उत्पादन बढ़ाने हेतु पशुओ को तनावमुक्त कैसे रखे

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उत्पादन बढ़ाने हेतु पशुओ को तनावमुक्त कैसे रखे

डॉ आनंद जैन  डॉ आदित्य मिश्रा, डॉ दीपिका सीजर और डॉ संजू मंडल

सहायक प्राध्यापक

पशु शरीर क्रिया और जैव रसायन विभाग

पशु चिकित्सा और पशु पालन महाविद्यालय  जबलपुर -482001 मप्र

 

तनाव क्या होता है

तनाव से तात्पर्य शारीरिक और भावनात्मक रूप से चिंता महसूस होना है। यह भावना ऐसे किसी भी घटना या विचार से आ सकती है, जिससे किसी पशु को निराशा, गुस्सा या घबराहट महसूस हो। तनाव मुख्य रूप से किसी चुनौती या मुश्किल भरे समय में पशु -शरीर की प्रतिक्रिया है।

तनाव के क्या कारण है

शोध विज्ञानियों ने खुलासा किया है कि आधुनिक शहरीकरण, तेजी से बदलता वातावरण, जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण सेपरेशन एनजाइटी रोग खुजली और पशुओं को शरीर पर भिनभिनाने वाली मक्खियां, कीड़े आदि पशु को इतनी टेंशन देते हैं कि वो शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं, जिसका सीधा असर उनकी उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। अगर ये किसी गाय भैंस को हो जाए और उसका इलाज न हो तो पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है।

तनाव के प्रभाव क्या है

बदलते माहौल में मनुष्य ही नहीं पशु भी तनाव के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से जानवरों में बीमारियों से लडऩे की क्षमता, उत्पादन तथा प्रजनन क्षमता पर असर पड़ रहा है। इसलिए इस विषय पर वैज्ञानिकों द्वारा मंथन किया जाना आवश्यक है। पशुओं में खुजली एवं जलन होना। दुग्ध उत्पादन में कमी आना। भूख कम लगाना। चमड़ी का खराब हो जाना। बालों का झड़ना। पशुओं में तनाव और चिड़चिड़ापन का बढ़ना आदि। कम उम्र के पशुओं पर इनका प्रतिकूल प्रभाव ज्यादा होता है।
तनाव से बचाव कैसे करे

  • पशुओं को स्वच्छ व साफ रखें, इसलिए उन्हें गॢमयों में प्रतिदिन दिन नहलाना चाहिए।
  • पशुओं के बाड़े में ऐसे कोई चीज न रखें जिससे उससे शरीर में कोई चोट आए।
  • इसके जहां पर पशु बांधे जाते है उसके पास साफ-सफाई बहुत जरूरी है।
  • आस-पास की गंदगी (गोबर इत्यादि) को नियमित रुप से साफ करें।
  • बरसात में पशुओं के इर्द-गिर्द पानी जमा नहीं होना चाहिए वरना मच्छर, मक्खी व कीड़ें मकोड़े वहां अपना घर बना सकते है।

उष्मागत तनाव से बचाव कैसे करे

  • अगर पशु आवास पक्की छत का है तो छत पर सुखी घासं व कड़बी रखें ताकि छत को गर्म होने से रोका जा सके।
  • पशु आवास के अभाव में पशुओं को छायाकार पेड़ों के नीचे बांधे।
  • पशु आवास में गर्म हवाओं का सीधा प्रवाह नहीं होने पाए इसके लिए लकड़ी के पट्टे या बोरी को गिला कर दें ताकि जिससे पशु आवास में ठंडक बनी रहे।
  • रात्रि में पशुओं को खुले स्थान पर बांधे। पशु आवास गृह में आवश्यकता से अधिक पशुओं को नहीं बांधे।
  • गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा अधिक खिलाएं।
  • हरे चारे में 70 से 90% जल की मात्रा होती है हरा चारा पशु शरीर की जल की पूर्ति करता है इस मौसम में पशु को भूख कम व प्यास अधिक लगती है इसलिए गर्मी में पशुओं को स्वच्छ पानी आवश्यकतानुसार अथवा दिन में कम से कम 3 बार अवश्य पिलाएं / कम देखें

रोग तनाव से बचाव कैसे करे

  • प्रत्येक तीन महीनों के अंतर पर पशुओं को आंतरिक परजीवी नाशक दवा का सेवन कराना चाहिए।
  • पशुओं के खान-पान पर भी ध्यान देना बहुत आवश्यक है, क्योंकि विटामिन्स की कमी से कभी-कभी पशुओं को रोग हो जाता है। अगर पशु को किसी भी प्रकार रोग हो गया है तो पास के पशु चिकित्सालय में दिखा लें।
  • सभी प्रकार के रोगों में पशु को अच्छा खान-पान, विटामिन व खनिज लवण देने चाहिए। इसके साथ ही लिवर टॉनिक का प्रयोग करना चाहिए।
  • गर्मी के मौसम में डेयरी पशुओं में होने वाले गर्मी तनाव के कारण भारतीय डेयरी पशुओं में उत्पादन एवं प्रजनन में कमी आती है। कुछ गर्मी तनाव अपरिहार्य हैं लेकिन निश्चित प्रथाओं का पालन करके तनाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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प्रबंधन: गर्मी तनाव का मुकाबला करने के लिए उत्पादकों के पास कई विकल्प हैं।जिनमें से मुख्य तरीके इस प्रकार हैं।
जल प्रबंधन

  • जल डेयरी पशुओं में ‘गर्मी तनाव’को कम करने वाला एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। इस समय उत्पादकों को पानी की पहुँच और उपलब्ध पानी की मात्रा में बढ़ोतरी करनी चाहिए। इस बात को सुनिच्श्ति करें की पानी ठंडा है और पानी किसी भी कारण स्थिर न हो।
  • पानी के बर्तनों की दैनिक स्तर पर सफाई आवश्यक है। चारा एवं पानी ठंडे क्षेत्र में रखने से पानी की खपत बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

छाया प्रबंधन

  • अगर सभी गायों का चराई में प्रवेश संभव हो तो पेड़ ही एक रास्ता हो सकते हैं छाया प्रदान करने के लिए। लेकिन आज के डेयरी उद्योग में यह संभव नहीं है। कपड़े के उपयोग से कृत्रिम छाया क्षेत्र उपलब्ध कराया जा सकता है या फिर एक स्वाभाविक रुप से हवादार संरचना की मदद से झुंड को हानिकारण सौर विकिरण से दूर रखा जा सकता है। स्प्रिंकलर (छिड़काव) – अच्छी तरह से छाया व फंखे के उपयोग के बाद लगभग 3 मिनट से लेकर 15 मिनट तक पशुओं पर पानी का छिड़काव करना, गर्मी के तनाव से बचाने का सबसे कारगार व आसान उपाय है। जिससे किसान भाई कम समय में आसानी से कर सकते हैं।

पर्यावरण प्रबंधन

  • सामान्य चयापचय को बनाए रखने के लिए गाय का मुख्य शरीर तापमान स्थिर होना आवश्यक है। इस के साथ ही मुख्य शरीर का तापमान परिवेश के तापमान से थोड़ा अधिक होना चाहिए। ताकि गर्मी का स्थानांतरण बाहरी वातावरण में आसानी से हो सके। चारे के पाचन से और पोषक तत्वों की चयापचय से गाय के शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। अगर डेयरी गायों का छाया, हवादार घर, आसपास ठंडी हवा या फिर फ़व्वारा सिंचाई उपलब्ध कराई जाए तो गर्मी तनाव के हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सकता है जिससे उनके दूध उत्पादन, प्रजनन एवं उनकी प्रतिक्षा प्रणाली पर कम से कम असर पड़े।

शीतलक प्रबंधन

  • गायों को ठंडा रखने के लिए डेयरी सुविधा के हर क्षेत्र की जाँच करना आवश्यक है। हवा की निनमय दर को बढ़ाने के लिए किसानों को पंखो की साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए साथ ही अधिक प्रशंसको एंव इनलेटस को स्थापित करना चातिए। वायु प्रवाह खलिहान के पाक्षों को खोलने से भी बढ़ाया जा सकता है।
  • वायु प्रवाह गायों को ठडा करने का एकमात्र सहारा नहीं है इसके अलावा गायों को गीला करने के लिए छिड़काव प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है।
  • पानी की बूंदो की जाँच आवश्य करनी चाहिए और इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की पानी को बूदें इतनी बड़ी हो कि बाल एंव चमड़ी आसानी से गीली हो सकें।
  • अत्याधिक छिड़काव से बिस्तर गीला हो सकता है और गायों के स्तन की सूजन का कारण हो सकता है।
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चारा प्रबंधन

  • उष्मागत तनाव को दूर करने उत्पादकों के लिए अंतिम विकल्प है चारा प्रबंधन।उष्मागत तनाव के समय काम आने वाले कुछ सुझाव (पोषंण संबंधी)।
  • कुल निश्रित राशन खिलाना चाहिए ।
  • फीडिगं की संख्या बढा देनी चाहिए ।
  • ठंडे समय पे फीड देनी चाहिए ।
  • फीड ताज़ा होनी चाहिए ।
  • उच्च गुणवत्ता वाले चारे का प्रयोग करना चाहिए ।
  • पर्याप्त फाइिबर प्रदान करना चाहिए ।
  • सोडियम एवं पोटेश्यिम जैसे खनिज पदार्थो मे परिवर्तन करना चाहिए ।
  • फीडबंक में माध्यमिक किण्वन से बचें।
  • आहार के खनिज सामग्री का संषोधिकर्णउष्मागत तनाव से ग्रस्त डेयरी गायों में पसीना अधिक मात्रा में आता है और पसीने में सोडियम एवं पोटेश्यिम जैसे तत्व उच्च मात्र में पाए जाते हैं जिसके कारण उनके शरीर में इन तत्वों की जरूरत बढ़ जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मात्रा में सोडियम बाईकार्बोनेट एवं पोटेश्यिम बाईकार्बोनेट फीड में मिला कर दिया जाना चाहिए।
  • किलनी के लिए पाइरिथ्रम नामक वानस्पतिक कीटनाशक भी काफी उपयोगी होता है। पशुओं की रीढ़ पर दो-तीन मुट्ठी सल्फर का प्रयोग करना चाहिए। चूना-सल्फर के घोल का इस्तेमाल 7-10 दिन के अंतराल पर लगभग 6 बार करना चाहिये । किलनी नियंत्रण में प्रयोग होने वाले आइवरमेक्टिन इंजेक्शन के प्रयोग के बाद दूध को कम से कम दो से तीन हफ्तों तक प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।

गर्मी से तनाव के संकेत

पशु के हांफने के गुणांक से गर्मी से तनाव के स्तर का पाता लगाया जा सकता है।

पशु के हांफने का गुणांक कभी भी 2 से अधिक नहीं होना चाहिए।

हांफने का गुणांक स्वसन दर/मिनट पशु की अवस्था
0 40 से कम सामान्य
1 40 -70 हल्का हांफना, लार नहीं गिरती तथा सीने में हलचल नहीं होती।
2 70-120 तेजी से हांफना, लार गिरती है लेकिन मुंह बंद रहता है।
2.5 70-120 गुणांक 2 के सामान लेकीन मुंह खुला लेकिन जीभ बाहर नहीं निकलती।
3 120-160 मुंह खुला होता है, लार गिरती है। गर्दन लंबी एवं सिर ऊपर रहता है।
3.5 120-160 गुणांक 3 की तरह लिकं जीभ कुछ बाहर निकलती है और कभी कभी पूरी बाहर आती है, साथ ही बहुत अधिक लार गिरती है।
4 >160 मुंह खुला, साथ ही जीभ लंबे समय तक पूरी बाहर निकली हुई, अत्यधिक लार गिरती है।

 

 

 

 

 

आवास संबंधी संकेत

आवास से संबंधित कुछ संकेत पशु के आराम से सीधे संबंधित होते हैं।

विवरण क्या जानें
पशुशाला  की स्थिति
  • आस – पास की जगह से थोड़ी ऊँची उठी होने चाहिए ताकि पानी का उचित निकास संभव हो
  • इससे जल भराव एवं पशुशाला में नमी की समस्या खत्म हो जाती है
  • रोग वाहक कीटों की संख्या में कमी होती है।
पशुशाला का अभिविन्यास
  • जहाँ तापमान 5 घंटे या उससे ज्यादा समय तक 30 डिग्री सेल्सियस या इससे अधिक रहता है, वहां पूर्व – पश्चिम दिशा अभिविन्यास लाभकारी होता है।
  • इससे पशु के चारे एवं पानी के नांद हमेशा छाया में रहती है और पशु को चारा या पानी हमेशा छाया में उपलब्ध होता है
पशुशाला की दीवारें
  • दीवारें हवा के प्राकृतिक दौरे को अवरूद्ध नहीं करती हो
  • गर्म  स्थानों पर पशुशाला में दीवारों की आवश्यकता नहीं होती
  • बहुत गर्म स्थानों पर गर्म हवा के प्रवाह को रोकने के लिए पश्चिम दिशा में दिवार आवश्यक होती है
  • ठंडे स्थानों पर पशुशाला का उत्तर – दक्षिण अभिविन्यास उचित रहता है
  • गलत तरीके से बनाई  हुई दीवारें पशुशाला में हवा के प्राकृतिक बहाव को अवरूद्ध  करती हैं जिससे पशु को गर्मी से तनाव होता है।
  • सूर्य की रोशनी पशुशाला को हर कोने में पहूँचती है जिससे फर्श को सूखा रखने में मदद मिलती है
  • अगर पशुओं को पूरे दिन चरागाह में रखा जाता है तो यह अभिविन्यास लाभकारी है।
वायु संचार
  • पशुशाला में अमोनिया की दुर्गंध नहीं होनी चाहिए
  • पशुशाला के मध्य में खड़े व्यक्ति को घुटन महसूस नहीं होनी चाहिए
  • पर्याप्त वायु संचार से पशु गर्मी के कारण उत्पन्न तनाव में नहीं आता है
  • पर्याप्त वायु संचार से श्वसन संबंधी रोग होने का खतरा कम हो जाता है
रोशनी
  • दिन के समय पशुशाला में पढ़ सकने योग्य पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए
  • प्रतिदिन कम से कम 8 घंटे  पशुशाला में पर्याप्त रोशनी रहनी चाहिए
फर्श
  • एक व्यक्ति नंगे पैर पशुशाला में घूम सके
  • पशु के आराम के स्तर में वृद्धि होती है
  • खुरों में समस्याएँ कम होती हैं
  • फर्श पर खुरों से बने फिसलने के कोई निशान नहीं होने चाहिए
  • फिसलने की वजह से पशु को कूल्हे पर चोट लग सकती है जिससे वह स्थायी तौर पर लाचार हो सकता है
  • खुरों में समस्या कि वजह से पशु को चलने समस्या आती है और वह आनाकानी करता है
अपवाही (तरल कचरा) प्रबंधन
  • पशुशाला से निकला तरल कचरा पशुशाला के आस – पास इकट्ठा नहीं होना चाहिए
  • तरल कचरा इकट्ठा होने से कीट जनित बीमारियाँ बन जाती है जिससे पशु का गतिविधि चक्र प्रभावित  होता है और पशु का उत्पादन घट जाता है
जगह की आवश्यकता
  • खुले प्रकार के पशु आवास में प्रत्येक पशु के लिए 160 वर्ग फीट स्थान आवश्यक है जिसमें से 40 वर्ग फीट स्थान छतदार होना चाहिए।
  • प्रत्येक पशु को चराने के लिए नांद में 2 वर्गफीट स्थान उपलब्ध होना चाहिए
  • प्रत्येक पशु को पानी पीने के लिए नांद में 3 घन फीट स्थान उपलब्ध होना चहिए।
  • पशु को उचित स्थान उपलब्ध होने पर वह अपने प्राकृतिक व्यवहार को प्रकट करता है और खुला रहने से उसके खुर की दशा सही रहती है व उसके उत्पादन में सुधार आता है।
नांद एवं रेलिंग
  • गर्दन के ऊपर या नीचे किसी घाव या खरोंट की उपस्थिति दर्शाती है कि नांद में लगी हुई रेलिंग की ऊँचाई सही नहीं है।
  • अगर पशु को गहरा घाव लगा हुआ है तो इसकी वजह से  उसके आहार की मात्रा कम हो सकती है जिससे उसके उत्पादन में कमी आती है।
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