पशु चिकित्सा में प्रयोग होने वाली सामान्य, औषधियों द्वारा पशुओं का प्राथमिक उपचार

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डॉ संजय कुमार मिश्र
पशु चिकित्सा अधिकारी चौमुंहा मथुरा

१. फिटकरी- यह रंगहीन सफेद या हल्का गुलाबी स्वाद में मीठापन लिए कसैला सा बड़े-बड़े रवे का पदार्थ है। यह पानी में पूर्णता घुलनशील, स्तंभक व एंटीसेप्टिक होता है। यह ऊतकों को संकुचित करती है इसलिए पशुओं के घाव से खून का बहना रोकने के लिए प्रयोग की जाती है। इसका 2 से 5% पानी में घोल आंख व गर्भाशय धोने के काम आता है।

२. हींग-, यह हल्के पीले या धुंधले सफेद रंग का गोंद जैसा पदार्थ है जिसकी गंध तीखी व स्वाद कड़वा होता है । इसका प्रयोग पेट दर्द अफारा ,कफ या गैस बनने पर किया जाता है।
मात्रा- गाय भैंस को 20 ग्राम घोड़े के लिए 15 से 40 ग्राम बकरियों के लिए 4 से 5 ग्राम अन्य पशुओं के लिए 4 ग्राम

३. सौंफ- यह हल्के हरे या पीला रंग लिए, दानेदार पदार्थ है, जो कि पेट के दर्द में लाभदायक है। हाजमे के चूर्ण आदि बनाने में इसका प्रयोग किया जाता है।
मात्रा- गाय भैंस के लिए 30 से 60 ग्राम ,भेड़ बकरियों के लिए 10 से 12 ग्राम।

४. नौसादर- यह सफ़ेद
रवेदार पदार्थ है जिसका स्वाद नमकीन व गुण ठंडा होता है। यह कफ नाशक है अतः चूर्ण बनाकर पशुओं को खिलाने के काम आता है।मात्रा- बड़े पशु के लिए 10 से 15 ग्राम, छोटे पशुओं के लिए 2 से 8 ग्राम ।
यह डाइयूरेटिक व रेफ्रिजरेंट है। इसका प्रयोग लोशन के रूप में सूजन कम करने के लिए भी किया जाता है।
मात्रा- अमोनियम क्लोराइड 29 ग्राम पोटेशियम नाइट्रेट 29 ग्राम पानी 600 ग्राम या 599 ग्राम।

५.पीलीदवा/ (एक्रीफ्लेविन )- यह कीटाणु नाशक है जिसका प्रयोग थनैला रोग में थन में चढ़ाने में किया जाता है । इसका प्रयोग आंख व कान के घाव धोने में भी किया जाता है।
मात्रा -आंख धोने के लिए १:२००० एवं
घाव धोने के लिए१:१०००।

६.बोरेक्स या सुहागा- यह रंगहीन, रवेदार गंध रहित मीठे व खटमरे स्वाद का एंटीसेप्टिक पाउडर है। यह 20 भाग पानी व एक भाग ग्लिसरीन में घुलनशील होता है इसका घोल आंखें धोने के काम आता है। मात्रा बोरेक्स 1.6 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट 1.6 ग्राम आसुत जल, 100 एम एल इसका प्रयोग बराबर के गुनगुने पानी में मिलाकर करना चाहिए।

७. बोरिक एसिड- यह सफेद रंग का गंधहीन पाउडर जैसा पदार्थ है, जोकि एंटीसेप्टिक है। इसका प्रयोग पाउडर लोशन व मरहम के रूप में किया जाता है। अधिकतर इसका उपयोग घाव धोने के लिए किया जाता है।
घोल के लिए मात्रा- बोरिक एसिड 50 ग्राम आसुत जल 1000ml
पाउडर के लिए मात्रा-
बोरिक एसिड दो भाग आयोड़ोंफार्म 1 भाग
जिंक आकसाइड 1 भाग।

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८. बेलाडोना- एटरोफा बेलाडोना पेड़ की, पत्तियों व फलों को सुखाकर इसे बनाया जाता है। इसका प्रयोग खांसी के लिए चटनी के रूप में फोड़ों के लिए प्लास्टर के रूप में, व कोमल अंगों में दर्द निवारक के रूप में किया जाता है ।

९. बिस्मथ कार्बोनेट- यह सफेद एवं क्रीम रंगों का गंध रहित, स्वाद रहित व पानी में अघुलनशील पाउडर होता है। यह एंटीसेप्टिक व एसटिरनजेंट, होता है जिसका प्रयोग पाउडर लोशन वह मलहम के रूप में किया जाता है।
मात्रा- गाय व भैंस को 20 से 30 ग्राम

१०. विस्मिथ सिलीसिलेट- यह गंधहीन स्वादहीन बारीक सफेद, रवेदार पानी में अघुलनशील, पाउडर होता है। जिसका प्रयोग आंतों की सफाई व दस्तों के लिए होता है।
मात्रा-, गाय भैंस के लिए 20 से 25 ग्राम

११.कपूर- यह रंगहीन पारदर्शक विशेष गंध वाला अल्कोहल में घुलनशील व हवा में रखने पर उड़ जाने वाला पदार्थ है। यह अच्छा एंटीसेप्टिक है जिसका प्रयोग सर्दी, जुखाम ,खांसी आदि में किया जाता है। वात रोगों में इसके लोशन की मालिश भी की जाती है।
मात्रा- गाय भैंस 2.8 ग्राम एवं बकरी 2.4 ग्राम

१२.कत्था- यह कत्थई रंग का पदार्थ है जिसका प्रयोग दस्त रोकने के लिए खड़िया मिट्टी, बेलगिरी और सोंठ में मिलाकर किया जाता है।
मात्रा-, गाय भैंस 4 से 12 ग्राम, बकरी 4 से 8 ग्राम।

१३.खड़िया- यह सफेद पदार्थ है जो पशुओं में कैल्शियम खनिज पदार्थ की कमी को पूरा करता है। इसका प्रयोग दस्तों, घाव सुखाने के लिए जिंक ऑक्साइड व बोरिक एसिड के साथ मिलाकर किया जाता है।
मात्रा- गाय भैंस 50 ग्राम।

१४. सोडियम बाई कार्बोनेट- इसे खाने वाला सोडा भी कहते हैं। यह सफेद गंधहीन खाने में खारा व पानी में घुलनशील पाउडर होता है।इसका प्रयोग जलने पर या कटे स्थानों पर किया जाता है।
मात्रा गाय भैंस 10 से 120 ग्राम, भेड़ बकरी 5 से 15 ग्राम।

१५. नीला थोथा /कॉपर सल्फेट- यह नीले रंग का रवेदार, कसैला पदार्थ है यह कृमिनाशक व कीटाणु नाशक है इसलिए इसका प्रयोग पेट में कीड़े मारने, दस्त रोकने, घाव धोने, फुटबाथ आदि में किया जाता है। मात्रा -पेट के कीड़े मारने में, दस्त बंद करने में एवं फूट बाथ में 1% घोल, का उपयोग करते हैं।

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१६. अरंडी का तेल- यह अरंडी के बीजों से निकलने वाला हल्के पीले रंग का स्वादहीन तेल है। यह दस्तावर है व कब्ज में पेट साफ करने के प्रयोग में आता है।
मात्रा- गाय भैंस 500 से 1000 एम एल , भेड़ 30 से 125ml

१७. क्लोरोफॉर्म- यह रंगहीन उड़ने वाला स्वाद में मीठा व जलन पैदा करने वाला पदार्थ है इसका प्रयोग खांसी में भी किया जाता है।
मात्रा-, गाय 8 से 15 एम एल, भेड़ 2से 3 एम एल।

१८. चिरायता-, यह एक कड़वी पौधे की जड़ है जिसका प्रयोग भूख बढ़ाने, कमजोरी व अपच में किया जाता है।
मात्रा-, गाय भैंस मैं 30 से 60 ग्राम
१९. सौंठ-, इसका प्रयोग भूख बढ़ाने, पेट की गैस, दस्त रोकने व पेट फूलने आदि में किया जाता है।
मात्रा- 10 से 30 ग्राम
२०. डीडीटी पाउडर-, यह रंगीन गंध वाली पाउडर के रूप में कीटाणु नाशक पदार्थ है। संक्रामक रोग से युक्त पशु के स्थान को कीटाणु रहित करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

२१. यूकेलिप्टस का तेल- यह हल्का पीला स्वाद में कपूर जैसा, पानी में अघुलनशील, व अल्कोहल में घुलनशील तेल है। इसका प्रयोग जुखाम, धसका, दर्द में मालिश एवं डाययूरेटिक आदि के रूप में किया जाता है।

२२. ग्लिसरीन- यह रंगहीन, गंधहीन, स्वाद में मीठी होती है । यह अन्य मिक्सचर को मीठी करने में कब्ज को तोड़ने में व फोड़ो ,छालो आदि पर लगाने के काम में आती है।
२३.आयोडीन- यह काले रंग के तीखी गंध वाले रवे होते हैं। इसका प्रयोग त्वचा को जीवाणु रहित करने , घाव की सड़न रोकने ,साधारण सफाई व मक्खियों को भगाने में किया जाता है।
मात्रा-, गाय 2 से 4 ग्राम एवं छोटे पशु 1 ग्राम या कम।

२४. कमाला- यह गहरे लाल रंग का पाउडर है जो पेट के कीड़ों को मारने ,घाव सुखाने और दस्त लाने के काम आता है। इसका प्रयोग अधिकतर मुर्गी बिल्ली एवं कुत्ते में होता है।
मात्रा- मुर्गी 1 से 2 ग्राम, बिल्ली 1 से 3 ग्राम, कुत्ता 2 से 3 ग्राम।

२५. अलसी का तेल- अलसी के बीजों से प्राप्त यह गंध युक्त स्वाद में तीछड व अर्ध (अर्थात हवा में रखने पर गाढ़ा हो जाना) तेल है। यह दस्तावर है। इसका प्रयोग ऐठन एवं वायु के दर्द में किया जाता है।
मात्रा- गाय 300 से 600 मिली ,भेड़ बकरी 100 से 250 मिली।

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२६. मैग्नीशियम सल्फेट- सफेद रंग का खाने वाले नमक जैसा यह कड़वा पदार्थ है जो लोशन के रूप में मोच पर लगाया जाता है। यह बुखार कम करने, खून शुद्ध करने व खिलाने पर दस्त लगाता है।
मात्रा-, बुखार कम करने के लिए गाय और भैंस में 50 से 125 ग्राम तथा , दस्त लाने के लिए गाय और भैंस ने 500 ग्राम से 1 किलो।
२७. कुचला- यह गोल चपटे स्वाद में कड़वे वह गंधहीन बीज के रूप में होते हैं। इसका प्रयोग अन्य औषधियों के साथ मिलाकर अपच में भूख बढ़ाने में व टानिक के रूप में किया जाता है।
मात्रा-, गाय 0.2 से 2 ग्राम बकरी 0.1 से 0.4 ग्राम।

२८. अफीम- यह पोश्ते के फल से , निकाला गया रस है जो भारी गंध वाला तथा स्वाद में कड़वा होता है। इसका प्रयोग दर्द , अतिसार गैस, पेचिश आदि बीमारियों में किया जाता है।
मात्रा-, गाय 6 से 12 ग्राम, घोड़ा 3 से 8 ग्राम, भेड़ 1 से 2 ग्राम।

२९. कलमी शोरा-, यह सफेद रंग का स्वाद में नमकीन तथा ठंडा होता है। इसका प्रयोग बुखार को कम करने तथा रुके हुए मूत्र को उतारने में किया जाता है।
मात्रा – गाय भैंस 2 से 10 ग्राम एवं बकरी भेड़ 1 से 2 ग्राम।

३०. पोटैशियम परमैंगनेट-, यह रवेदार, गहरे रंग का तीखी गंध वाला कीटाणु नाशक पदार्थ है इसका प्रयोग घाव व जख्मों को धोने तथा पेट के कीड़ों को मारने में किया जाता है।
मात्रा-, धोने के लिए घोल एक से 5%
३१. गंधक- यह पीले रंग का पाउडर होता है जिसका प्रयोग खुजली में किया जाता है।
मात्रा- एक भाग सल्फर और 8 भाग सरसों का तेल मैं मिलाकर मलहम तैयार किया जाता है।
३२. तारपीन का तेल – यह स्वच्छ चमकीला रंगहीन द्रव है जो जीवाणु नाशक है एवं घाव के कीड़ों को मारता है। इसका प्रयोग दर्द दूर करने, पेट एवं घाव के कीड़े मारने, पेशाब लाने निमोनिया ,सूजन पर मलने, ब्रोंकाइटिस आदि रोग में किया जाता है।

३३. सल्फानीलामाइड पाउडर- यह सफेद दूधिया चिकना पाउडर है जो स्वाद में मीठा व तीखा तथा गंध रहित है। एंटीसेप्टिक होने के कारण इसका प्रयोग घावों पर छिड़कने या मलहम के रूप में किया जाता है।
नोट: उपरोक्त औषधियों का प्रयोग किसी कुशल पशु चिकित्सक के मार्गदर्शन में करें।

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