सूअर पालन की वैज्ञानिक विधि :क्यों और कैसे करे?

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सूअर पालन की वैज्ञानिक विधि :क्यों और कैसे करे?

पशुपालन बिज़नेस में यदि किसी एक तरीके से अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, तो वो है व्यावसायिक सूअर पालन। इसमें लागत भी कम आती है। आपको बस हर तरह के  प्रबंधन, विपणन और सूअरों  की देखभाल के लिए वैज्ञानिक तरीका अपनाना होगा।

वर्तमान में शूकर पालन पशुधन उद्यमियों के लिए एक उभरता हुआ लाभदायक विकल्प है। व्यावसायिक शूकर पालन को बढ़ावा देने के लिए , विद्यार्थियों, पशु-चिकित्सकों, विभिन्न विकास संगठनों और उद्यमियों को वैज्ञानिक ज्ञान एवं कौशल प्रदान  करना है

शूकर की नस्लें, उनके आवास, आहार, प्रजनन, रख-रखाव और स्वास्थ्य प्रबन्धन की महत्वपूर्ण जानकारी  एवं शूकर पालन प्रोजेक्ट के बारे में आर्थिक विश्लेषण एवं मूल्यांकन की जानकारी भी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है शूकर पालन कम कीमत पर , कम समय में अधिक आय देने वाला व्यवसाय साबित हो सकता हैं, शूकर एक ऐसा पशु है, जिसे पालना आय की दृष्टि से बहुत लाभदायक हैं|

इस पशु को पालने का लाभ यह है कि एक तो शूकर एक ही बार में 5 से 14 बच्चे देने की क्षमता वाला एकमात्र पशु है, जिनसे मांस तो अधिक  प्राप्त  होता ही है और दूसरा इस पशु में अन्य पशुओं की तुलना में साधारण आहार को मांस में परिवर्तित करने की अत्यधिक क्षमता होती है, जिस कारण रोजगार की दृष्टि से यह पशु लाभदायक सिद्ध होता है ।

यदि किसान शूकर पालन की शुरुआत करते हैं तो उनके लिए फायदे का सौदा हो सकता है। शूकर  पालन कोई भी किसान कर सकता है।

इसके लिए सरकार द्वारा भी सहायता प्रदान की जाती है। इसके मांस में प्रोटीन होने की वजह से इसके मांस की मांग अधिक है। सुअर के मांस को निर्यात कर भी अच्छी आमदनी की जा सकती है।

शूकर का मांस भोजन के रूप में खाने के अलावा इस पशु का प्रत्येक अंग किसी न किसी रूप में उपयोगी है। शूकर की चर्बी, पोर्क, त्वचा, बाल और हड्डियों से विलासिता के सामान तैयार किये जाते हैं। इसे अपनाकर बेरोजगार युवक आत्मनिर्भर हो सकते हैं ।

अपने देश के बेरोजगार ग्रामीण युवकों, अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए तो शूकर पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय साबित हो सकता है, बशर्ते इस व्यवसाय को आधुनिक एवं वैज्ञानिक पद्धतियों के साथ अपनाया जाये । यह व्यवसाय किसानों को रोजगार का एक अवसर देता है इसलिए हम कह सकते हैं कि यह किसानों के लिए फायदे का सौदा है लेकिन इसके लिए आवश्यकता है सही जानकारी की।

सरकार ने भी सुकर पालन से संबंधित प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये है। जिससे लोगों की रूझान इस व्यवसाय की तरफ बढ़ती जा रही है, शूकर को खरीदने व बेचने के लिए समय-समय पर विभिन्नि क्षेत्रों में मार्केटिंग हार्ट भी लगाये जाते है, शूकर मेलों का आयोजन किया जाता है, जहां उचित मूल्य पर सूकरों का क्रय-विक्रय होता है और शूकर के रोगों की रोकथाम के लिए टीके व कीटनाशक दवाएं दी जाती हैं.

देशी शूकर पालना आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद नहीं होता, क्योंकि जहां देशी नस्ल के शूकर का वजन डेढ़ वर्ष की आयु में 35-40 किलोग्राम होता है, वहीं इतनी ही आयु के विदेशी नस्ल के शूकर का वजन 90 से 100 किलोग्राम होता है, जहां देशी नस्ल के नवजात बच्चे का वजन 1.4 किलोग्राम होता है, देशी सूकरों का मांस भी काफी घटिया किस्म का होता हैं, इसलिए विदेशी नस्ल के शूकर ही पालने चाहिए।

शूकर पालन के लिए घर बनाते समय सर्दी, गर्मी, वर्षा नमी व सूखे आदि से बचाव का ध्यान रखना चाहिए । सूकरों के घर के साथ ही बाड़े भी बनाने चाहिए । ताकि शूकर बाड़े में घूम-फिर सकें । बाड़े में कुछ छायादार वृक्ष भी होने चाहिए, जिससे अधिक गर्मी के मौसम में शूकर वृक्षों की छाया में आराम कर सकें ।

सूकरों के घर की छत ढलवां होनी चाहिए और घर में रोशनी व पानी के लिए खुला बनाते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खुरली गोलाई में हो ताकि राशन आसानी से खाया जा सके ।

सूकरों के घर का फर्श समय-समय पर साफ करते रहना चाहिए । मादा शूकर वर्ष में दो बार बच्चे देती हैं, सामान्यतया मादा 112 से 116 दिन गर्भावस्था में रहती हैं इस अवस्था में तो विशेष सावधानी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन ब्याने से एक महीना पूर्व मादा को प्रतिदिन तीन किलोग्राम खुराक दी जाती है, ताकि मादा की बढ़ती हुई जरूरत को पूरा किया जा सके ।

शूकर पालन के फायदे :

मांस उत्पादन में दूसरे पशुओं के मुकाबले शूकर  से पर्याप्त मात्रा में मांस प्राप्त हो जाता है। इसका मांस अधिक प्रोटीन वाला होने की वजह से विदेशों में अधिक मांग है।

अधिकतर ऐसा खाना जिसको बेकार समझकर फेंक दिया जाता है, सुअर पालन के जरिए इस खाने को पोषित मांस के रूप में प्राप्त किया जा सकता है। मादा शूकर  एक बार में 10 से 12 बच्चों को जन्म देती है। मादा साल में तीन बार बच्चों को जन्म देती है।इस व्यवसाय में इनके रहने के स्थान और अन्य सामग्री पर कम निवेश की आवश्यकता होती है।

शूकर  का मांस अच्छी गुणवत्तायुक्त प्रोटीन और पोषक मांस के रूप में जाना जाता है इसलिए भारत के साथ इसकी अन्य देशों में भी मांग है।अच्छी आय के नजरिए से इसके पालन से जल्दी ही 6 से 8 महीनों में अच्छी आमदनी होनी शुरू हो जाती है।

ज्ञातव्य रहे कि शूकर के मांस का प्रयोग कैमिकल्स के रूप में जैसे सौन्दर्य प्रसाधन व रासायनिक उत्पादों में प्रयोग होने की वजह से इसकी बहुत मांग है।

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शूकर  पालन में आने वाला खर्च:

सुअर पालन की शुरुआत करते समय मुख्य रूप से रहने की व्यवस्था, मजदुर- कर्मचारी , भोजन सामग्री, प्रजनन और दवाओं पर खर्च होता है। यदि कोई व्यक्ति 20 मादा सुअर का पालन करता है तो इस हिसाब से 20 वर्ग गज के लिए 150 रुपए प्रति वर्ग गज के हिसाब से 60,000 रूपए, 2 सुअर के लिए 70 प्रतिवर्ग गज के हिसाब से 25,200 रूपए, स्टोर रूम पर आने वाला खर्च लगभग 30,000 रूपए और लेबर में आने वाला खर्च लगभग 60,000 रूपए सालाना खर्च आता है।

यदि देखा जाए तो पहले सालाना खर्च लगभग 2,80,000 रूपए आता है। दूसरे साल में इनके प्रजनन और बच्चों पर आने वाला खर्च लगभग 3,00,000 रूपए के आस-पास आता है। इसके अलावा पहले साल का लाभ लगभग 21,200 रूपए, दूसरे साल का लाभ 7,80,000 रूपए और तीसरे साल 16,50,000 रूपए होता है। आने वाले वर्षों में यह आय इसी क्रम में बढ़ती जाती है। आने वाले खर्च के विपरीत किसान इस व्यवसाय से एक अच्छी आय आर्जित सकते हैं।

सुअर पालन के लिए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता :

सुअर पालन के लिए सरकार ऋण भी उपलब्ध करवाती है। इस व्यवसाय की शुरुआत के लिए वैसे तो आने वाला खर्च उनकी संख्या, प्रजाति और रहने की व्यवस्था पर निर्भर करता है। व्यवसाय में आने वाले खर्च के लिए कुछ सरकारी संस्था जैसे नाबार्ड और सरकारी बैंकों द्वारा ऋण सुविधा उपलब्ध है।

बैंकों और नाबार्ड द्वारा दिए जाने वाले इस ऋण पर ब्याज दर और समयावधि अलग-अलग होती है। वैसे ऋण पर ब्याजदर 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष होती है। इस व्यवसाय के लिए कागजी कार्यवाही के बाद ऋण आसानी से मिल जाता है। हालांकि किसान को निश्चित समयावधि के दौरान लिया गया कर्ज चुकाना होता है। अधिक जानकारी के लिए आप अपने नजदीकी बैंक अथवा नाबार्ड के कार्यालय से इसकी जानकारी ले सकते हैं।

सुअर पालन प्रशिक्षण संस्थान :

सुअर पालन का प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थान हैं। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के राष्ट्रीय शूकर अनुसन्धान केंद्र, आईवीआरआई इज्जतनगर पशु चिकित्सा विद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा किसानों को समय-समय पर सुअर पालन का प्रशिक्षण दिया जाता हैं.

शूकर की मुख्य प्रजातियाँ :

देश में शूकर  की काफी प्रजातियाँ हैं लेकिन मुख्यतः सफेद यॉर्कशायर, लैंडरेस, हल्का सफेद यॉर्कशायर, हैम्पशायर, ड्युरोक, इन्डीजीनियस और घुंघरू अधिक प्रचलित हैं।

  1. सफेदयॉर्कशायरशूकर:

यह प्रजाति भारत में बहुत अधिक पाई जाती है। हालांकि यह एक विदेशी नस्ल है। इसका रंग सफेद और कहीं-कहीं पर काले धब्बे भी होते हैं। कान मध्यम आकार के होते हैं जबकि चेहरा थोड़ा खड़ा होता है। प्रजनन के मामले में ये बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन 300-400 किग्रा. और मादा सुअर का वजन 230-320 किग्रा के आसपास होता है।

  1. लैंडरेसशूकर:

इसका रंग सफेद, शारीरिक रूप से लम्बा, कान-नाक-थूथन भी लम्बे होते हैं। प्रजनन के मामले में भी यह बहुत अच्छी प्रजाति है। इसमें यॉर्कशायर के समान ही गुण हैं। इस प्रजाति का नर सुअर 270-360 किग्रा. वजनी होता है जबकि मादा 200 से 320 किग्रा. वजनी होती है।

  1. हैम्पशायरशूकर:

इस प्रजाति के सुअर मध्यम आकार के होते हैं। शरीर गठीला और रंग काला होता है। मांस का व्यवसाय करने वालों के लिए यह बहुत अच्छी प्रजाति मानी जाती है। नर सुअर का वजन लगभग 300 किलो और मादा सुअर 250 किग्रा. वजनी होती है।

  1. घुंघरूशूकर:

इस प्रजाति के शूकर पालन अधिकतर उत्तर-पूर्वी राज्यों में किया जाता है। खासकर बंगाल में इसका पालन किया जाता है। इसकी वृद्धि दर बहुत अच्छी है।शूकर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है।

शूकर  की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू शूकर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं।  इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है।

नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।

वैसे तो भारत और नेपाल में सुकर की मांस की काफी अच्छी मांग है। हालांकि क्षेत्रीय मांग के अलावा विदेशों में भारत से इसके मांस का बड़ी मात्रा में निर्यात किया जाता है। यह ऐसा पशु है जिसके मांस से लेकर चर्बी तक को काम में लिया जाता है।

भारत से लगभग 6 लाख टन से ज्यादा सुअर का मांस दूसरे देशों में निर्यात किया जाता है। इसके मांस का प्रयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधनों और कैमिकल के रूप में प्रयोग होता है इसलिए यह व्यवसाय किसानों के लिए लाभकारी है जिससे वो अच्छा लाभ ले सकते हैं

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शूकर की आहारप्रणाली :

सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है।सूकरो के दाने में आप मिक्चर-मिनरल्स मिला कर दाना तैयार कर सकतें हैं।

दैनिक आहार की मात्रा

ग्रोअर शूकर (26 से 45 किलो तक): प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।

ग्रोअर शूकर (वजन 12 से 25 किलो तक): प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।

फिनसर पिगः5 किलो दाना मिश्रण।

प्रजनन हेतु नर सूकरः0 किलो।

गाभिन सूकरीः0 किलो।

दुधारू सूकरी:0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।

दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।

गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।

शूकर पालन का का एक संछिप्त अर्थशास्त्र :

पूरी तरह विकसित शूकर की कीमत 8 हजार रुपये, महज एक नर और एक मादा से कोई भी इस धंधे को शुरु कर सकता है। एक बार में छह या इससे ज्यादा शूकर के बच्चे पैदा होते हैं, इस तरह तीन महीने के अंदर 10 शूकर हो जाता है। शूकर का एक बच्चा करीब ढाई हजार रुपये में बिकता है, पूर्ण विकसित शूकर आठ हजार रुपये में तक बिकता है। दो एकड़ जमीन पर एक बार में 50 शूकर का पालन हो सकता है। एक साल में एक हजार शूकर का उत्पादन कर 30 लाख रुपये कमाई की जा सकती है।

संकर सूअर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें

  • देहाती सूअर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
  • विलायती सूअर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
  • विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूअर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूअर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूअर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
  • संकर सूअर, राँची पशु चिकित्सा महाविद्यालय (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय), राँची से प्राप्त हो सकते हैं।
  • इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है।
  • इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
  • एक बड़ा सूअर 3 किलों के लगभग दाना खाता है।
  • इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
  • साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूअर की नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा देशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शरीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति देसी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है।

दिन में ही सूअर से प्रसव

गर्भ विज्ञान विभाग, राँची पशुपालन महाविद्यालय ने सूअर में ऐच्छिक प्रसव के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने मान्यता प्रदान की है। इसमें कुछ हारमोन के प्रयोग से एक निर्धारित समय में प्रसव कराया जा सकता है। दिन में प्रसव होने से सूअर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूअर पालकों को काफी फायदा हुआ है।

सूअर की आहार प्रणाली

सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है। अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए निम्नलिखित दाना मिश्रण का इस्तेमाल करेः

क्रिप राशन ग्रोअर राशन फिनिशर राशन
मकई 60 भाग 64 भाग 60 भाग
बादाम खली 20 भाग 15 भाग 10 भाग
चोकर 10 भाग 12.5 भाग 24.5 भाग
मछली चूर्ण 8 भाग 6 भाग 3 भाग
लवण मिश्रण 1.5 भाग 2.5 भाग 2.5 भाग
नमक 0.5 भाग 100 भाग 100 भाग
कुल 100 भाग

 

रोविमिक्स रोभिवी और रोविमिक्स रोविमिक्स
200 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण
20 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण
200 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण

गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।

दैनिक आहार की मात्रा

  • ग्रोअर सूअर (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
  • ग्रोअर सूअर (26 से 45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
  • फिनसर पिगः 2.5 किलो दाना मिश्रण।
  • प्रजनन हेतु नर सूकरः 3.0 किलो।
  • गाभिन सूकरीः 3.0 किलो।
  • दुधारू सूकरी 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
  • दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।
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सुअरो के रोग एवं उनका उपचार

सुअर उत्पादकों को सफल होने के लिए, अपने पशुओं को स्वस्थ रखना महत्वपूर्ण है।  ऐसा करने के लिए, झुंड में होने वाली बीमारियों के बारे में जानना आवश्यक है। सूअरों के साथ काम करने वाले सभी कर्मचारी सामान्य बीमारियों के लक्षणों को पहचानने में सक्षम हो सकते हैं और उचित रूप से प्रबंधक या पशुचिकित्सा को सतर्क कर सकते हैं। उपयुक्त दवा के साथ सूअरों का इलाज अगला कदम है। रोकथाम, इलाज से स्पष्ट रूप से बेहतर है, और एक झुंड स्वास्थ्य योजना होने से बीमारी की घटनाओं को कम करने में मदद मिलेगी।

सुअरों के कुछ संक्रामक रोग निम्नलिखित हैं:-

क) सूकर ज्वर

इसमें तेज बुखार, तन्द्र, कै और दस्त का होना, साँस लेने में कठिनाई होना, शरीर पर लाला तथा पीले धब्बे निकाल आना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| समय-समय पर टीका लगवा कर इस बीमारी से बचा जा सकता है|

ख) सूकर चेचक

इसमें बुखार होना, सुस्त पड़ जाना, भूख न लगना, तथा कान, गर्दन एवं शरीर के अन्य भागों पर फफोला पड़ जाना, रोगी सुअरों का धीरे धीरे चलना, तथा कभी-कभी उसके बाल खड़े हो जाना बीमारी के मुख्य लक्षण है| टीका लगवाकर भी इस बीमारी से बचा जा सकता है |

ग) खुर मुंह पका

इसमें  खुर एवं मुंह में छोटे-छोटे घाव हो जाना, सुअर का लंगड़ा का चलना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं| मुंह में छाले पड़ जाने के कारण खाने में तकलीफ होती है तथा सुअर भूख से मर जाता है| खुर के घावों पर फिनाईल मिला हुआ पानी लगाना चाहिए तथा नीम की पत्ती लगाना लाभदायक होता है| टीका लगवाने से यह बीमारी भी जानवरों के पास नहीं पहुँच पाती है|

घ) एनये पील्ही ज्वर

इस रोग में ज्वर बढ़ जाता है| नाड़ी तेज जो जाती है| हाथ पैर ठंडे पड़ जाते हैं| पशु अचानक मर जाता है| पेशाब में भी रक्त आता है| इस रोग में सुअर के गले में सूजन हो जाती है| इस बीमारी का भी टीका होता है|

ङ) एरी सीपलेस

तेज बुखार, खाल पर छाले पड़ना, कान लाल हो जाना तथा दस्त होना इस बीमारी को मुख्य लक्षण हैं| रोगी सुअर को निमानिया का खतरा हमेशा रहता है| रोग निरोधक टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है|

च) यक्ष्मा

रोगी सुअर के किसी अंग में गिल्टी फूल जाती है जो बाद में चलकर फूट जाता है तथा उससे मवाद निकलता है| इसके अलावे रोगी सुअर को बुखार भी आ जाता है| इस सुअर में तपेदिक के लक्षण होने लगते हैं| उन्हें मार डाल जाए तथा उसकी लाश में चूना या ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर गाड़ किया जाए|

छ) पेचिस

रोगी सुअर सुस्त होकर हर क्षण लेटे रहना चाहता है| उसे थोड़ा सा बुखार हो जाता है तथा तेजी से दुबला होने लगता है| हल्के सा पाच्य भोजन तथा साफ पानी देना अति आवश्यक है| रोगी सुअर को अलग- अलग रखना तथा पेशाब पैखाना तुरंत साफ कर देना अति आवश्यक है|

परजीवी जय एवं पोषाहार संबंधी रोग

सुअरों में ढील अधिक पायी जाती है| जिसका इलाज गैमक्सीन के छिड़काव से किया जा सकता है| सुअर के गृह के दरारों एवं दीवारों पर भी इसका छिड़काव करना चाहिए|

सुअरों में खौरा नामक बीमारी अधिक होता है जिसके कारण दीवालों में सुअर अपने को रगड़ते रहता है| अत: इसके बचाव के लिए सुअर गृह से सटे, घूमने के स्थान पर एक खम्भा गाड़ कर कोई बोरा इत्यादि लपेटकर उसे गंधक से बने दवा से भिगो कर रख देनी चाहिए| ताकि उसमें सुअर अपने को रगड़े तथा खौरा से मुक्त हो जाए|

सुअर के पेट तथा आंत में रहने वाले परोपजीवी जीवों को मारने के लिए प्रत्येक माह पशु चिकित्सक की सलाह से परोपजीवी मारक दवा पिलाना चाहिए| अन्यथा यह परोपजीवी हमारे लाभ में बहुत बड़े बाधक सिद्ध होगें|

पक्का फर्श पर रहने वाली सुअरी जब बच्चा देती है तो उसके बच्चे में लौह तत्व की कमी अक्सर पाई जाती है| इस बचाव के लिए प्रत्येक प्रसव गृह के एक कोने में टोकरी साफ मिट्टी में हरा कशिस मिला कर रख देना चाहिए सुअर बच्चे इसे कोड़ कर लौह तत्व चाट सकें |

 

सूअर पालन की वैज्ञानिक विधि

सूअर पालन

Compiled  & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

Image-Courtesy-Google

Reference-On Request.

      

 

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