कठिन प्रसव(डिसटोकिया) मे पशुपालको की भूमिका

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कठिन प्रसव(डिसटोकिया) मे पशुपालको की भूमिका

डॉ. सफदर अली खान1, डॉ. एस.के.तिवारी2, डॉ. एम.ओ.कलीम2 डॉ. दीपक कष्यप2
1 प.चि.स.श. पशु चिकित्सालय दरिमा, पशुधन विकास विभाग जिला-सरगुजा(छ0ग0)
2पषु शल्य चिकित्सा एंव विकिरण विभाग, पषु चिकित्सा व पषुपालन महाविद्यालय, अंजोरा दुर्ग (छ.ग.)

पशुओं मे कठिन प्रसव आपातकालीन सेवा मे आता है। यह गाय, भैंस, बकरी में पाया जाता है। सामान्यतः यह देखा गया है कि पशुपालक के द्वारा समय अधिक हो जाने पर पषु चिकित्सक को कठीन प्रसव की सुचना दी जाती है। जिसके कारण पषु चिकित्सक मादा पशु के गर्भ में पल रहे बच्चे को नही बचा पाते। आज के आधुनिक समय मे जहां महिलाओं के प्रसव हेतु अत्याधुनिक मषीन द्वारा गर्भ के भ्रुण की अवस्था को देखा जा सकता है, वही पशुओं मे देखा गया है कि कठीन प्रसव के स्थिति मे पहले बच्चे को खीच-खीच कर निकालते है, कभी -कभी मादा पशु के साथ क्रुरता भी किया जाता है। वर्तमान परिवेष मे भारत के प्रत्येक जिलों मे कुषल शल्य चिकित्सक उपस्थित होते है।
रोग के कारक :-
अ) मादा कारकः
1. युटेराइन टारसन(बच्चादानी का घुमाव/ गर्भाषय का पलटना)।
2. युटेराइन इनरसीया (गर्भाषय मे संकुचन न होना)।
3. बर्थ कैनाल/पेल्विक का छोटा आकार होना।
4. ग्रीवा का पर्याप्त फैलाव न हाना।
5. गर्भाषय मे संक्रमण।
ब) शिषु जन्य/फीटल कारकः
1. षिषु शरीर का बड़ा आकार होना।
2. षिषु का असमान्य स्थितियॉ (सही स्थिति, अवस्था न होना जैसे-गर्दन का मुड़ना इत्यादि )।
3. जन्मजात रोग( नकलिंग, एनासारका, हाइड्रोसीफेलस(मस्तिस्क मे पानी भरना), पोलीमेलिया (पैरों की संख्या चार से अधिक) इत्यादि) के समय।
कठिन प्रसव के लक्षण :-
प्रसव एक प्राकृतिक प्रकिया है जिसमे मादा पशु के गर्भ काल पूर्ण होने पश्चात बिना किसी के सहायता के षिषु का जन्म हो जाता है। सामान्यतः 12 घन्टे के भीतर ब्याने की क्रिया पुर्ण हो जाती है। ब्याने की तीन अवस्थाएं होती है-1) गर्भाषय मे संकुचन 2) बच्चे का बाहर आना 3) जेर का बाहर आना। यदि 12 घन्टे के पष्चात बच्चा बाहर न आए एंव हमे बच्चा निकालने हेतु सहायक की आवष्यता पड़े तब यह डिसटोकिया कहलाता है। कठिन प्रसव के निम्न लक्षण है-
1. बच्चा का केवल सिर का भाग योनी से बाहर दिखाई देना।
2. बच्चा का सिर तथा एक पैर योनी से बाहर दिखाई देना।
3. बच्चा का केवल सामने का दो पैर दिखे तथा सिर योनी से बाहर दिखाई न देना।
4. 12 घन्टे हो जाने पर भी योनी से बच्चा का कुछ भी अंष का न निकलना।
उपचारः
यह शल्य चिकित्सा एंव बिना शल्य के द्वारा ठीक किया जा सकता है।
पशुपालकों की भूमिकाः
पशुपालक को जितनी जल्द हो सके नजदीकी पशु चिकित्सक से सम्पर्क करनी चाहिए। समय अधिक होने पर बच्चे के साथ-साथ मादा पशु के मरने की संभावना बढ़ जाती है। मादा पशु के गर्भ मे संक्रमण का फैलाव नही होने देना चाहिए। गाय/भैंस/बकरी को सही नस्ल एव मादा के आकार के अनुसार सीमेन का चयनकर अधिक से अधिक कृत्रिम गर्भाधान करवांए क्योंकि यह उन्नत नस्ल के सीमेन के साथ अनुवांशिक रोग मुक्त होते है। सीजेरियन सर्जरी के पश्चात शुरु के 5 दिनों तक मादा पशु की विषेष देखभाल की आवष्यकता होती है, उन्हे शल्य चिकित्सक के निर्देष का पालन करना चाहिए।

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चित्र 1ः पशुओं मे कठिन प्रसव का शल्य चिकित्सा द्वारा सफल उपचार

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