पशुओं में होने वाली जूनोटिक बीमारियाँ और उनकी रोकथाम

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पशुओं में होने वाली जूनोटिक बीमारियाँ और उनकी रोकथाम

 

डॉ. माधवी धैर्यकर, डॉ सचिन कम्बोज डॉ. राहुल सेहर डॉ. भावना अहरवार
नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय, जबलपुर (म.प्र.)

 

मनुष्यों का पशुओं के साथ अनंत काल से घनिष्ठ सम्बंध रहा है। अगर यह कहें कि पशुओं के बिना मनुष्यों का जीवन सम्भव नहीं है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी । आज पशुओं का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में जैसे भोजन, कपड़े, परिवहन आदि के रूप में होता है। इसीलिए मनुष्य एवं पशु एक दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं । मनुष्य विभिन्न व्यवसायों में काम करने के कारण पशु एवं उसके सीधे शरीर के सम्पर्क आने से भी काफ़ी बीमारियों का शिकार हो जाता है । जानवरों के साथ लगातार सम्पर्क में रहने के कारण रोगों के क़ीटाणु मनुष्य में फैल सकते हैं । कुछ जूनोटिक बीमारियाँ पशुओं एवं मनुष्य दोनो में ही जानलेवा होती हैं । अधिकतम जूनोटिक बीमारियों का संक्रमण पशुओं के प्रत्यक्ष (direct) और अप्रत्यक्ष (indirect) रूप से सम्पर्क में आने से होता हैं । पशु उत्पाद एवं खाद्य पदार्थों से भी ज़ूनोटिक बीमारियां फैलती हैं । ज़ूनोटिक रोगों का प्रकोप उन लोगों में अधिक देखा गया है जो गंदी व घनी बस्तियों में रहते हैं और जहाँ मक्खी मछर बहुत ज़्यादा होते हैं ।

जूनोटिक बीमारियाँ मुख्यतः विषाणु, जीवाणु और परजीवी संक्रमण से होती हैं । मनुष्य में होने वाली कुछ मुख्य जूनोटिक बीमारियाँ निम्न हैं ।

 

रेबीज़ : अर्लक रोग या Hydrophobia

एक ऐसा विषाणुज रोग है जिसमें मुख्यतः चमगादड़ या कुत्ते के काटने से, उसकी लार के द्वारा विषाणुज विषाक्तता के कारण मानव / काटे जाने वाले पशु के मष्तिष्क तंतु कुप्रभावित हो जाते हैं और मष्तिष्कशोथ (Encephalitis ) की स्थिति पैदा हो जाती है I एक अनुमानानुसार इस रोग के कारण प्रति वर्ष विश्व में लगभग ५५००० व्यक्ति उचित उपचार के अभाव में जिनमें अधिकतम बच्चे होते हैं , काल के गाल में समा जाते हैं I

       

बर्ड फ्लू :

एवियन इन्फ्लुएन्ज़ा या फाउल प्लेग , आरथोमिक्सोवायरिडी परिवार के इन्फ्लुएन्ज़ा टाइप ए प्रकार के विषाणुओं के माध्यम से फैलता है I इस विषाणु का संचरण पक्षियों द्वारा मनुष्यों में तथा मनुष्यों द्वारा पक्षियों में संभावित हैI मनुष्यों में इस रोग के प्रमुख लक्षण खॉसी , सर्दी ,जुकाम , आँखों में लाली और उससे निरंतर पानी गिरना , सांस लेने में परेशानी , शरीर में ऐंठन तथा ज्वर आदि प्रमुख हैं I

 

स्वाइन फ्लू:

यह रोग एक प्रकार के आर. एन .ए . विषाणु आर्थोमिक्सो वायरस से होता है जो बहुत जल्दी- जल्दी अपना स्वरुप बदलता रहता है जिससे कारण इसकी सटीक पहचान समय रहते न हो पाने के कारण अधिक जन –धन की हानि होती है I साथ ही साथ हीमोफिलस जीवाणु द्वारा रोग की आक्रामकता और भी बढ़ जाती है I इस रोग का संचरण मुख्यतः वायु के द्वारा होता है I सूअर के फेफड़े में उपस्थित गोल कृमि इस रोग के प्रसार में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं जिससे शूकर मांस के रसिकों में यदि मांस को भलीभांति पका कर न खाया जाये तो इस रोग के प्रसार की अधिक सम्भावना बन जाती है I मनुष्यों में इस रोग के प्रमुख लक्षणों में खॉसी , सर्दी ,जुकाम , आँखों में लाली , उससे निरंतर पानी गिरना , सांस लेने में परेशानी , अशक्तता, प्रवाहिका ( Diarrhoea), शरीर में ऐंठन तथा ज्वर आदि प्रमुख हैं I

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वेस्ट नाइल ज्वर :

LEAD Technologies Inc. V1.01

वेस्ट नाइल विषाणु (Flavivivirus) संक्रमित मुर्गियों से होता हुआ मच्छरों के काटने के माध्यम से मनुष्यों तथा घोड़ों तक पहुंचता है I इस रोग के प्रमुख नैदानिक लक्षण फ़्लू जैसे होते हैं जिनमें अचानक तीव्र सिर दर्द , ठण्ड लगना ,ज्वर, जी मिचलाना, उल्टी, पेश्यार्ति (myalagia) , पश्च नेत्र गुहा में पीड़ा आदि प्रमुख हैं Iछोटे बच्चों में तीव्र संक्रमण की दशा में मानसिक प्रमाद , पक्षाघात तथा कोमा आदि भी घटित हो सकता है I

रिफ्ट वैली ज्वर :

आर. वी. एफ. विषाणु के प्राकृतिक प्रसारक मच्छर , चौपाये तथा मनुष्य हैं I मनुष्यों में इस रोग के प्रारम्भ में अस्थायी शारीरिक दुर्बलता के पश्चात ज्वर, पेश्यार्ति (myalagia) तथा व्याकुलता (malaise) के लक्षण पाये जाते हैं जो कुछ लोगों में मष्तिष्कशोथ , दृष्टिपटलीय विसंगतियों तथा रक्तस्राव जैसे दुष्कर कष्टों में परिणत हो जाते हैं I इस रोग के कारण सन् १९७७ में इजिप्ट में सर्वप्रथम सर्वाधिक जनहानि हुई थी जिसके कारण लगभग ६०० रोगियों की इस रोग के कारण मृत्यु हो गयी थी I

 

ऐन्थ्रेक्स :

तिल्ली बुखार के नाम से भी जाना जाने वाला यह रोग बैसिलस ऐन्थ्रेसिस नामक जीवाणु के माध्यम से पशुओं से मनुष्यों तथा मनुष्यों से पशुओं में संचारित होने वाला एक घातक रोग है I मनुष्यों में यह रोग पशुपालकों, वधिकों , ऊन् का कार्य करने वालों तथा भेंड़ पालकों में अधिक होता है Iइस रोग से पीड़ित मनुष्यों में त्वचा, फेफड़ों व आंतों में इस रोग के लक्षण प्रकट होते हैं I हाथ , सिर तथा गर्दन पर विषैली फुन्सियाँ ( Malignant carbuncles ) बन जाती हैं I मनुष्यों में कभी कभी आंत्रीय प्रकार के गिल्टी रोग अथवा फेफड़ों में क्षति की समस्या भी देखने को मिलती है Iपशुओं में इस रोग से बचाव हेतु टीकाकरण तथा मनुष्यों में इस संक्रमण का उपचार ऐंटीऐन्थ्रेक्स सीरम तथा जीवाणुनाशक औषधियों द्वारा किया जाता है I

 

.ग्लैंडरस एवं फारसी रोग:

ग्लैंडरस एवं फारसी रोग घोड़ों, गधों, टट्टुओ व खच्चरों में पाया जाने वाला एक जीवाणु जनित संक्रामक एवं जूनोटिक रोग है ।जो कि “बरखोलडेरिया मैलियाई” नामक जीवाणु से उत्पन्न होता है। यह बीमारी संक्रमित पशुओं से मनुष्यों में फैल सकती है। यह बीमारी लाइलाज और अत्यंत घातक है । इस बीमारी से ग्रस्त पशु इलाज के बाद सामान्य दिखते हुए भी बीमारी को अन्य स्वस्थ पशुओं में एवं मनुष्य में फैला सकते हैं।

पशुओं में ग्लैंडर्स के लक्षण:
१. तेज बुखार होना।
२. नाक से पीला श्राव आना और सांस लेने में तकलीफ होना।
३. नाक के अंदर छाले एवं घाव दिखना।
४. पैरों, जोड़ो, अंडकोष व सबमैक्सीलरी ग्रंथि में सूजन हो जाना।

फारसी: उपरोक्त के अतिरिक्त जब पूंछ ,गले एवं पेट के निचले हिस्से में गांठ पड़ जाए
एवं त्वचा में फोड़े व घुमडिया, आदि पड़ जाए।

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तपेदिक :

टी. बी. , तपेदिक , क्षय रोग अथवा राजयक्ष्मा पशुओं से मनुष्यों तथा मनुष्यों से पशुओं तक माइकोबैक्टीरियम बोविस या माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस जीवाणु के द्वारा फैलने वाला दीर्घकालिक महत्वपूर्ण रोग है I गोपशुओं का क्षय रोग मनुष्यों में दूषित दूध तथा दुग्ध उत्पादों द्वारा संचारित होता है I बच्चों में दूषित दूध से क्षय रोग होने की अधिक सम्भावना होती है I पशुपालकों,पशु चिकित्सकों, ग्वालों, बिना उबला या ठीक से पास्तुरिकृत नहीं किया दूध पीने वाले व्यक्तियों में तथा दूषित केक , पेस्ट्री व आइसक्रीम द्वारा अन्यान्य लोगों में भी यह रोग फैल सकता है I क्षय रोग से प्रभावित रोगी में सामान्यतः शारीरिक दुर्बलता ,थकान, सुस्ती , हल्का ज्वर ( 99 -100 0 F ) , शरीर में दर्द रात्रि में पसीना आना आदि लक्षण प्रकट होते हैं I साथ में पाचन तंत्र की गड़बड़ी भी पायी जा सकती है I ऐसे व्यक्तियों का रक्त परीक्षण करने पर एरिथ्रोसाइट सेडीमेन्टेशन बढ़ा पाया जाता है

ब्रूसेल्लोसिस :

ब्रुसेल्ला जीवाणुओं के माध्यम से मनुष्यों तक संचारित इस रोग के कारण पीड़ित व्यक्ति में अंडुलंट ज्वर ( Undulant Fever) , गर्भपात , बाँझपन , जोड़ों में दर्द , हल्का ज्वर, शरीर में टूटन , रात्रि में पसीना , वृषण में सूजन, कमजोरी, पीठ तथा गर्दन में दर्द आदि लक्षण पैदा हो जाते हैं I यह रोग प्रथमतः ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों को हो जाता है जो रोगी पशुओं के संपर्क में आते हैं , तत्पश्चात इस रोग का अन्यान्य क्षेत्रों में भी प्रसार हो जाता है

        

लेप्टोस्पाईरोसिस :

यह रोग लेप्टोस्पाईरा प्रजाति के लहरदार जीवाणुओं तथा उनकी उपप्रजातियों द्वारा सीवर में कार्य करने वाले सफाई कर्मचारियों तथा पशुशाला के कर्मचारियों को हो जाता है I पीड़ित मनुष्यों में पीलिया,रक्तस्राव तथा तीव्र ज्वर आदि लक्षण प्रकट हो जाते हैं I मनुष्यों में इस रोग का प्रकोप प्राकृतिक तथा पशुपालन द्वारा उत्पन्न कृत्रिम अवस्थाओं में , पालतू पशुओं के प्रत्यक्ष संपर्क में आने ,पशुओं के मूत्र द्वारा दूषित जल या मिटटी द्वारा होता है I

 

 

क्यू ज्वर :

काक्सिलिया ब्रूनेटी नामक जीवाणु के कारण यह रोग मनुष्यों में प्रसारित होता है जो बिना किसी लक्षण के अथवा महीनों तक गंभीर फ्लू के लक्षणों के साथ भी प्रकट हो सकता है I यह रोग सम्बंधित जीवाणु के भेंड़ , बकरी अथवा गाय के मूत्र एवं अपरा द्रव ( Placental fluid ) के माध्यम से श्वांस के द्वारा मनुष्यों तक पहुँच उन्हें संक्रमित करता है I इस रोग के सहज रोगी भेंड़ पालक , पशु चिकित्सक , वधिक तथा उन उतारने वाले व्यक्ति होते हैं I इस रोग का टीका वैसे तो उपलब्ध है पर यदि उसे पहले से ही रोग प्रतिरक्षी व्यक्ति को लगा दिया जाये तो टीका वाले स्थान पर गंभीर स्थानीय प्रतिक्रिया प्रकट हो जाती है I

 

क्रिप्टोस्पोरिडियोसिस:

क्रिप्टोस्पोरिडियम एक ऐसा प्रोटोजोआ है जो संक्रमण की दशा में तीव्र दस्त की स्थिति पैदा करता है I वैसे तो पशुओं में क्रिप्टोस्पोरिडियम संक्रमण बहुत सहजता से हो जाता है पर नैदानिक लक्षण एक माह से कम आयु के बछड़ों में प्रायः पाए जाते हैं I क्रिप्टोस्पोरिडियम संक्रमित जल अथवा खाद्य पदार्थों के माध्यम से पशुओं तथा मनुष्यों में अपनी पैठ बनाते हैं I जो लोग संक्रमित पशुओं या उनके मल के संपर्कमें आने के बाद अपने हाथों को खूब अच्छी तरह से साफ नहीं करते हैं , स्वयं भी संक्रमित हो जाते हैं I संक्रमित मनुष्यों में अति तीव्र दस्त , पेट में दर्द , उल्टी ,ज्वर तथा मांसपेशियों में खिंचाव व् पीड़ा के नैदानिक लक्षण पाए जाते हैं I

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टॉक्सोप्लास्मोसिस :

यह भी एक प्रोटोजोआ जनित रोग है जो मनुष्यों में पालतू बिल्लियों के संक्रमित मल के माध्यम से फैलता है जबकि बिल्लियों में यह संक्रमण चिड़ियों , चूहों तथा कच्चे संक्रमित मांस को खानें के द्वारा प्रसारित होता है I अल्प प्रतिरक्षा वाले वृद्धों ,बच्चों तथा ४ माह से कम की गर्भिणी स्त्रियों में इस संक्रमण की अधिक सम्भावना होती है I गर्भवती स्त्रियों में इस संक्रमण के कारण गर्भ विकृति की भी संभावना रहती है I

 

मनुष्यों में पशुजन्य रोग संक्रमण से बचाव के कुछ सामान्य उपाय:

  • पशु तथा मनुष्यों के रहने के स्थान पर स्वच्छता का निरंतर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है I
  • पशु मल मूत्र तथा खाद्य अवशेषों का समुचित निस्तारण आवश्यक है I
  • अनजाने तथा छुट्टा पशुओं का आवागमन पशुशाला में यथासम्भव नियंत्रित करना चाहिये I
  • पशुओं के संपर्क में आने के बाद हाथों को भलीभाँति साबुन से धोना एक सरल तथा पशुजन्य रोग संक्रमण से बचाव का एक व्यावहारिक निरोधी उपाय है I इसके लिए पशुशाला या पशु चिकित्सा केन्द्र पर साबुन की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिये I
  • अपास्तुरिकृत दूध तथा दुग्ध पदार्थों का उपभोग छोटे बच्चों , वृद्ध व्यक्तियों , गर्भवती स्त्रियों तथा अल्प रोग प्रतिरोधी क्षमता वाले व्यक्तियों में पशुजन्यरोग संक्रमण का कारण बन सकता है I अतः सदैव भलीभाँति उबले या पास्तुरिकृत दूध का उपभोग करना चाहिये
  • मांस का खूब भलीभाँति उच्च आतंरिक तापक्रम (1650F से अधिक) के प्रयोग द्वारा भलीभाँति पकाने के बाद ही उपभोग करना चाहिये
  • कच्चे अंडे का खाने में प्रयोग यथासम्भव बचाना चाहिये I
  • कच्चे माँस का प्रयोगशाला में भी प्रयोग सदा समस्त संस्तुत सावधानियों के साथ करना चाहिये I
  • कच्चे खाद्य पदार्थों के संपर्क में आने वाली सतह तथा समस्त बर्तनों को खूब अच्छी तरह गरम पानी तथा साबुन की सहायता से साफ़ करने के बाद ही प्रयोग करना चाहिये I
  • छोटे बच्चों तथा अन्य व्यक्तियों को भी अपने पालतू पशुओं यथा कुत्ते, बिल्ली आदि के संपर्क में आने के बाद अपने हाथों को अच्छे से साबुन से धुलना तथा तत्पश्चात यदि संभव हो तो स्नान करना चाहिये I
  • रोगी पशुओं का सदैव स्वस्थ पशुओं तथा मनुष्यों से पृथक्कीकरण प्रारम्भ में ही सुनिश्चित करना चाहिये I
  • नवीन पशुओं का आयात करने के पश्चात उनका समुचित संगरोध ( Quarantine ) सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है I
  • पर्याप्त मात्र में व्यक्तिगत निरोधी वस्तुओं यथा दस्ताने , चश्मे तथा गैस मास्क की पशुपालन तथा पशुचिकित्सा से जुड़े व्यक्तियों के पास उपलब्धता तथा उपाय l
  • https://www.pashudhanpraharee.com/zoonotic-diseases-people-awareness-is-must-for-healthy-future/
  • https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92e935947936940-914930-92d948902938/92e93594793693f92f93e902/%E0%A4%AA%E0%A4%B6%E0%A5%81%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%B5-%E0%A4%89%E0%A4%B8%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B5
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