नवजात बछड़ों का पालन पोषण

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नवजात बछड़ों का पालन पोषण-

 

नवजात नवजात बछड़े बड़े होकर पशुपालकों की गाय, भैंस, सांड या भैसा बनते हैं अतः यह आवश्यक है कि भविष्य की पशु संपदा की रक्षा व उचित देखभाल की जानी चाहिए। गाय के दूध उत्पादन पर उसके बच्चियां काल के पालन पोषण का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है वैसे गाय के अंदर दूध उत्पादन क्षमता उसकी पैतृक होती है और गाय को कितना ही अच्छा खिला पिला कर के भी हम उससे इस क्षमता से अधिक दूध नही ले सकते इसलिए प्रथम यह आवश्यक है कि हम केवल  वे ही  बच्चियां गाय बनाने के लिए पाले जिनकी  मां में अधिक दूध देने की क्षमता हो तथा उत्तम  सांडों से पैदा हुई हो और उसमें दूध देने वाले पशुओं की सभी शारीरिक विशेषताएं विद्यमान हो  ऐसी बछियों को ही अच्छी प्रकार से पाल -पोष  कर तथा उचित आयु में उत्तम नस्ल के सांड से प्रजनन करवा कर अच्छी गायें बना सकते हैं।जीवन के प्रथम कुछ सप्ताह इन बछड़ों के लिए विशेष महत्व के होते हैं क्योंकि इन्हें इस परिवर्तनशील वातावरण के अनुरूप अपने को परिवर्तित करना होता है इस अवधि में इन  नवजात बछड़े की विशेष देखभाल आवश्यक हो जाती है अन्यथा इनकी मृत्यु हो सकती है इस कारण यदि पशुपालक अपने नवजात बछड़े को बचाना चाहते हैं तो उनकी देखभाल व  प्रबंध पर थोड़ा सा ध्यान देना अति आवश्यक है जैसे ही बछड़ा मां के गर्भ से बाहर आता है उसकी मां उसे चाट कर साफ़ करती है और यह बछड़ा आधे घंटे से 2 घंटे के भीतर अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है यदि बछड़ा अपने आप खड़े होने में कठिनाई महसूस करता है तो उसे सहारा देकर खड़ा करने का प्रयत्न करना चाहिए खड़े होने के तुरंत बाद में मा के थन चूसने  का प्रयास करता है  तथा थन में सिर मारता है इसलिए यह आवश्यक है कि प्रथम बार थनों का हाथों से पकड़ कर बछड़े के मुंह में डाल दिया जाए ताकि वह दूध पी सके। कभी-कभी बछड़े की सफाई उसकी मां द्वारा ठीक से नहीं हो पाती है और बछड़े के नथुनों औऱ मुँह के चारों ओर श्लेष्मा या अन्य श्राव चिपके रहते हैं जिससे बछड़े आसानी से सांस नहीं ले पाते हैं ऐसी स्थिति में इन बछड़े के मुँह व नथुनों के आस-पास लगे श्लेष्मा या अन्य श्रावो को गीले कपड़े से भलीभांति साफ कर देना चाहिए तथा उसके वक्ष को दबाकर श्वसन क्रिया में सहायता प्रदान करना उचित रहता है बछड़े की जीभ को भी चलाकर कृत्रिम श्वसन  उपलब्ध कराया जा सकता है।बछड़े के गर्भ से बाहर आने के तुरंत बाद मां की नाभि रज्जु टूट जाती है अतः नाभि से लगभग एक -डेढ़ इंच की दूरी पर इस रज्जू में गांठ बांध देनी चाहिए इस गांठ से लगभग एक इंच नीचे को निरजीवाणुकृत कैंची या नए ब्लेड से काटकर उस पर टिंचर आयोडीन 2% जिनसन वायलेट या स्प्रिट  या अन्य  कोई भी जीवाणु रोधक क्रीम या एंटीसेप्टिक क्रीम लगा देनी चाहिए ऐसा करने से इन बछड़ो को नाभि संक्रमण से बचाया जा सकता है ।प्रसव  के पश्चात 4 से 5 दिनों तक माता पशु का दूध अत्यंत गाढ़ा होता है जिससे सामान्यतः खीस कहा जाता है इस खीस में प्रतिपिण्ड प्रोटीन की मात्रा बहुतयात में उपलब्ध रहती है इसलिए यह आवश्यक है कि नवजात बछड़े को यह खीस पिलाई जाए  । नवजात बछड़े में सक्रिय रोधक्षमता की कमी होती है क्योंकि यह मादा पशु के प्रतिपिण्डव गर्भस्थ शिशु तक नहीं पहुंच पाते हैं इस कारण इन बछड़ो को खीस पिलाना अत्यंत आवश्यक है प्रतिपिण्डों का अवशोषण बछड़े की आंतों में जन्म के 20 से 26 घंटे तक ही हो सकता है इस कारण यह आवश्यक है कि इस बछड़े  इस अवधि के भीतर उचित मात्रा में खीस प्राप्त कर लें कभी-कभी मां के थन में दूध नहीं आता या मां की म्रत्यु हो जाती है ऐसी अवस्था में बछड़े को दूसरी गाय से प्राप्त खीस पिलानी चाहिए विभिन्न पशु पालक अपनी सुविधानुसार नवजात बछड़े को उसकी माँ या अन्य   धाय मा के थन से दूध देते हैं  अथवा बाल्टी से दूध पिलाते हैं थन से दूध पिलाने के लिए आवश्यक है कि बछड़े के मुँह में प्रथम बार थन डाला जाए ताकि वो आसानी से थन चूस सके । कभी-कभी गाय मादा नवजात को अपना थन चूसने नही देती है जिससे बछड़ा डर जाता है और मादा पशु के पास नहीं जाता है  इस अवस्था में  यह उचित होगा कि बछड़ो को  किसी दूसरी गाय  के थन से दूध दिया जाए  यदि संभव न तो गाय को अच्ची प्रकार से  बांध कर उसके आगे थोड़ा सा दाना आदि रखे जिससे उसका ध्यान दाने की ओर अधिक रहे  इसके बाद वत्सो को थनों के पास ले जाकर दूध पिलाने का प्रयास करें  इससे गाय  बछड़े को दूध पिलाने लगेगी और बछड़े का डर भी समाप्त हो जाएगा।बछड़े को 3 से 4 सप्ताह तक केवल दूध ही दिया जाना चाहिए 4 से 10 सप्ताह तक संपूर्ण दूध की स्थान पर वसा रहित दूध या दूध विस्थापक पदार्थ उपयोग करना हितकर रहता है  दूध पी लेने के बाद बछड़े के मुंह को अच्छी तरह से साफ करके मुंह पर मुहबंद लगाना उचित रहता है इससे यह बछड़े  मिट्टी नही चाट पाते हैं और नहीं अपनी नाभि  या दूसरे जानवरों के कान पूछ या त्वचा चाट पाते हैं। 2 सप्ताह का होने के पश्चात इन  बछड़ों के सामने नमक का ढेला या खनिज लवण की ईंट रख देनी चाहिए है  ताकि वो इसको  थोड़ा थोड़ा चाटता रहे। जन्म से 10- 15 दिन के बाद बछड़े को कुछ मात्रा में दला हुआ अनाज जैसे जो, गेहूं का दलिया थोड़ी-थोड़ी मात्रा में शुरू कर देना चाहिए और जैसे आयु बढ़ती जाए अनाज की मात्रा बढ़ा देना चाहिए जब बछड़े को दूध विस्थापक पदार्थ  दिए जाते हैं तो उनको  कभी-कभी कब्ज की शिकायत हो  जाती है इसे दूर करने के लिए 100- 200 मि. ली. अरंडी, अलसी अथवा सरसों का तेल सप्ताह में एक बार दिया जाना चाहिए।जब यह बछड़े एक सप्ताह के हो जाते हैं तो इनकी सींग की जड़  समाप्त करा लेनी चाहिए ताकि बड़ा होने पर इनके सींग ना बन सकें।सींग की जड़ समाप्त करने के लिए कास्टिक पोटाश अथवा सिल्वर नाइट्रेट की पेंसिल का उपयोग करते हैं इसके लिए गर्म किये गए वोल्ट अथवा बिजली की डिडबिंग यंत्र का उपयोग भी कर सकते हैं । बछड़े की पहचान के लिए बड़े-बड़े पशु फार्मो पर उनके कान में नंबर गोद दिये जाते हैं  यह प्रक्रिया भी छोटे बछड़ो में ही हो जानी चाहिए।

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दो-तीन सप्ताह का होने के पश्चात यह बछड़े कभी-कभी भूसा ,रेशेदार चारे या हार्ड चारा चबाने की कोशिश करते हैं ऐसा करने पर उनके मुंह में घाव हो जाते और ये बछड़े रोग ग्रस्त हो सकते हैं  अतः यह आवश्यक है कि सूखा, कड़ा चारा इनकी पहुंच से दूर रखें प्रारंभ में उनको मुलायम घास या हरा मुलायम चारा जो कि अधिक रस युक्त हो  दिया जाना चाहिए ।नवजात बछड़े में ई-कोलाई का संक्रमण बहुतायत में देखने को मिलता है जिसके कारण एक सप्ताह या इससे कम आयु  के बछड़े को दस्त लग जाते हैं इन दस्तों में सफेद पानी की तरह मल  आता है अतः दस्त लगते बछड़े का उपचार करवाना चाहिए अन्यथाये बछड़े मर भी सकते हैं इन दस्तो की रोकथाम के लिए पशु चिकित्सक की सलाह एंटीबायोटिक ओषधी का उपयोग किया जा सकता है यह दवाएं दो-तीन दिन में दिन की उम्र के बछड़े को खिलाने से इनमें ई कोलाई के संक्रमण की संभावना काफी कम हो जाती हैं। और पशुपालक को इन बछड़ो को 8-10दिन का होने पर कर्मी नाशक औषधि पिलाई जाए तथा हर दो माह के बाद इसका उपयोग पशु चिकित्सक की सलाह से किया जाना चाहिए।

डॉ नरसी राम गुर्जर

शिक्षण सहयोगी ,वेटरनरी कॉलेज, बीकानेर

मो.न.9414103084

 

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