रूप से असमान उगने लगते हैं। यदि उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है तो दांत की खराब स्थिति की वजह से बूढ़े घोड़ों को आमतौर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसके फलस्वरूप, आपको ऐसे विशेषज्ञ को नियुक्त करने की सलाह दी जाती है, जो साल में कम से कम एक बार घोड़े के दांतों की जांच कर सके और उचित समायोजन कर सके।

संक्रमण से बचने के लिए घोड़े के मालिकों को इसके खुरों की भी काट-छांट करनी चाहिए (हुफ ट्रिमर से)। हमें हर 2-3 दिन पर उनके खुरों की जांच करनी चाहिए, लेकिन इन्हें सामान्य तौर पर हर 4-5 हफ्ते में काटा जाता है। घोड़ों के लिए विशेष जूते उपलब्ध होते हैं जो उन्हें विभिन्न संक्रमणों से बचाते हुए चलने में मदद करते हैं। आप प्रत्येक घोड़े के लिए उपयुक्त जूते पाने के लिए अपने पशु चिकित्सक से संपर्क कर सकते हैं।

घोड़े अक्सर मक्खियों और विभिन्न कीड़ों से परेशान रहते हैं, जो घोड़ों के आँख के आसपास मंडराते रहते हैं। विशेष दुकानों में आपको विभिन्न रंगों और आकारों के फ्लाई मास्क मिल सकते हैं। फ्लाई मास्क पहनने से घोड़े अच्छे से देख पाते हैं और उनके चेहरे एवं आँखों को पर्याप्त सुरक्षा मिलती है।

घोड़े का आवास प्रबंधन:

संक्षेप में, हमें एक सुरक्षित आंतरिक आश्रय, एक बाहरी आश्रय, एक चारागाह और/या टहलने का स्थान, विभिन्न प्रकार के चारे रखने के लिए और तैयार करने के लिए एक या दो कमरे, दवाएं और प्राथमिक चिकित्सा किट रखने के लिए एक कमरे और विशेष विद्युत मेड़ की जरुरत होती है ताकि हमारे घोड़े बाहर ना निकलें।

बाहरी आश्रय के संबंध में, एक मजबूत छत वाला साधारण तीन-तरफा आश्रय काफी होता है। बाहरी आश्रय वो स्थान है जहाँ आपका घोड़ा बारिश के दिनों में या बहुत ज्यादा गर्म दिनों में रहेगा। इसी स्थान पर घोड़े को ताज़ा-साफ पानी और सूखी घास भी मिलती है। औसतन, बाहरी आश्रय में हमें प्रत्येक घोड़े के लिए लगभग 170 वर्ग फुट (16 वर्ग मीटर) स्थान की जरुरत पड़ती है।

आंतरिक आश्रय (जिसे अक्सर कॉल्ड बॉक्स कहते हैं) वो स्थान है जहाँ घोड़ा आराम करता है (रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक)। हमें प्रत्येक घोड़े के लिए औसतन 170 वर्ग फीट (16 वर्ग मीटर) स्थान की जरुरत होती है। घोड़े की कोठरी में अक्सर बिस्तर के रूप में लकड़ी के बुरादे का प्रयोग किया जाता है। कोठरी के अंदर घोड़े के पास निरंतर सूखी घास और ताज़ा पानी मौजूद होना चाहिए। कोठरी हवादार और साफ-सुथरी होनी चाहिए। कोठरियों में आमतौर पर एक मुख्य दरवाज़ा होता है, जिसका ऊपरी आधा हिस्सा खिड़की की तरह खुलता है, ताकि घोड़े का मालिक उसे बाहर निकले दिए बिना अंदर देख सके।

बाहरी चरागाह/टहलने का स्थान: प्रतिदिन टहलने और चरने की स्थिति घोड़े के स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित है। यदि आप प्रत्येक घोड़े के लिए 1.5 एकड़ (6.000 वर्ग मीटर) स्थान प्रदान नहीं कर सकते हैं तो आप घोड़ा पालने का प्लान छोड़ दीजिए ।टहलने वाले स्थान से पत्थर और अन्य बाहरी चीजों को सावधानी से हटा देना चाहिए, क्योंकि इससे घोड़े को चोट लग सकती है। आपको एक सूखे और छायादार स्थान की भी जरुरत होगी, जहाँ सूखी घास रखी जाएगी और साथ ही आपको व्यावसायिक चारा रखने के लिए भी एक कमरे की जरुरत होती है। अंत में, आपको एक अलग कमरे की जरुरत होगी जहाँ आप दवाएं, गोलियां और स्वास्थ्य सहायता किट रखेंगे। अगर आप घोड़े पालन को व्यवसायिक तरीका से लेना चाहते हैं तो उसकी बिल्डिंग पर ध्यान देना होगा। आपको पता होगा कि एक एक घोड़ा का कीमत लाखों रुपए में होता है यदि आप अपने स्टड फार्म में साल में चार या पांच घोड़ा तैयार कर देते हैं तो आपको सालाना 7 से 10 लाख रुपैया आमदनी आराम से हो सकता है। अतः यदि वाकई आप इच्छुक हैं घोड़ा पालन में तथा इस व्यवसाय को शुरू करने के लिए तो आपको उचित जगह का चुनाव करने के बाद घोड़े की नस्ल का चुनाव करना होगा तथा घोड़े के ब्रीडिंग में विशेष ध्यान देना होगा।

संकलन -डॉक्टर देवेंद्र सिंह (मेड़तिया),
सहायक आचार्य,
एम. बी. वेटेरिनरी कॉलेज,
डूंगरपुर, राजस्थान

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON