ठंड में सावधानी हटी, दुर्घटना घटी

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ठंड में सावधानी हटी, दुर्घटना घटी

नमन चंद्राकर, डॉ. कोमलचंद्राकर

१ तृतीय वर्ष छात्र, बी.वी.एससी एवं ए.एच

२ पार्ट टाइम टीचर, पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विस्तार विभाग,

पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय,अंजोरा,दुर्ग-४९१००१,छत्तीसगढ़

 

भारत में ला नीना केअसर की वजह से कड़ाके की ठंड पड़ रही है।ऐसे में कम उम्र एवं शारीरिक रूप से कमजोर पशुओं को ठंड में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। कई लक्षण देखने को मिलते हैं जैसे कि शरीर के रोए खड़े हो जाना,कांपना,भूख की कमी होना,नाक व आंखों से पानी आना।

उपाय के तौर पर पशुओं को सूरज ढलतेही आश्रयस्थल के अंदर बांध दें। यह सुनिश्चित करें कि पशुओं को किसी भी तरीके से ठंडी हवा का सामना ना करना पड़े। आश्रय स्थल के आसपास विंड ब्रेकर पेड़ लगाएं।आश्रय स्थल को जूटया प्लास्टिक के बोरे को परदों की तरह लटका करढकें।सूखी पत्ती को बिछावन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है जिसे समय-समय पर बदलते रहना चाहिए। अगर ठंड ज्यादा हो तोआगका प्रबंधन करें परंतु रोशनदानव खिड़कियों से हवा का आवागमनबना रहे। सर्दी के मौसम में धूंआ ऊपर उठने के बजाय नीचे ही बैठ जाता है जिससे दम घुटने के कारण पशु की मौत भी हो सकती है।

प्रत्येक२°F तापमानकम होने पर चारे की मात्रा एक फ़ीसदी बढ़ा देनी चाहिए। साथ ही अतिरिक्त ऊर्जा के लिए एककिलो अनाज अतिरिक्त खिलाना चाहिए। शरीर का तापमान संतुलित रखने के लिए थोड़ा गुड़ भी दें चूंकि गुड़ गर्म तासीर का होता है इसलिए अत्याधिक सेवन से अपच हो सकता है। दाने में फास्फोरस की मात्रा बढ़ा कर दें। बछड़े एवं बछिया को बाहरचरनेनदें,जब खिली धूप निकली होतोही खुले स्थान पर थोड़ी देर के लिएछोड़ें।

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ठंड के मौसम में पशुओं में सर्दी जुकाम निमोनिया जैसी कई समस्याएं देखने को मिलती हैं। नाक से पानी जैसे पदार्थ का निकलना,सांस लेने में कठिनाई पशुके खाने में कमी और शरीर में सुस्ती दिखाई पड़ती है। गंधक अथवा अजवाइन काधुआं सुंघानेसे बहता हुआ जुकाम कम होता है। पशु चिकित्सक की सलाह पर एंटीबायोटिक तथा अन्य उपचार परामर्श करें। पशुओं के खानपान में अचानक परिवर्तन ना करें।ठंड के मौसम में हरे चारे एव बरसीम की बहुतायत होती है जिसके कारण पशुपालक अपने पशुओं को जरूरत सेज्यादामात्रा खिला देते हैं जिसके चलते पशुओं के पेट में सामान्य से अधिक गैस का निर्माण होता है।पेट फूलने लगता है मुंह से लगातार लार गिरती है,सांस लेने में कठिनाई होती है,अत्यधिक गैस के कारण रूमेन डायाफ्राम पर दबाव डालेगा, परिणाम स्वरूप फेफड़ों एवं हृदय पर दबाव पड़ने के कारण पशु की मृत्यु भी हो सकती है।

ऐसे में पशु को इस तरह से खड़ा करें कि पीछे वाला भाग नीचे औरसामने वाला भाग ऊपर की ओर हो ताकिफेफड़ों एवं हृदयपर वजन कम पड़े। मुंह मेंलकड़ीबांध दें ताकि पैदा हुई लार पेट में जा सके। लार में एंटी फ्रोथिंग प्रॉपर्टी होती है जिससे गैस निकलने में आसानी होती है।पशु चिकित्सक से सलाह लेते रहें एवं पशुपालन विभाग द्वारा चलाए जाने वाले टीकाकरण अभियान में पशु का टीका अवश्य लगवाएं।

डेयरी शेड के निर्माण के दौरान की गई छोटी-छोटी अनदेखी भविष्य मेंबड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। पशुओं को बांधने केस्थानपर उबड़ खाबड़ सतह नहीं होनी चाहिए। ठंड में वाष्पीकरण कम होने के कारण ऐसी सतहहोने पर पशुओं का मल मूत्र जमा होने लगता है,जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सतह का निर्माण इस तरीके से हल्का ढाल देकर करें कि मल मूत्र आसानी से नाली में चला जाए। नियमित रूप से सफाई करें।

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बारिश के मौसम के उपरांत पशुओं के चरागाह पर मौजूद गड्ढों मैं पानी जमा हो जाता है और वह जगह कई प्रकार के परजीवियों जैसे कि फेसियोला,एंफिस्टोम,सिस्टोसोमेटिडी का घर बन जाता है। कम तापमान और कमवाष्पीकरणहोने के कारण ठंड के मौसम में ऐसे परजीवी लंबे समय तक उस स्थान पर बने रहते हैं तथाघोंघे(लिमनिया)के माध्यम से अन्य पशुओं को संक्रमित करते हैं। अतः पशुओं को ऐसे स्थान परचरने ना भेजें।

ठंड के मौसम में चूजोंका ज्यादा ध्यान रखना होता है। ब्रुडर हाउस की तैयारी चूजों के आने के पूर्व करलें। चूजों के आने से २४घंटा पहले ही बल्बजला कर रख दें। कमरे को हवा रोधीबनालें, यह जरूर सुनिश्चित करे कि पर्दे को टाइट करने की व्यवस्था हो। ठंड के दौरान हुए परिवहन के बाद चूजों को ८ फ़ीसदी मोलासेस एवं ओ. आर. एसका घोल देवें। पहले हफ्ते मेंब्रूडर हाउस का तापमान ९५°F आवश्यक है। प्रत्येक हफ्ते५°Fके हिसाब से गिराते हुए तापमान को ७०°F पर ले जाएं। फीडर ड्रिंकर की नियमित रूप१-२दिनमेंसफाई करें नहीं तो गंदे फीडर ड्रिंकर में कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म जीव आ जाएंगे।CO2,NH3 जैसी हानिकारक गैसों की निकासी के लिए एक्जॉस्ट पंखे की व्यवस्था करें नहीं तोक्रोनिक रेस्पिरेटरी डिसऑर्डर की दिक्कत आ सकती है। मुर्गी पालन में सबसे ज्यादा खर्च फीड पर आता है।फीडखुद बनाकर किसान प्रति पक्षी ६ रुपएतक बचा सकते हैं। डीवर्मिंग, डीबीकिंग और टीकाकरण नियमित समय पर कराएं।

मुर्गी पालन में चूजोंके आने के एक-दो दिन बाद प्रीस्टार्टर राशन दें। हल्के एंटीबायोटिक को पानी में घोलकर दें। ५-७वें वें दिन रानीखेत का टीका दें।१४वें दिन गंबोरो या ईन॒फेक॒शियस बर्सल डिसीज का टीका दें।चौथा हफ्ते में रानीखेत लसौटा स्ट्रेन देवें। साथ ही चूजों के रहने की जगह को बढ़ाते जाएं।२६दिन बाद फाउल पॉक्स का टीका लगाएं। चूजों का वजन आधा किलो होने पर रानीखेत का दूसरा टीका अवश्य लगवाएं।

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बिछावन की मोटाई २इंचहोना चाहिए और समय समय पर उसे पलटना चाहिए। नमी युक्त बिछावन में बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।चुजे के लिए ४५सेंटीमीटर स्क्वेयरजगह चाहिए होती है। अक्सर किराए की जगह पर चलने वाले पोल्ट्री हाउस में क्षमता से ज्यादा चूजोंको रख दिया जाता है, जिसके कारण स्ट्रेसके चलतेमृत्यु दर में बढ़ोतरी, वजन बढ़ने के दर में गिरावटदेखी जाती है। इसलिए ओवरक्राउडिंग करने से बचें। समय समय पर पीने के पानी की जांच करवाते रहना। गंदेपानी में कई प्रकार के सूक्ष्म जीव जैसे की ई कोली पाए जाते हैं।

 

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