बर्ड फ्लू नहीं, अज्ञानता है शत्रु

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बर्ड फ्लू नहीं, अज्ञानता है शत्रु

Pashudhan Praharee,22nd Dec 2021

यह वायरस केवल पक्षियों को प्रभावित करता है, मनुष्यों को नहीं। इसके बावजूद भयाक्रांत होकर पोल्ट्री या संबद्ध उद्योगों पर मार उचित नहीं है
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तरुण श्रीधर

अनजान खतरा अधिक विचलित करता है, और हम अपने मस्तिष्क और सोच पर आत्म नियंत्रण खो बैठते हैं। लेकिन यह वायरस अज्ञात नहीं है, न ही इसका आक्रमण मनुष्यों पर है। इसका शिकार तो हैं मासूम परिंदे, पर हम हैं कि अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। यह है एवियन इनफ्लुएंजा, जिसे साधारण भाषा में बर्ड फ्लू कहते हैं। सार्वजनिक मंच व मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से इस पर चर्चा चल रही है जिसने कोरोना और क्रिकेट के चलते भी संवाद का स्थान बना लिया है। प्रतिक्रियाएं भी अधिकतर अधपके ज्ञान और भ्रामक सूचनाओं पर आधारित हैं; विज्ञान और विषय विशेषज्ञों की राय से कोसों दूर। लाखों की संख्या में मुर्गी मुर्गों की हत्या। इससे कहीं अधिक चिंताजनक यह है कि विभिन्न प्रदेश सरकारों द्वारा कुछ समय के लिए चिकन और अंडों की बिक्री व एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में व्यापार पर भी रोक लगा दी। साथ ही लोगों को अंडे और अन्य पोल्ट्री उत्पाद को न खाने की सलाह भी दी जा रही है। पोल्ट्री उद्योग अभी कोरोना की मार से पूरी तरह उभर नहीं पाया था कि यह प्रहार हो गया, और इसका जिम्मेदार वायरस इतना नहीं जितनी हमारी ख़ुद की अज्ञानता है। इसी अज्ञानता को तूल दिया सोशल मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे दुष्प्रचार, अफवाहों और भ्रामक जानकारी ने। कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण सबसे अधिक नुकसान पोल्ट्री उद्योग को ही झेलना पड़ा था; दो करोड़ लोगों का रोजगार, लगभग 15,000 करोड़ रुपए प्रतिमाह की हानि और करोड़ों चूजों का दफनाया जाना। इस पृष्ठभूमि में बर्ड फ्लू के संदर्भ में फैली भ्रांतियों को दूर करना आवश्यक है।
सबसे पहले इस बीमारी के नाम को ही हम ध्यान से समझ लें तो आशंका काफी हद तक दूर हो जानी चाहिए; बर्ड फ्लू अर्थात ऐसा फ्लू जो पक्षियों को होता है। वैसे भी याद करें कि 1918 के स्पैनिश फ्लू के बाद किसी भी फ्लू ने मनुष्यों में महामारी का रूप नहीं लिया। भारत में बर्ड फ्लू का व्यापक आगमन वर्ष 2006 में हुआ था और हर साल इसका वायरस कुछ समय, साधारणत: सर्दियों में पक्षियों को संक्रमित करता है जब असंख्य प्रवासी पक्षी कई राज्यों में आते हैं। इस वर्ष भी असाधारण हुआ तो कुछ नहीं पर दुर्भाग्यवश हम जरूर कर रहे हैं। जनता में एक और भय पैदा कर और मुर्गीपालकों व पोल्ट्री उद्योग से जुड़े रोजगार पर चोट मार कर। साक्ष्य यह बताते हैं कि 2006 के बाद से बर्ड फ्लू के संक्रमण की घटनाएं निरंतर घट रही हैं।
यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि देश में अभी तक यह बीमारी किसी भी मनुष्य में नहीं पायी गई। एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में इसके प्रसार के भी कोई वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिले हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2003 से 2020 तक समस्त विश्व में बर्ड फ्लू से कुल 862 व्यक्ति संक्रमित हुए और इस बीमारी से केवल 455 लोगों की मृत्यु हुई। इन गए सत्रह सालों में भारत में संक्रमितों की संख्या शून्य है। तो फिर यह भय और हलचल किस लिए? किसी राज्य में कुछ पक्षी संक्रमण के कारण मर गए, और हमने पोल्ट्री का कारोबार ही बंद करने के आदेश दे डाले! इससे अधिक तर्कहीन प्रतिक्रिया क्या हो सकती है? इस वर्ष बर्ड फ्लू के लक्षण मुख्यत: कौव्वों, बतखों और प्रवासी पक्षियों में ही पाए गए हैं। केवल एक दो स्थानों पर इक्का-दुक्का मुर्गियों के संक्रमण के प्रमाण हैं, और यह भी किसी पोल्ट्री फार्म में नहीं हैं।
हम हर भोजन अच्छी तरह पका कर खाते हैं। 70 डिग्री सेंटिग्रेड तापमान पर यह वायरस किसी भी सूरत में जीवित नहीं रह सकता। एक मिनट के लिए यदि मान भी लिया जाए कि मुर्गा या मुर्गी संक्रमित थे, तो भी मनुष्य के संक्रमण की संभावना नगण्य है। एक बार जब अंडा या मीट पक गया तो वायरस भी स्वत: ही नष्ट हो गया और भोजन व आप दोनों पहले ही की तरह सुरक्षित। साफ सफाई का ध्यान तो वैसे भी रखना ही है सभी को।
तो गत सत्रह साल में विश्वभर में यह 862 लोग कौन थे जो बर्ड फ्लू के वायरस से संक्रमित हुए? यह वो लोग थे जो लंबे समय तक संक्रमित पक्षियों के बहुत नजदीकी संपर्क में रहे क्योंकि यह मल व स्राव के माध्यम से ही फैलता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार सभी पीडि़त ग्रामीण व शहरी बस्तियों के वे लोग थे जो मुर्गी पालन भी करते हैं और जहां मुर्गियां नियंत्रित वातावरण में न रह कर खुले में घूमती हैं और संक्रमित हो चुकी हैं। पोल्ट्री मीट या अंडों के माध्यम से मनुष्य में बर्ड फ्लू के संक्रमण के साक्ष्य समस्त संसार में कहीं नहीं हैं। तो फिर ऐसे असंगत निर्णय क्यों? समझ लें कि यह प्रमाणित है कि बर्ड फ्लू साधारण तौर पर एक पक्षी से दूसरे पक्षी में फैलता है, पक्षी से मनुष्य में नहीं, और वह भी तब जब इन पक्षियों में एक संक्रमित हो।
किसी क्षेत्र में पक्षियों में इस वायरस के लक्षण मिलें तो क्या करें? साधारण उपाय हैं। पोल्ट्री मीट और अंडों को अच्छी तरह से पका कर खाएं, जो हम करते ही हैं। यदि घर में मुर्गियां पाली हैं तो उन्हें अलग दड़बे में रखें, और यदि वे खुली घूमती हैं तो उनसे ख़ुद दूरी बनाए रखें, जैसे कोरोना काल में एक दूसरे से बनाई थी। मुर्गियों को जंगली पक्षियों से बचाए रखें। पोल्ट्री फार्म जैव सुरक्षा के सब उपाय करते हैं क्योंकि संक्रमण से भारी हानि उठानी पड़ती है। अभी तक व्यावसायिक पोल्ट्री फार्मों में बर्ड फ्लू की कोई घटना सामने नहीं आयी है। अत: पोल्ट्री उत्पाद सुरक्षित हैं। प्रसंस्कृत पोल्ट्री पदार्थ भी उतने ही सुरक्षित हैं जितना कि घर में पकाया भोजन। केंद्र सरकार ने भी हाल ही में सभी प्रदेशों से आग्रह किया है कि इन पदार्थों की बिक्री, उपभोग व यातायात पर प्रतिबंध न लगाएं, इससे अनावश्यक घबराहट पैदा होती है और आर्थिकी दुष्प्रभावित होती है। यदि किसी स्थान विशेष पर व्यापक संक्रमण के प्रमाण मिलते हैं, तो केवल दस किलोमीटर के घेरा ही सुरक्षित किया जाए। बकौल चाणक्य, ‘अज्ञानता मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है। इसलिए अज्ञानता से दूर रहें और औरों को भी दूर रखें।
(लेखक भारत सरकार के मात्स्यिकी, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के पूर्व सचिव हैं)

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