बैकयार्ड मुर्गी पालन : खाद्य सुरक्षा की गारंटी

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बैकयार्ड मुर्गी पालन : खाद्य सुरक्षा की गारंटी

डॉ. नरेंद्र सिंह, डॉ. जयेश व्यास, डॉ. उपेंद्र सिंह

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय,

राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

Email of corresponding author: jayeshvyas04@gmail.com

देश में मुर्गी पालन तेजी से बढ़ता हुआ व्यवसाय है | जोकि खाद्य सुरक्षा के साथ साथ आर्थिक स्वावलम्बन में बहुत सहायक है | भारत में अधिकांश किसान कृषि एवं पशुपालन आधारित व्यवसाय से जुड़े है चूँकि कृषि वर्षा आधारित होती है जिसमे की नफा नुकसान की संभावना बनी रहती है | अंडे की बढ़ती मांग को देखते हुए मुर्गी पालन अच्छी कमाई वाला रोजगार का साधन होता जा रहा है। कम पूंजी में मोटी कमाई का यह एक बेहतर रास्ता साबित हो रहा है।  बढ़ती आबादी और घटते रोजगार में बेरोजगार युवक कृषि और पशुपालन को व्यवसाय के रूप में बहुत तेजी से अपना रहे हैं।  इसका प्रमुख कारण इनसे होने वाले अतिरिक्त फायदा है। बैकयार्ड मुर्गी पालन लोगों के लिए एक लाभदायक व्यसाय बन गया है। यह एक ऐसा व्यवसाय है जो आय का अतिरिक्त साधन बन सकता है।  यह व्यवसाय बहुत कम लागत में शुरू किया जा सकता है और इसमें मुनाफा भी काफी ज्यादा है।  घर के पिछवाड़े में छोटे स्थान पर मुर्गियों को घरेलू श्रम और स्थानीय उपलब्ध दाना-पानी का उपयोग करते हुए कम से कम आर्थिक व्यय से मुर्गी पालन को बैकयार्ड कुक्कट पालन या बैकयार्ड मुर्गी पालन कहते है जोकि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो, गरीब किसानो, ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक स्वावलम्बन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है | ग्रामीण या दूर दराज के क्षेत्रो में जंहा मांस एवं अंडो की उपलब्धता मुश्किल से होती है या अधिक कीमत पर यह उपलब्ध होते है ऐसे क्षेत्रो में बैकयार्ड मुर्गी पालन वरदान साबित हो सकता है | भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् , राज्य कृषि विश्वविधालय एवं वेटरनरी विश्वविधालय में विभिन्न मुर्गियों की नस्लों के मिश्रित प्रजनन से मुर्गियों की बहुत सी देशी नस्लों को विकसित किया गया है जो की अच्छी मात्रा में मांस एवं अंडे उत्पादन के साथ साथ वहां की स्थानीय जलवायु में पूरी तरह अनुकूल होती है| महिलाएँ जो कि घरेलु कार्यो में व्यस्त रहती है वो भी आसानी से समय निकालकर घर के पिछवाड़े में मुर्गी पालन कर अपने परिवार का भरण पोषण कर सकती है तथा अपनी बचत से अपने एवं परिवार का जीवन स्तर सुधार सकती है |

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 https://icar.org.in/hi/content/%E0%A4%B5%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A7%E0%A4%BF-%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%96%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%8F%E0%A4%B5%E0%A4%82-%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%B7%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A4%BE

बैकयार्ड मुर्गी पालन की शुरुआत:

20 से 30 देसी मुर्गियों से इस व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं। इन मुर्गियों के 1 दिन के चूजों की कीमत लगभग 30 से 60 रुपये तक हो सकती है। देसी मुर्गियों में अंडे सेने का गुण होता है। जिसका लाभ यह होता है कि किसानों को बार-बार चूजे खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। देसी मुर्गी साल में 160 से 180 अंडे देती हैं, जिनका बाजार में मूल्य अधिक होता है। देसी मुर्गी के अंडे की मांग भी बहुत ज्यादा है। आजकल इसको जैविक अंडा के रूप मे इस्तेमाल किया जा रहा है। इसकी कीमत आमतौर पर साधारण अंडे के मुकाबले ज्यादा होती है और इसकी मार्केटिंग मे कोई परेशानी नहीं होती है।

बैकयार्ड मुर्गी पालन के लाभ:

  • बैकयार्ड मुर्गीपालन के लिए कम जमीन, श्रम, एवं पूंजी की आवश्यकता होती है।
  • यह ग्रामीण लोगो को फसल की बर्बादी या अन्य आपात की घडी में अतिरिक्त आय प्रदान करती है।
  • लघु सीमांत और भूमिहीन किसानों, जिनके पास बजट कम होता है, वे आसानी से कम लागत में अतिरिक्त पैसे कमा सकते हैं।
  • मुर्गी के विष्टा से भूमि उपजाऊ होती है क्यूंकि इसमें नाइट्रोजन की मात्रा प्रचूर मात्रा में मिलती है।
  • यह ग्रामीण क्षेत्रो में पिछड़े लोगो को स्वरोज़गार प्रदान करता है
  • बंजर भूमि का भी बैकयार्ड मुर्गी पालन करने में उपयोग में ले सकते है जिससे बंजर भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
  • बैकयार्ड मुर्गी पालन के माध्यम से देसी नस्ल की मुर्गियों का संरक्षण भी कर सकते है|
  • पोषक तत्वों से भरपूर अंडा प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत है जो घर-परिवार पोषण स्तर में भी सुधार करता है।
  • रसोई से निकले हुए अवशिष्ट पदार्थ जिन्हें फेंक दिया जाता है, बैकयार्ड मुर्गी पालन में इसका उपयोग मुर्गियों के चारे के लिए किया जा सकता है।
  • घर के आस-पास पड़े खाली स्थानों का सदुपयोग होता है और आर्थिक आवश्यकताओं को पूरी करने में योगदान देता है।
  • सी मुर्गा का बाजार मूल्य ज्यादा और मांग भी अधिक होती है।
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बैकयार्ड कुक्कट प्रबंधन:

  • बैकयार्ड मुर्गी पालन में पक्षियों को घर के पिछवाड़े में प्राकृतिक खाद्य आधार के पर 10–20 मुर्गियों के झुण्ड में रखा जाता है।
  • मुर्गियों को दिन के समय खुली जगह के लिए छोड़ दिया जाता है जबकि रात में उन्हें बांस, लकड़ी या मिट्टी से बने आश्रय में रखा जाता है।
  • मुर्गियों को घर पिछवाड़े में खुली जगह में जाने से पहले प्रतिदिन स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना चाहिए।
  • चूजों को हमेशा साफ और ताजा पानी देना चाहिए। दिन में कम से कम 3 बार पानी बदल देना चाहिए। चूजों को फीडर और ड्रिंकर खोजने के लिए 2 मीटर से अधिक नहीं चलना चाहिए। पीने के पानी में इलेक्ट्रोलाइट्स और विटामिन के साथ एक हल्का एंटीबायोटिक भी देनी चाहिए।
  • मुर्गियों को दिन में रसोई के बचे हुए अपशिष्ट, स्थानीय रूप से उपलब्ध अनाज, कीड़े-मकोड़े, कोमल पत्ते और उपलब्ध सभी सामग्री का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में करती है जिससे बैकयार्ड मुर्गीपालन में आहार पर काफी कम खर्च होता है।
  • मुर्गियों को मौसम के आधार पर घर में उपलब्ध अनाज दाना भी दे सकते है।
  • चूजे उत्पादन हेतु 10 मादा पक्षियों के लिए 1 नर पक्षी की अवश्यकता होती है। इसलिए अतिरिक्त नर को 12 से 15 सप्ताह की उम्र में जब उसका न्यूनतम शरीर भार 1200 ग्राम हो जाये तो उसे बेच देना चाहिए।
  • बैकयार्ड मुर्गीपालन के लिए विकसित की गयी किस्मों में बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता/ प्रतिरक्षा क्षमता होती है। हालाँकि, इन पक्षियों को रानीखेत रोग और फाउल पॉक्स जैसी कुछ बीमारियों से सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
  • मुर्गियों को रानीखेत रोग के वचाब के लिये हर 6 महीने के अंतराल पर R₂B स्ट्रेन का टीका लगाया जाना चाहिए। टीकाकरण से एक सप्ताह पहले मुर्गियों को कृमि नाशक दवाई देनी चहिये ।
  • बैकयार्ड मुर्गीपालन में एक ही स्थान पर कई आयु समूहों के मुर्गियों का पालन-पोषण किया जाता है जिससे रोग नियंत्रण लगभग असंभव हो जाता है। इससे वचाव के लिए मेलाथियान(2-5%) या डी. डी.टी.(1-5%) प्रयोग मिटटी में मिलाकर करना चाहिए।
  • बैकयार्ड मुर्गियों अन्तः परजीवी के संक्रमण का भी काफी खतरा बना रहता है इससे बचाव के लिए एल्बेनडाजोल (5 मिली ग्राम / किलोग्राम शारीरिक भार) या पाइपराजीन (50-100 मिलीग्राम /पक्षी) पीने के पानी के साथ देनी चाहिए।
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बैकयार्ड मुर्गी पालन के विभिन्न उद्द्देश्यो की पूर्ति हेतु निम्न प्रजातियों को रख सकते है

क्र. स. नस्ल प्रकार
1. कैरी श्यामा अंडा
2. निशबारी अंडा
3. कृष्णा- जे. अंडा
4. ग्रामप्रिया अंडा
5. हितकारी अंडा
6. प्रतापधन अंडा एवं मांस
7. नर्मदानिधि अंडा एवं मांस
8. कैरी देवेन्द्रा अंडा एवं मांस
9. कैरी गोल्ड अंडा एवं मांस
10. वनराजा अंडा एवं मांस
11. ग्रिराजा अंडा एवं मांस

 

बैकयार्ड कुक्कुट मे टीकाकरण

बैकयार्ड कुक्कुट मे निम्नलिखित बीमारियों का टीकाकरण करवाना चाहिए-

क्र. सं. उम्र (दिन में) बीमारी (टीका) का  नाम डोज़ रूट
1. 1 मरेक्स 0.20 मि. ली. पंख मे
2. 7 रानीखेत (लासोटा) एक बूंद आँख मे
3. 18 रानीखेत (लासोटा) एक बूंद आँख मे
4. 28 रानीखेत(आर.टू.वी.) 0.50 मि.ली. खाल मे
5. 42 फाउल पॉक्स 0.20 मि. ली. मांस में

 

बैकयार्ड मुर्गीपालन का महिला सशक्तिकरण व् खाद्य सुरक्षा में भागीदारी:

  • बैकयार्ड मुर्गीपालन ग्रामीण क्षेत्रो में महिलाओं एवं बच्चो के कुपोषण की समस्या से निजात दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्यूंकि मुर्गियों से मिलने वाले मांस एवं अंडो में पर्याप्त मात्रा में मिनिरल एवं प्रोटीन होते है |
  • यह महिलाओं में व्यवसायिकता के गुणों को विकसित करने में सहायक है |
  • बैकयार्ड मुर्गीपालन महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में सहायक रहती है जिससे उनकी पुरुषो पर आर्थिक निर्भरता भी कम रहती एवं उनके निर्णय लेने की क्षमता को भी प्रबलता मिलती है।
  • अपशिष्ट पदार्थ (कीड़े, सफेद चींटियाँ, गिरे हुए दाने, हरी घास, रसोई का कचरा आदि) को कुशलतापूर्वक उपयोग कर मानव उपभोग के लिए अंडे और चिकन मांस में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • ग्रामीण / आदिवासी लोगों को रोजगार प्रदान करता है और शहरी क्षेत्रों में लोगों के पलायन को रोकने में मदद करता है।
  • देशी नस्ल की मुर्गियों का मांस एवं अंडो भी ज्यादा कीमत में बिकते है।
  • https://www.pashudhanpraharee.com/rural-poultry-rearing-key-tools-for-economic-empowerment-of-women/
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