मिल्क फीवर

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1927

मिल्क फीवर

डॉ. पुरुषोत्तम (पी.एच.डी. स्कोलर)

एनाटोमी विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविधालय,

राजुवास, बीकानेर-334001, राजस्थान

(Email – purushottam.beniwal@gmail.com)

परिचय

इस बीमारी को पारच्यूरेन्ट पेरेसिस और हाइपोकैलसीमिया भी कहते है । दुधारू पशु के लिये कैल्शियम-फास्फोरस का आहार में संतुलन अति महत्वपूर्ण है ।  यह एक मेटाबोलिक बीमारी है ।  व्यस्क मादा पशु में ब्याने के तुरंत बाद या कुछ दिन पहले, तथा ब्याने के बाद या पहले ऊतकों को कैल्सियम आयन की कमी से होती है ।  इससे पशु में हाइपोकैलसीमिया, माँसपेशियों में कमजोरी व पशु सीने पर या साइड में लेट जाता है ।

कारण

मुख्य कारण खून में कैल्शियम की कमी होना है, जिसके कई कारण हो सकते है :

  • कोलस्ट्रम व दूध में अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम का स्त्राव होना ।
  • ब्यावत के समय आंतों से कैल्शियम का अवशोषण निम्न कारकों से कम होना :
    • ब्यावत के समय आहार /खाना पीना कम करना ।
    • अपच/ रुमीनल मूवमेंट कम होना ।
    • आन्तो की बीमारी ।
    • कैल्शियम-फोस्फोरस बेलेन्स सही नहीं होना ।
    • विटामिन -डी की कमी होना ।
  • हड्डडयों से खून में कैल्शियम कम मात्रा में मिलना ।
    • पैराथाइराइड ग्रंथि से पैराथार्मोन का स्त्राव कम होना ।
    • खून में कैल्शियम का स्तर अचानक बढ़ जाना ।
    • सूखे पीरीयड में अधिक मात्रा में कैल्शियम देना ।
  • पशु के गर्भकाल के अंतिम समय में मिनरल कम मिलना ।

एपिडीमियोलॉजी

  • स्पोरैडिक बीमारी है ।
  • मुख्यतया गाय और भैंस में होती है पर कभी-कभी अन्य पशुओं में भी हो सकती है।
  • मुख्य रूप से वयस्क जानवरों में (5-10 वर्ष) ।
  • ज्यादा दूध देने वाले पशुओं में मुख्य रूप से पाई जाती है ।
  • ब्याने के कुछ दिन पहले या तुरंत बाद (48-72 घंटो में) हो सकती है
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लक्षण

इस बीमारी के तीन स्तर होते हैं –

  1. उत्तेजनात्मक / excitatory :
    • पशु लड़खड़ाकर चलता है। आंशिक लकवा व धनुषबान के लक्षण दिखते हैं ।
    • दांत किटकिटाना व मुँह में झाग आना ।
    • माँसपेसियों व शरीर में हल्की कम्पन ।
    • सिर को इधर उधर दहलाना ।
    • तापमान सामान्य/ हल्का कम /अधिक ।
  2. स्टर्नल रिकमबेनसी :
    • पशु खड़ा नहीं हो पाता है और सीने पर बैठकर सिर फ्लेंक या सोल्डर की तरफ करता है तथा निढाल हो जाता है ।
    • चमड़ी ठंडी व तापमान सामान्य से कम हो जाता है ।
    • पशु में कब्ज हो जाती है तथा पेशाब और गोबर बंद कर देता है ।
    • आँख की पुतली चौड़ी व फैल जाती है तथा रीफ्लैक्स बंद हो जाते हैं ।
  3. लेट जाने की अवस्था :
    • इस स्थिति में जानवर उठने व सीधा बैठने में असमर्थ होता है और एक तरफ लेट जाता है ।
    • तापमान सामान्य से काफी कम हो जाता है तथा चमड़ी व मज़ल ठंडी हो जाती हैं ।
    • पशु लंबा गहरा सांस लेता है ।
    • सिर बेहोशी की हालात में इधर-उधर जोर से पटकता है ।
    • आफरा आ जाता और गभाश्य का प्रोलेप्स हो जाता है ।
    • अंतिम स्थिति में मैंनेज करना असम्भव सा हो जाता है और 12-24 घंटे में इलाज नहीं होने पर पशु कि मृत्यु हो जाती है ।

निदान

  • लक्षणों द्वारा पहचान, तुरंत ब्याने और अधिक दूध देने की हिस्ट्री ।
  • स्टर्नल या लैटरल रिकमबेनसी व सामान्य से कम तापमान ।
  • सीरम में कैल्सीयम लेवल कम होना ।

उपचार

  • कैल्सीयम साल्ट का इन्जेक्शन मुख्य इलाज है (पराँटल / नस में) ।
  • नस में कैल्सीयम देने से पहले बोतल को हल्का गरम किया जाता है और धीरे धीरे चढ़ाया जाता है ।
  • साथ ही विटामिन -डी का इन्जेक्शन दिया जाता है ।
  • एंटी-हिस्टामिनिक दवाई ।
  • अगर लक्षण जारी रहे तो चिमड़ी में भी कैल्सीयम इन्जेक्शन दिया जाता है ।
  • यदि कीटोसिस के लक्षण हो तो 25% डेक्स्रोज भी दिया जाता है ।
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बचाव

  • ब्यावत से 1-2 सप्ताह पूर्व आहार में कैल्सीयम कि मात्रा कम कर देवें ।
  • ब्यावत के बाद दूध कम निकालें ।
  • पशु को ब्यावत के समय साफ सुथरा व सुखी जगह पर रखे और ज्यादा सदी से बचाएं ।
  • ब्यावत का समय नजदीक आने पर पशु को ट्रांसपोर्ट ना करे ।
  • विटामिन डी-3 का इन्जेक्शन ब्यावत से एक सप्ताह पूर्व लगावे ।
  • ब्यावत के तुरंत बाद कैल्सीयम का इन्जेक्शन लगा सकते हैं ।
  • मिनरल मिक्सर ब्याने के एक माह पूर्व आहार में देना शुरू कर दें ।

इस तरह पशु पालक जागरूक रहकर अपने दुधारू पशु को इस बीमारी व इससे होने वाले आर्थिक नुकसान से बचा सकते हैं ।

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https://indiancattle.com/hi/milk-fever-in-cattle/

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