भेड़ बकरियों के चयन की विधि तथा विभिन्न अवस्थाओं हेतु आहार बनाना

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भेड़ बकरियों के चयन की विधि तथा विभिन्न अवस्थाओं हेतु आहार बनाना

भेड़ व बकरी पालन का व्यवसाय समाज के भूमिहीन, बेरोजगार नवयुवकों के लिए आमदनी का एक अच्छा साधन है क्योंकि इस व्यवसाय में लागत कम और आमदनी अधिक है। भेड़ व बकरियों के लिए चरागाह का होना अत्यंत आवश्यक है। भेड़ बकरियाँ रोमांसिक पशु वर्ग में आती हैं जिसके तहत पशु मोटे चारे से ऊर्जा प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। बकरियों केे चरने की विधि को ‘‘ब्राउजिंग’’ कहते हैं क्योंकि बकरियाँ धरती से थोड़ा ऊपर की वनस्पति तथा पेड़ के पत्तों को खाना अधिक पसंद करती हैं। भेड़ों के चरने की विधि को ‘‘ग्रेजिंग’’ जिसकी वजह से ये छोटी घास को भी खा सकती हैं।

पशुओं के चयन की विधियां –

क. प्रारूप अथवा बाह्य रचना
ख. स्वयं तथा सम्बन्धियों की उत्पादन क्षमता
ग. संतति परीक्षण
घ. वंशावली

क. प्रारूप अथवा बाह्य रचना

यह पशुओं के चुनने की परम्परागत रीति है जिसमें एक नर आधे रेवड़ के बराबर होता है क्योंकि निकृष्ट नर रेवड़ के गुणों की गिरावट का कारण होता है। इसके विपरीत एक पूर्ण सक्षम नर अनुवांशिकीय वृद्धि की योग्यता रखता है। चयन करते समय पशुओं के शरीर के विभिन्न अंगों का ज्ञान अनिवार्य है।

नरों का चयन:

जो नर प्रजनन के लिए रखना हो वह आकर्षक, स्वस्थ, प्रभावशाली, उत्तेजक, उपजाऊ और मर्दाने डील डोल होना चाहिए। नर की गर्दन ऊँची हो तथा सभी नस्लीय नस्लों से संपन्न होना चाहिए।

मादाओं का चयन:

लगातार प्रजनन और जुड़वाँ मेमने या छाग देने वाली हो। मादा अच्छा दूध पिलाने वाली हो ताकि मेमनों का वजन छः महीने पर अच्छा हो तथा दीर्घ प्रजनन आयु वाली हो।

विभिन्न शरीर अंगों का ब्योरेवार वर्णन-

a.आंख व कान:
बड़ी चमकीली एवं नम आंखे पशु के स्वस्थ होने का प्रमाण होती है।

b.सिर:
चैड़ा कपोल व थूथुन होना चाहिए तथा दृढ़ जबड़ा, जो की पशु के चरने की क्षमता को प्रकट करता है।

c. गर्दन व कंधे:
लंबी एवं मजबूत गर्दन तथा मजबूत कंधे होने चाहिए। कंधे, रीड की हड्डी के समान्तर होने चाहिए।

d. पीठ तथा कमर:
मजबूत और सीधी पीठ शरीर के अंगों की उत्तम रचना दर्शाती है। पीठ व कमर समतल हो और यदि पीठ में झुकाव हो तो यह शारीरिक दोष माना जाता है।

e. काठी:
भरे हुए चैड़े पुट्ठों वाला पशु अधिक मांस वाला होगा और यह उत्पादन भी अच्छा करेगा।

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f. वक्ष:
छोड़ा व भरा हुआ वक्ष अधिक उत्पादन में सहायक होता है।

g. पेट:
गहरा और चैड़ा पेट अधिक भोजन ग्रहण करने की क्षमता दर्शाता है। पसलियां पेट को गोल आकार देती हैं जबकि चपटी पसलियों वाले पशु को ‘‘पेटु आकार’’ दोष वाला माना जाता है।

h. पांव व टाँगे:
पशु अपने चारों पांव पर सामान रूप से खड़ा होना चाहिए तथा नर के आगे के व मादा के पीछे के पैर मजबूत होने चाहिए।

i. अयन:
बड़ा अयन अधिक क्षमता का प्रदर्शन करता है। अयन का मुलायम तथा गांठ रहित होना पशुओं के स्वस्थ होने का प्रतीक है। अयन पर समान लम्बाई वाले थन हो तथा दोनों थनों के रन्ध खुले हुए होने चाहिए।

j. त्वचा व ऊन:
त्वचा मुलायम व ढीली हो पर शुष्क न हो। भेड़ के शरीर पर ऊन की चमक विशिष्ट हो।

k. शरीर की लम्बाई:
अधिक लम्बाई अधिकतम उत्पादन को दर्शाती है क्योंकि बड़े आकार के पशु की चारा दाना खाने की क्षमता अधिक होगी और उनकी शारीरिक वृद्धि जल्दी होगी।
ऊपर दी गई बातों के अतिरिक्त चयन के समय पशु प्रजनन को पशु के नस्लीय गुणों की सत्यता, स्वस्थता, उम्र, ब्यांत संख्या आदि की जानकारी रखना आवश्यक है।

ख. स्वयं तथा सम्बन्धियों की उत्पादन क्षमता:

सम्बन्धियों का प्रदर्शन विशेषतः तब देखते हैं जब वर्गीकरण किये जाने पशुओं के बारे में सूचना उपलब्ध न हो क्योंकि नजदीकी संबंधी ही उपयोगी होंगे ना कि दूर के संबंधी।

ग. संतति परीक्षण:

प्रजनन हेतु नरों का चयन करने की यह सर्वोत्तम विधि है और इसके लाभ भी बहुत ज्यादा हैं इसलिए प्रायः इस विधि को उपयोग करना चाहिए।

घ. वंशावली:

वंशावली के आधार पर चयन करने से आनुवंशिक दोषों का भी पता लगाया जा सकता है। इसके आधार पर वही नर चुने जो ऐसी मादाओं से पैदा हुए हो जिनकी वंशावली अधिक मांस उत्पादन करने में प्रसिद्ध हो तथा साथ-साथ मादा की स्वयं की शारीरिक वृद्धि भी उत्तम होनी चाहिये।
उपरोक्त चारों विधियां अलग-अलग भी प्रयोग कर सकते हैं पर इन चारों को मिलाकर उपयोग करना सबसे उत्तम है।

भेड़ बकरियों में आहार की आवश्यकता निर्वाह तथा उत्पादन हेतु होती है। पशु के आहार ग्रहाण का एक भाग स्वस्थ शरीर पर खर्च हाता है जिसे निर्वाह आहार कहते हैं। गाय भैंस के मुकाबले में भेड़ बकरियों का प्रति शरीर इकाई ज्यादा होता है क्योंकि इनको प्रतिदिन चराई के लिए आठ से दस किलोमीटर चलना पड़ता है। जीवन निर्वाह के लिए प्रति 100 किलोग्राम शरीर भार के लिए 1 किलोग्राम पाच्य पोषक तत्व एवं 45 से 65 ग्राम प्रोटीन की जरूरत होती है। जीवन निर्वाह हेतु पोषक तत्वों की आवश्यकता के अतिरिक्त शरीर वृद्धि, उत्पादन या कार्य हेतु जितने पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वह उत्पादन आहार कहलाता हैं. दूध वाली भेड़ बकरियों को शरीर निर्बाह हेतु पोषक तत्वों के आलावा दूध उत्पादन के लिए भी पोषक तत्व उपलब्ध करवाना हैं. दूध उत्पादन के लिए ऊर्जा, प्रोटीन, कैल्शियम तथा फॉस्फोरस की आबश्यकता होती हैं, इस दौरान बरसीम तथा लूसर्न जैसे फलीदार हरे चारे और गहुँ का चोकर अबश्य देना चाहिए. दोष उत्पादन के अतिरिक्त शरीर बृद्धि हेतु भी प्रोटीन तथा ऊर्जा की आबश्यकता होती है.

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भेड़ बकरियों को आहार देने के कुछ मूल नियम निम्नलिखित हैं-

a. भेड़ बकरियों को 8-9 घंटे की चराई के आलावा कुछ दाना भी देना जरूरी होता है।
b. चारे का प्रकार एकदम से नहीं बदलना चाहिए।
c. दाना पहले खिलने के बाद ही सूखा तथा हरा देना चाहिए। आहार में सूखे चारे, हरे चारे एवं दाना मिश्रण का समावेश होना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में पशु को मिल सके।
d. आहार में नमक तथा खनिज मिश्रण अवश्य सम्मिलित करना चाहिए। नमक देने से बदहजमी की शिकायत नहीं होती व आहार स्वादिष्ट बन जाता है। खनिज मिश्रण शरीर की कैल्शियम, फाॅस्फोरस तथा अन्य खनिज तत्वों की कमी को पूरा करता है।

विभिन्न आयुवर्ग के पशुओं का आहार बनाना:-

चराई से भेड़ बकरियों को आहार मिलता है परन्तु इन चरागाहों से संतुलित आहार नहीं मिलता। भेड़ बकरियों का लाभकारी उत्पादन करने केे लिए तथा उनका स्वास्थ्य ठीक बनाये रखने के लिए संतुलित आहार उपलब्ध करवाना बहुत जरूरी है। अतः विभिन्न पोषक तत्वों का समावेश एवं सस्ते आहार तत्वों का चयन करके आहार को सम्पूर्ण बनाना चाहिए। आयु अनुसार भेड़ बकरियों के आहार की व्यवस्था इस प्रकार है-
मेमनो का आहार-

पैदा होने के 1-2 घण्टे के अंदर खीस पिलाना सबसे जरूरी होता है क्योंकि खीस में जीवाणु रोधक तत्व अत्यधिक मात्रा में होते हैं जो मेमनों तथा लैलों को बीमारी से बचाते हैं। खीस बच्चों के पेट से मल बाहर निकालने में भी सहायक होता है। पहले तीन दिन तक नवजात को दिन में तीन बार खीस अवश्य पिलानी चाहिए। दो सप्ताह तक मेमनों या लैलों को 250 ग्राम प्रतिदिन दूध पिलाना चाहिए। दो सप्ताह के बाद चारा तथा दाना देना शुरू कर देना चाहिए। दाना मिश्रण बनाने में मक्का के 30 भाग, जेहुँ की चोकर के 27 भाग, मूंगफली की खल के 40 भाग तथा खनिज लवण के 3 भाग प्रयोग कर सकते हैं। चारे में लूसर्न, बरसीम, लोबिया व पेड़ों के पत्ते दे सकते हैं। तीन महीने बाद मेमनों को पेट भर हरा चारा देना चाहिए। यदि बरसीम, रिजका, लोबिया इत्यादि हर चारे के रूप् में उपलब्ध हो तो 100 ग्राम दाना प्रतिदिन देना चाहिए। अगर मक्का या जई हरे चारे के रूप में हो तो दाने की मात्रा 250 ग्राम कर देनी चाहिए।

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b. एक वर्ष के मेमनों की आहार:

व्यवस्था सात से आठ घंटे की चराई के साथ-साथ 250 ग्राम दाना भी देना आवश्यक है। शाम को बरसीम ‘‘हे’’, चने या ग्वार का चारा डालना चाहिए ताकि 15 माह की आयु तक नर वयस्क तथा मादा गर्भधारण करने के लायक वजन प्राप्त कर लें।

c. गाभिन भेड़ बकरी की आहार व्यवस्था:

गर्भवस्था में जीवन निर्वाह के अतिरिक्त गर्भ में बच्चे के पोषण तत्वों की आवश्यकता होती है। इस सकतय अधिक ऊर्जावान आहार जैसे जौ, मक्की तथा जई उपलब्ध करवाना चाहिए। ब्याने के कुछ दिन पहले खाने में दाने की मात्रा कम कर देनी चाहिए। ब्याने के बाद हल्का और दस्तावर दाना व चारा देना चाहिए। कुछ दिनों बाद दाने की मात्रा धीरे-धीरे करके बढ़ानी चाहिए।

d. दुधारू भेड़ बकरी का आहार:

दुधारू पशुओं को उत्पादन तथा निर्वाह आहार देना चाहिए क्योंकि आहार पर ही दुधारू पशु का दूध उत्पादन निर्भर करता है। दूध उत्पादन पर ही नवजात का स्वास्थ्य एवं वृद्धि निर्भर करती है।

निष्कर्ष:

भेड़ बकरियों का सही चयन करके युवा मांस उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं। सही चयन के साथ-साथ खान पान का भी विशेष ध्यान देना चाहिए। सही चारे एवं दाने का प्रयोग करके भेड़ बकरियों को रोगमुक्त रख सकते हैं जिससे भेड़ बकरी पालन अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

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