सूकर पालन:कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय

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सूकर पालन:कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय

DR RK MISHRA, PRAYAGRAJ

सूकर पालन कम कीमत पर में कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय हैं,जो युवक पशु पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाना चाहते हैं सूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि सूकर का मांस प्राप्त करने के लिए ही पाला जाता हैं । इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो सूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक  प्राप्त  होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।

यदि किसान सूकर पालन की शुरुआत करते हैं तो उनके लिए फायदे का सौदा हो सकता है। सूकर  पालन कोई भी किसान कर सकता है। इसके लिए सरकार द्वारा भी सहायता प्रदान की जाती है। इसके मांस में प्रोटीन होने की वजह से इसके मांस की मांग अधिक है। सुअर के मांस को निर्यात कर भी अच्छी आमदनी की जा सकती है।

सूकर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इस पशु का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। सूकर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विलासिता के सामान तैयार किये जाते हैं। इसे अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर हो सकते हैं । बेरोजगार ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो सूकर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय साबित हो सकता है, बशर्ते इस व्यवसाय को आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ अपनाया जाये ।यह व्यवसाय किसानों को रोजगार का एक अवसर देता है लेकिन इसके लिए आवश्यकता है सही जानकारी की।

देशी सूकर पालना आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं होता, क्योंकि जहां देशी नस्ल के सूकर का वजन डेढ़ वर्ष की आयु में 35-40 किलोग्राम होता है, वहीं इतनी ही आयु के विदेशी नस्ल के सूकर का वजन 90 से 100 किलोग्राम होता है, जहां देशी नस्ल के नवजात बच्चे का वजन 1.4 किलोग्राम होता है, देशी सूकरों का मांस भी काफी घटिया किस्म का होता हैं, इसलिए विदेशी नस्ल के सूकर ही पालने चाहिए।

सूकर पालन के लिए घर बनाते समय सर्दी, गर्मी, वर्षा नमी व सूखे आदि से बचाव का ध्यान रखना चाहिए । सूकरों के घर के साथ ही बाड़े भी बनाने चाहिए । ताकि सूकर बाड़े में घूम-फिर सकें । बाड़े में कुछ छायादार वृक्ष भी होने चाहिए, जिससे अधिक गर्मी के मौसम में सूकर वृक्षों की छाया में आराम कर सकें । सूकरों के घर की छत ढलवां होनी चाहिए और घर में रोशनी व पानी के लिए खुला बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुरली गोलाई में हो ताकि राशन आसानी से खाया जा सके । सूकरों के घर का फर्श समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए । मादा सूकर वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं, सामान्यतया मादा 112 से 116 दिन गर्भावस्था में रहती हैं इस अवस्था में तो विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ब्याने से एक महीना पूर्व मादा को प्रतिदिन तीन किलोग्राम खुराक दी जाती है, ताकि मादा की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा किया जा सके ।

एक नजर में सूकर  पालन :

इसके पालन के मामले में चीन सबसे आगे है।  भारत में सुअर उत्पादन आबादी का लगभग 28 प्रतिशत यानी लगभग 14 मिलियन से ज्यादा है। उत्तर–पूर्व के राज्यों में सूकर  पालन अधिक होता है। इसके अलावा देश के कई राज्यों में सूकर  पालन किया जाता है।

सूकर पालन की शुरुआत कैसे करें ?

इस व्यवसाय की शुरुआत करने से पहले आवश्यक है कि इसकी पूरी जानकारी हो। इस व्यवसाय में आने वाले खर्च, स्थान का चुनाव, सुअर की प्रजातियों का ज्ञान, व्यापार के जोखिम, पशुओं की बीमारी व बाजार का सही ज्ञान होना आवश्यक है।

सूकर पालन के फायदे :

मांस उत्पादन में दूसरे पशुओं के मुकाबले सूकर  से पर्याप्त मात्रा में मांस प्राप्त हो जाता है। इसका मांस अधिक प्रोटीन वाला होने की वजह से विदेशों में अधिक मांग है।

अधिकतर ऐसा खाना जिसको बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, सुअर पालन के जरिए इस खाने को पोषित मांस के रूप में प्राप्त किया जा सकता है। मादा सूकर  एक बार में 10 से 12 बच्चों को जन्म देती है। इस व्यवसाय में इनके रहने के स्थान और अन्य सामग्री पर कम निवेश की आवश्यकता होती है।

सूकर  का मांस अच्छी गुणवत्तायुक्त प्रोटीन और पोषक मांस के रूप में जाना जाता है ।अच्छी आय के नजरिए से इसके पालन से जल्दी ही 6 से 8 महीनों में अच्छी आमदनी होनी शुरू हो जाती है।

सूकर  पालन में आने वाला खर्च:

सुअर पालन की शुरुआत करते समय मुख्य रूप से रहने की व्यवस्था, मजदुर- कर्मचारी , भोजन सामग्री, प्रजनन और दवाओं पर खर्च होता है। यदि कोई व्यक्ति 20 मादा सुअर का पालन करता है तो इस हिसाब से 20 वर्ग गज के लिए 150 रुपए प्रति वर्ग गज के हिसाब से 60,000 रूपए, 2 सुअर के लिए 70 प्रतिवर्ग गज के हिसाब से 25,200 रूपए, स्टोर रूम पर आने वाला खर्च लगभग 30,000 रूपए और लेबर में आने वाला खर्च लगभग 60,000 रूपए सालाना खर्च आता है। यदि देखा जाए तो पहले सालाना खर्च लगभग 2,80,000 रूपए आता है। दूसरे साल में इनके प्रजनन और बच्चों पर आने वाला खर्च लगभग 3,00,000 रूपए के आस-पास आता है। इसके अलावा पहले साल का लाभ लगभग 21,200 रूपए, दूसरे साल का लाभ 7,80,000 रूपए और तीसरे साल 16,50,000 रूपए होता है। आने वाले वर्षों में यह आय इसी क्रम में बढ़ती जाती है। आने वाले खर्च के विपरीत किसान इस व्यवसाय से एक अच्छी आय आर्जित सकते हैं।

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सुअर पालन के लिए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता :

सुअर पालन के लिए सरकार ऋण भी उपलब्ध करवाती है। इस व्यवसाय की शुरुआत के लिए वैसे तो आने वाला खर्च उनकी संख्या, प्रजाति और रहने की व्यवस्था पर निर्भर करता है। व्यवसाय में आने वाले खर्च के लिए कुछ सरकारी संस्था जैसे नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा ऋण सुविधा उपलब्ध है।  अधिक जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बैंक अथवा नाबार्ड के कार्यालय से इसकी जानकारी ले सकते हैं।

सुअर पालन प्रशिक्षण संस्थान :

सुअर पालन व्यवसाय करने के पहले उसका प्रशिक्षण लेना आवश्यक है जिससे कि यदि कोई समस्या आती है तो व्यवसायी उससे स्वयं निपटने की क्षमता रखे।

सुअर पालन का प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थान हैं। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसन्धान केंद्र, पशु चिकित्सा विद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों को समय-समय पर सुअर पालन का प्रशिक्षण दिया जाता है।

सूकर की मुख्य प्रजातियाँ :

देश में सूकर  की काफी प्रजातियाँ हैं लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस,  हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।

सफेद यॉर्कशायर सूकर:

यह प्रजाति भारत में बहुत अधिक पाई जाती है। हालांकि यह एक विदेशी नस्ल है। इसका रंग सफेद और कहीं-कहीं पर काले धब्बे भी होते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं जबकि चेहरा थोड़ा खड़ा होता है। प्रजनन के मामले में ये बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन 300-400 किग्रा. और मादा सुअर का वजन 230-320 किग्रा के आसपास होता है।

लैंडरेस सूकर :

इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर सुअर 270-360 किग्रा. वजनी होता है जबकि मादा 200 से 320 किग्रा. वजनी होती है।

हैम्पशायर सूकर :

इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किग्रा. वजनी होती है।

घुंघरू सूकर:

इस प्रजाति के सूकर पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है।सूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूकर  की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं।  इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।

रानी, गुवाहाटी के राष्ट्रीय सूकर अनुसंधान केंद्र पर घुंगरू सूअरों को मानक प्रजनन, आहार उपलब्धता तथा प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है। भविष्य में प्रजनन कार्यक्रमों में उनकी आनुवंशिक सम्भावनाओं पर मूल्यांकन जारी है तथा उत्पादकता और जनन के लिहाज से यह देशी प्रजाति काफी सक्षम मानी जाती है।

सूकर का विपणन और बाजार:

वैसे तो भारत में सुकर की मांस की काफी अच्छी मांग है। हालांकि क्षेत्रीय मांग के अलावा विदेशों में भारत से इसके मांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह ऐसा पशु है जिसके मांस से लेकर चर्बी तक को काम में लिया जाता है

संकर सूकर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें:

  • देहाती सूकर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
  • विलायती सूकर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
  • विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूकर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूकर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूकर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
  • इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है।
  • इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
  • एक बड़ा सूकर 3 किलों के लगभग दाना खाता है।
  • इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
  • साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
  • सूकर पालनके लिए जरुरी है एक ऐसे स्थान का चुनाव करना जो थोड़ा खुले में हो और आसानी से इन पशुओं के रहने की व्यवस्था हो सके। यदि 20 सुअर  हैं  तो उनके लिए कम से कम 2 वर्ग मीटर प्रति सुअर रहने का स्थान उपलब्ध हो। साथ ही उनके प्रजनन के लिए स्थान होना आवश्यक है।
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सूकर की आहारप्रणाली सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है

दैनिक आहार की मात्रा

  • ग्रोअरसूकर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
  • ग्रोअरसूकर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
  • फिनसरपिगः5 किलो दाना मिश्रण।
  • प्रजननहेतु नर सूकरः0 किलो।
  • गाभिनसूकरीः0 किलो।
  • दुधारूसूकरी:0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
  • दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
  • गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।

सूकर पालन का का एक संछिप्त अर्थशास्त्र :

पूरी तरह विकसित सूकर की कीमत 8 हजार रुपये, महज एक नर और एक मादा से कोई भी इस धंधे को शुरु कर सकता है। एक बार में छह या इससे ज्यादा सूकर के बच्चे पैदा होते हैं, इस तरह तीन महीने के अंदर 10 सूअर हो जाता है। सूकर का एक बच्चा करीब ढाई हजार रुपये में बिकता है, पूर्ण विकसित सूकर आठ हजार रुपये में तक बिकता है। दो एकड़ जमीन पर एक बार में 50 सूअर का पालन हो सकता है।

सूकर की आहारप्रणाली सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है

दैनिक आहार की मात्रा

  • ग्रोअरसूकर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
  • ग्रोअरसूकर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
  • फिनसरपिगः5 किलो दाना मिश्रण।
  • प्रजननहेतु नर सूकरः0 किलो।
  • गाभिनसूकरीः0 किलो।
  • दुधारूसूकरी:0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
  • दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
  • गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।

 

 

सूकर पालन का का एक संछिप्त अर्थशास्त्र :

पूरी तरह विकसित सूकर की कीमत 8 हजार रुपये, महज एक नर और एक मादा से कोई भी इस धंधे को शुरु कर सकता है। एक बार में छह या इससे ज्यादा सूकर के बच्चे पैदा होते हैं, इस तरह तीन महीने के अंदर 10 सूअर हो जाता है। सूकर का एक बच्चा करीब ढाई हजार रुपये में बिकता है, पूर्ण विकसित सूकर आठ हजार रुपये में तक बिकता है। दो एकड़ जमीन पर एक बार में 50 सूअर का पालन हो सकता है।

सूकर में होने वाले प्रमुख रोग, निवारण, रोग प्रबंधन, अंतः व बाह्य परजीवी नियंत्रण

सूकर रोगों में सामान्य लक्षण-

  • सान्द्र आहार दाना कम खाना या खाने के प्रति अरूचि।
  • सांस तेज चलना।
  • पेशाब का रंग परिवर्तित होना।
  • मल कड़ा होना या दस्त होना।
  • त्वचा मे चकते।
  • होठों थूथनों का सूख जाना।

सूकरों के प्रमुख विषाणु जनित रोग-
(1) स्वाइन फीवर या सूकर बुखार।
(2) खुरपका-मुंहपका रोग (एफ.एम. डी.)

सूकर बुखार या स्वाइन फीवर-
यह विषाणु से होने वाला संक्रामक रोग है। यह बीमारी केवल सूकर प्रजाति में ही पाई जाती है। यह बीमारी दो रूपों में पाई जाती है, अल्पकालिक एवं दीर्घकालीक। अल्पकालिक रूप में संक्रमण होने के एक-दो हफ्तों के भीतर लक्षण आते हैं।

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इसके प्रमुख लक्षण है-

  • बिना किसी बाहरी लक्षण के अचानक मृत्यु।
  • भूख न लगना।
  • एकांत में शांत खड़े रहना।
  • होठों के थूथनों का सूख जाना।
  • तेज बुखार।
  • कब्ज या दस्त होना।
  • शरीर की त्वचा का रंग नीला पड़ना।
  • आंखें लाल होना।
  • सूकर का गोलाकार घूमना।
  • लड़खड़ाना।
  • मांस पेशियों में झटके आना।
  • सूकर बुखार में सभी सूकर शावक एवं व्यस्क सूकरों की शत प्रतिशत मृत्यु हो सकती है।

रोकथाम- इस बीमारी हेतु रोग प्रतिबंधत्मक टीकाकरण उपलब्ध है। टीके की पहली खुराक 2 हफ्ते में दूसरी खुराक 2 माह मे एवं प्रत्येक वर्ष एक खुराक पशु चिकित्सक की सलाह से लगवानी चाहिए।

खुरपका-मुंहपका रोग (एफ.एम.डी.)-
यह एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है। यह विषाणु अपने रोग के नाम के अनुसार मुंह, जीभ एवं खुरों के आस-पास की त्वचा पर संक्रमण करता है। संक्रमण के स्थान पर छाला बन जाता है। पशु को बुखार हो जाता है। दूर में भी देखने पर रोगी पशु के मुंह मे लार टपकते दिखाई देती है। पशु अक्सर अपने पैरों के बीच भाग को चाटता है। पैरों में लगंड़ापन आ जाता है, जिससे सूअर को चलने-फिरने में परेशानी होती है। इस बीमारी में मृत्युदर अपेक्षाकृत कम हैं, परंतु पैरों व मुंह के छाले लम्बे समय तक रहते हैं।

उपचार- उपचार हेतु पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। प्राथमिक उपचार हेतु मंुह को 2 प्रतिशत फिटकरी या पोटेशियम परमेगनेट या खाने के सोडा में धोना चाहिए। पैरों को 1 प्रतिशत वाशिंग सोडा या नीला थोथा (काॅपर सल्फेट) के घोल में धोना चाहिए। घाव पर बोरिक एसिड एवं ग्लिसरीन का घोल लगाना चाहिए। सूअर को खाने हेतु नरम व आसानी से पचने वाला दाना देना चाहिए। चाॅवल का माॅड़ एवं गेहूं का गुड़ में दलिया दिया जा सकता है।

रोकथाम- सूकरे के बाड़े को साफ-सूथरा रखना चाहिए। बाड़े में महीने मंे एक बार चूने से अच्छे से पुताई करनी चाहिए । प्रवेश द्वार पर चूना पाउडर का छिड़काव या दो प्रतिशत फार्मेलीन का घोल का उपयोग करना चाहिए।
पाॅलीवेंलेंट एफ.एम.डी. टीकाकरण करना चाहिए। पहला टीका जन्म के तीसरे हफ्ते, दूसरा टीका सात हफ्ते में तथा उसके बाद हर छः माह में टीकाकरण करना चाहिए।

पिगलेट एनीमिया-
यह रोग सूअर के शावकों में आयरन खनिज तत्व की कमी से होता है। इस रोग के मुख्य लक्षण हैः एनीमिया, कमजोरी, त्वचा एवं बालों का रूखापन, सुस्ती, दस्त लगना, त्वचा में झुर्रिया पड़ना। यह सामान्यतया दो से चार हफ्तों के सूकर शावकों में होता है।

उपचार- सूकर शावकों को दूसरे एवं तीसरे हफ्ते पशु चिकित्सक के परामर्श में आयरन डेªेक्ट्रान या इमफेरान का इंजेक्शन लगवाना चाहिए । ओरल आयरन टाॅनिक का भी सेवन सूकर शावकों को कराया जा सकता है।

सूकरों का हाइपोग्लाइसेनिया रोग-
यह रोग मुख्यतः सूकर शावकों को जन्म के पहले हफ्ते ग्लूकोज या ऊर्जा की कमी से होता है। इससे बचने हेतु एक दिन के अंतराल में गुड़ या शक्कर का घोल पानी को उबालकर कुनकुना कर सूकर शावकों को तीन दिनों तक पशु चिकित्सक की सलाह से दिया जा सकता है।

अंतः परीजीवी संक्रमण-
यह मुख्य रूप से गोल कृमि, फीताकृमि या फ्लूक कृमि के संक्रमण से होता है। इससे शारीरिक वृद्धि दर कम हो जाती है। सूकरों में एनीमिया एवं दस्त भी हो जाते हैं। सूअर का शरीर कमजोर एवं पेट फूला हुआ दिखाई देता है। बालों एवं त्वचा में सूखापन आ जाता हैंै। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
उपचार – कृमिनाशक दवा पान प्रति तीन माह में पशु चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए। पिपराजीन, फेन बेंडाजाल या आॅक्सी क्लोजानाॅइड आवश्यकतानुसार पशु चिकित्सक की सलाह से दी जा सकती है।

बाह्य परजीवी- इनमें मुख्य रूप से जुंआ, किल्ली, पेसुंआ इत्यादि आते हैं। इनके कारण त्वचा में खुजली होती है। सुअर के बाल गिरने लगते हैं। खुजली से पशु अपना शरीर रगड़ता है, जिससे उसकी त्वचा में घाव बन जाते हैं। इसके अलावा परजीवी के खून चूसने के कारण एनीमिया रोग भी हो सकता है। सूअर को लगातार खुजली होने से वो अपना आहार भी ग्रहण ठीक से नहीं कर पाते, जिससे उनका शारीरिक विकास भी कम हो जाता है।

उपचार- 2 भाग गंधक को 8 भाग अलसी का तेल में मिक्स कर त्वचा पर लगा सकते हैं। करंज, अलसी, देवदार या नीम के तेल को त्वचा पर लगाया जा सकता है। कीटनाशक स्पे्रयिंग या उपचार हेतु पशु चिकित्सक से सलाह लेवें।

 

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