भैंस के नवजात बच्चों का आहार प्रबन्धन

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VETERINARIAN
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भैंस के नवजात बच्चों का आहार प्रबन्धन
डॉ. मौसमी यादव एवं डॉ. मनोज यादव, पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ
पशुधन विकास विभाग, छत्तीसगढ़

प्रिय किसान भाईयों पड्डे पड्डियों के लिए आहार का विशेष महत्व है जैसा कि सभी अन्य जीवों के लिये। पशु आहार में पोषक तत्वों की संतुलित मात्रा देने से पशु की शारीरिक वृद्धि भी अच्छी होती है तथा शरीर में रोगों से लड़ने के क्षमता भी उत्पन्न होती है। पडडे-पडिडयों को खिलाये गये आहार का प्रभाव भविष्य में उनकी उत्पादकता तथा पुनरोत्पादन पर भी पड़ता है। पोषक आहार खिलाने से पडिडयां सही उम्र में ग्याभिन होकर किसान को उत्पादन देने लगती है। अतः यह आवश्यक है कि पड्डे पड्डियों को उचित मा़त्रा में एवं गुणवत्ता युक्त आहार दिया जाये। हम आपको पड्डे-पड्यिों के आहार प्रबन्धन पर जानकारी दे रहे है ताकि आप इन्हें अपना सके। आहार अथवा प्राशन के विषय में बात करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को जानना आवश्यक है जो कि इस प्रकार है – प्रत्येक बछड़ें का प्राशन उसके शारीरिक भार, विकास एवं स्वास्थ्य को देखते हुये निर्धारित करें। पेट संबंधी विकारों जैसे अपच अथवा दस्त आदि से बचाव हेतु प्राशन को दो या अधिक भागों में बाटकर कुछ घन्टों के अन्तराल से खिलायें। चारा खिलाने अथवा दूध पिलाने हेतु उपयोग में आने वाले बर्तनों को अच्छी तरह साफ करके इस्तेमाल करें । पड्डों को पिलाने के लिए बाहर से लाये गये दूध को पहले उबाले फिर ठंडा करके पिलायें। पहले हफ्तें की आयु में प्राशन दिन में तीन से चार बार तक दें। उसके बाद दो हफ्तें से लेकर तीन महीने तक दिन में दो बार प्राशन दें। कई बार ऐसा होता है कि पड्डे किसी कारणवश प्राशन नही खा पाते है एवं खाली पेट रह जाते है। ऐसी स्थिति में अगली बार प्राशन देते समय प्राशन की मात्रा कम रखे तथा प्राशन में 30 से 40 मिली लीटर अरण्डी का तेल मिलाए ताकि उसे पेट के विकारों से बचाया जा सके। पड्डों का आवास सूखा होना चाहिये क्योंकि आवास स्थान का फर्श गीला रहने से लार्वा पनपते हैं तथा पडडो में निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। भारत में अधिकतर पड्डों का जन्म वर्षा ऋतु में होता है, और इस समय वातावरण में आर्दता अधिक होती है, अतः बछड़ों का निवास स्थान सूखा तथा उसमें प्रकाश एवं वायु का आवागमन समुचित होना चाहिये। किसान भाईयों ये थी कुछ महत्वपूर्ण बाते जिनका ध्यान रखना आवश्यक है । आईये अब आपको आहार संबंधी जानकारी देते है। नवजात पशु के लिए मा का दूध सर्वोत्तम आहार है। यह जीवन के प्रारंभिक काल में विभिन्न बिमारियों से प्रतिरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ लगभग सभी पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। अधिक उत्पादन देने वाले पशु प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि जीवन के प्रारम्भिक काल से ही पशु को पोष्टिक व सन्तुलित आहार खिलाया जाये। अधिकांशतः किसान भैंस के बच्चो को मा के थन द्वारा ही दूध पिलाते है। परन्तु इस विधि से बच्चों द्वारा दूध के उपभोग की सही मात्रा का अनुमान नही लग पाता। फुर्तिले एवं स्वस्थ पडडे अधिक दूध पी लेते हैं परन्तु सुस्त और दुर्बल पडडे भूखे रह जाते हैं। इन परेशानियों से बचने के लिये बछड़ों को मा का दूध किसी बर्तन में निकालकर पिलाना चाहिए। जन्म के तुरन्त बाद से लेकर पाॅचवे दिन तक पड्डे व पड्डियों को उनके शारीरिक भार का 10 प्रतिशत खीस अवश्य पिलायें। तत्पश्चात 1 महीने तक शारीरिक भार के 10 वें भाग के बराबर दूध पिलाते रहना चाहिए। उसके बाद 1-3 महीने की आयु में दूध की मात्रा घटाकर शारीरिक भार का 15 वां भाग कर देना चाहिए। परन्तु ध्यान रहे दूध की अधिकतम मात्रा 3 कि.ग्रा. प्रतिदिन से अधिक नहीं होनी चाहिए। तीसरे माह की आयु से दूध की मात्रा धीरे-धीरे घटाकर चौथे महीने तक दूध पिलाना बिलकुल बन्द कर देना चाहिए। दूध के अलावा तीसरे सप्ताह की आयु से भैंस के बच्चों को प्रारंभिक आहार, हरा चारा या हेय दिया जाना चाहिए। प्रारम्भिक आहार को आप घर पर भी बना सकते है। प्रारंभिक आहार बनाने के लिये मक्का का दलिया 40 कि.ग्रा., गेहूं का चोकर 10 कि.ग्रा., अलसी की खली 30 कि.ग्रा., मछली का चूरा 8 कि.ग्रा. , शीरा 10 किग्रा., खनिज मिश्रण 2 किग्रा., नमक 1 किग्रा. तथा 0.3 प्रतिशत जीवाणुशोधक अर्थात एंटीबायोटिक लेकर सभी को एक साथ मिला लें। इस प्रकार यह 100 किग्रा. प्रारंभिक आहार तैयार हो जायेगा। पडडे-पडिडयों के लिये प्राशन का प्रारम्भ सामान्यतः तीन सप्ताह की आयु से 100 ग्राम प्रारंभिक आहार और 500 ग्राम हरे चारे से किया जाता है, । चैथे सप्ताह से इनकी मात्रा डेढ़ से दो गुना कर दी जाती है। इसके बाद प्रारंभिक आहार की मात्रा प्रति सप्ताह आवश्यकतानुसार बढ़ाकर तीन माह की आयु पर स्थिर कर दी जाती है। इस समय शारीरिक भार के अनुसार भैंस के बच्चे 1 से डेढ. कि.ग्रा. तक प्रारंभिक आहार एवं 2-3 किलो ग्रा. हरा चारा अथवा हे खाने लगते हैं। तीसरे माह की आयु से हरा चारा 2 किग्रा. प्रतिदिन से 6 महीने की आयु तक 5 से 10 किग्रा. प्रतिदिन देना चाहिये। साथ ही हे की मात्रा कम कर देनी चाहिये। हरा चारा जैसे बरसीम व रिजका को खिलाने के पहले सूर्य के प्रकाश में 3 से 4 घंटे के लिए सुखा देना चाहिए ताकि अफरा की संभावना न रहे। भैस के बच्चों के शारीरिक भार में प्रतिदिन आधा किग्रा. की वृद्धि हेतु 6 महीने से एक वर्ष की आयु तक 2 किग्रा. दाना अर्थात सान्द्र मिश्रण एवं 15-20 किग्रा. हरा चारा प्रत्येक पशु को दें। किसान भाईयों आप इस बात का ध्यान रखे कि छोटे बच्चों के आहार में भूसे का कम से कम उपयोग करे क्योंकि छोटे पडडें पडिडयों के लिये चारा सुपाच्य एवं मुलायम होना चाहिये । किसान भाईयों हम आशा करते है कि यह जानकारी आपके लिये लाभदायक सिद्ध होगी। आप इन बातों को अपनायेंगें और पशुपालन से अधिक से अधिक लाभ लेगें।

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धन्यवाद

नवजात एवं छोटे बछड़ो की देखभाल एवं प्रबन्धन

 

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