बकरियों का आहार प्रबंधन कैसे करें ?

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बकरियों का आहार प्रबंधन कैसे करें-1
बकरियों का आहार प्रबंधन कैसे करें-1

बकरियों का आहार प्रबंधन कैसे करें ?

बकरी पालन भारत के लोकप्रिय व्यवसायों में से एक है। बकरियों को सामाजिक प्राणी के रुप में जाना जाता है। यह बेरोजगार किसानों के लिए एक अच्छा रोजगार है। बकरी पालन पूरे साल निरंतर चलते रहने वाला उच्च लाभ प्रदाय करने वाला व्यवसाय है, बकरियों से हमें मांस, दूध एंव खाद प्राप्त होता है। बकरियों को संपूर्ण स्वास्थ्य हेतु विभिन्न अवयवों की आवष्यकता होती है जो उसे भोजन से प्राप्त होते है। वृद्वि, दुग्ध व मांस उत्पादन, जनन तथा अन्य दैहिक क्रियाओ के लिए उचित पोषक तत्वो की आवष्यकता होती है। संतुलित भेाजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन जैसे प्रमुख अवयव आवष्यक मात्रा में होते है, यदि भोजन में किसी अवयव की कमी हो जाती है तो बकरियों के उत्पादन, प्रजनन क्षमता एंव रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इन अवयवो की आवष्यकता गर्भित काल एंव दुग्ध उत्पादन के समय ज्यादा बढ़ जाती है। अगर ऐसी अवस्था में बकरी पालक आवश्यकता के अनुसार संतुलित आहार नहीं देते है तो स्वास्थ पर प्रतिकुल प्रभाव दिखाई देने लगता है, कभी- कभी तो बकरियों में मृत्यु तक हो जाती है।

बकरी जुगाली करने वाली पशु है जो घास व कृषि अवशेष जो कि मनुष्यो द्वारा उपयोग नही होता है उसे दूध और मांस के रुप में तब्दील करते है। बकरियां खाने में विविधता पसंद करती हैं। बकरी सामने के पैर पर खड़े होकर आहार ग्रहण करती है, जिसे ब्राउसिंग कहते है। बकरियों को हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत होती है। बकरी को प्रतिदिन उसके भार का 3.5% शुष्क आहार खिलाना चाहिए। एक वयस्क बकरी को 1.3 कि. ग्रा. हरा चारा, 500 ग्रााम से 1 कि.ग्रा. भूसा तथा 150 ग्रा. से 400 ग्रा. तक दाना प्रतिदिन खिलाना चाहिए। सामान्यताः बकरियां एक दिन में साढ़े तीन से चार किलो तक हरा चारा खाती है। बकरियों को हरा चारा खिलाने से दाने की बचत की जा सकती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि बकरी द्वारा चरे जाने पर पौधों की वृद्वि रुक जाती है, यह धारणा गलत है, क्योंकि बकरी किसी पौधे को पूरी तरह से नहीं चरती बल्कि केवल कुछ पत्तियों को ही चुनकर खाती है। इससे पौधे की शाखाओं की सामान्य से अधिक वृद्वि होती हंै। बकरियों के चरने एंव खान-पान का व्यवहार अन्य पशुओं की तुलना में अति विषिष्ट होता है। मुख की विषिष्टता बनावट उसे कांटेदार पत्तियां चरने में मदद करती है। बकरियां खाने में बड़ी नखरेवाली होती है। जो चारा एक बकरी को पसंद है वह दूसरी को नापसंद हो सकता है। पैरो द्वारा रौंदा गया मिट्टी लगा चारा खाने के बजाए वे भूखी रहना पसंद करती है। अन्य पशुओं के विपरीत बकरियां कम नमी युक्त चारे पर आश्रित रहना पसंद करती है। बकरियों का खानपान धीरे-धीरे बदलना चाहिए। अधिक दूध व मांस उत्पादन हेतु, गाभिन बकरी तथा प्रजनन के काम आने वाले बकरों आदि को उनके वनज व उत्पादन के आधार पर संतुलित दाना-चारा तथा पोषक तत्व के साथ उचित मात्रा में खनिज लवण नियमित रुप से देना चाहिए।
बकरी आहार प्रबंधन की पद्धतियाँ

क) टीथरिेग चराई- पषु को चराई क्षेत्र में निश्चित दूरी तक रस्से से बाँधकर रखना।
ख) गहन चराई- extensive
ग) चराई विहीन पूर्णतः घर पर बांधकर खिलाना- intensive
घ) अर्घ गहन- semi intensive

क) टीथरिेग चराई– यह छोटे पषुपालकों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रणाली है, जो 5-6 बकरियाँ पालते हैं और उन्हें चराई क्षेत्र में खूंटे या झाड़ी से 1-5 मीटर रस्से से बाँधकर रखते है। बकरी उस सीमित क्षेत्र में चराई करती हैं।
ख) गहन चराई– इस प्रणाली को ब्राउसिंग भी कहते है। यह प्रणाली देष में सामान्यताः उपयोग की जाती है, जिसमें दिन के समय बकरियाँ प्राकृतिक वनस्पति या झाडि़यो को चरती हैं या फसल के अवषेष को खाती है। चराई के लिए बकरियों को चरवाहे के माध्यम से गांव के पास उपयुक्त स्थान पर ले जाष जाता है परन्तु रात्रिकाल में बकरियों के झुंड को रात्रि कालीन आवास में रखा जाता हैै एंव आवास में आहार का कोई प्रबंधन नहीं होता है।
ग) चराई विहीन पूर्णतः घर पर बांधकर खिलाना– बकरियाँ स्थायी रुप से एक ही स्थान पर रखी जाती है और चारा-दाना वही पर दिया जाता है। यह एक अत्यंत गहन पद्वति है। प्रक्षेत्र में ही चारा उगाया जाता है अथवा सार्वजनिक क्षेत्रो से इकट्ठा किया जाता है। यह प्रणाली उनके लिये उपयोगी होती है जो व्यापक पैमाने पर बकरी पालन कर रहें हो या अनुसंधान हेतु कुछ कार्य कर रहे हों।
घ) अर्घ गहन– इस पद्वति में उपरोक्त दोनों प्रणालियो का फायदा रहता है। इसमें चराई एंव बांधकर बकरियों को पालना दोनो की समुचित व्यवस्था पषुपालक अपने आवष्यकता एंव संसाधनों के आधार पर करता है। इसमें 40-60 प्रतिषत पोषण चराई से एंव शेष बकरी आवास में पषुआहार के माध्यम से दिया जाता है।
बकरी पोषण में जल का उपयोग- प्रत्येक बकरी की पानी की आवष्यकता उसकी प्रजाति, वातावरण/मौसम, आहार की प्रकृति एंव शारीरिक आवष्यकताओं पर निर्भर करता है। बकरियों को खाये गये चारे के शुष्क पदार्थ की मात्रा का चार गुना पानी की आवश्यकता होती है, पंरतु दुधारु बकरियों को प्रत्येक लीटर दूध के लिये 1.3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

बकरी पोषण में लवण का उपयोग-

मृदा में खनिज लवणों की कमी क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती है जो उस क्षेत्र के पशुओं में कमी या रोग के रुप में परीलक्षित होती है। दाने और चारे दोनों में ही विभिन्न प्रकार के खनिज लवण पाये जाते हैं, परन्तु इनकी मात्रा पषु शरीर की आवष्यकता के अनुरुप नहीं होती, इसलिए इन्हें अलग से देना अति आवष्यक है। अतः यह आवष्यक है कि किसान अपनी कीमती बकरियों को वैज्ञानिको के परामर्श एंव क्षेत्र के अनुसार विकसित किये गये खनिज लवणों का मिश्रण चारे व दाने के साथ प्रदान करें जिससे खनिज अवयवो की पूर्ति हो सके। इनका उपयोग 10-20 ग्राम रोजाना बकरियों को दाने के साथ खिलाते रहना चाहिये, जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

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बकरी पोषण से संबंधित सावधानियाँ –
एक ही चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक चरने नहीं देना चाहिए, ऐसा करने से उन्हें कृमि रोग हो सकता है।
बकरियाँ ठंड और बरसात सहन नहीं कर पाती, अतः अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिये भेजना चाहिए। बरसात में गीली जगह, दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए।
बीमार बकरी को चरने नहीं भेजना चाहिए।
गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह व बच्चा जनने के दो सप्ताह तक चरने नहीं भेजना चाहिए।
नियंत्रित प्रजनन के लिये बकरी व बकरे को साथ में चरने नहीं भेजना चाहिए या उन्नत नस्ल के बकरों को साथ में भेजना चाहिए।
बकरियों को चराने के लिये छोड़ना बहुत जरुरी है। उनको हर दिन 6 से 7 घंटा चरायें।
प्रतिदिन बकरी कोठे की सफाई अवष्य करें।
बकरियाँ एंव बड़े जानवर साथ- साथ न चरायें।
बकरियों को छोड़ने से पहले दाने की आधी मात्रा खिलायें और वापस आने के बाद आधी मात्रा दें।
जिन बकरों का वजन कम हो या जिनकी बाढ़ बराबर न हो। ऐसे बकरों को पशु चिकित्सक की सहायता से खस्सी करवायें।
बरसात के दिनों में बकरियों को सूखा चारा जैसे चना कुटार, तुवर का कुटार, 400 से 500 ग्राम प्रति बकरी के हिसाब से खाने के लिये दें।

बकरियों को विभिन्न अवयवों की आवश्यकता होती है जो उसे भोजन से प्राप्त होते है। वृद्धि, दुग्ध व मांस उत्पादन, जनन तथा अन्य सभी दैहिक क्रियाओं के लिए उचित पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। संतुलित भोजन में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा खनिज लवण तथा विटामिन जैसे प्रमुख अवयव आवश्यक मात्रा में होते हैं, यदि भोजन में किसी अवयव की कमी हो जाती है तो बकरियों के उत्पादन, प्रजनन क्षमता एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए इनकी कमी से होने वाले प्रमुख रोगों एवं उनके बचाव के विषय में पूरी जानकारी होना आवश्यक है। भोजन की कमी से सम्बन्धित रोग मुख्य रूप से ज्यादा दूध एवं मांस देने वाली पशुओं में होते हैं। इन अवयवों की आवश्यकता गर्भित काल एवं दुग्ध उत्पादन के समय ज्यादा बढ़ जाती है। अगर ऐसी अवस्था में बकरी पालक आवश्यकता के अनुसार संतुलित आहार नहीं देते है तो स्वास्थ पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देने लगते हैं एवं कभी-कभी तो बकरियों में मृत्यु तक हो जाती है।

बकरियों के पेट के चार भाग होते है जिनके नाम है रूमेन, रेटीकुलम, ओमेसम एवं एवामेसम। बकरी जुगाली करने वाली पशु है जो घास व कृषि अवशेष जो कि मनुष्य उपभोग नहीं करता उसे दूध व मांस के रूप में तब्दील करते है। बकरी सामने के पैर को खडे होकर आहार ग्रहण करने की आदत होती है, जिसे ब्राउसिंग कहते है। बकरियों को हर समय कुछ न कुछ खाते रहने की आदत होती है।

सामान्यतः बकरियाँ एक दिन में साढ़े तीन से लेकर चार किलो तक हरा चारा खाती है। बकरियों को हरा चारा खिलाने से दाने की बचत की जा सकती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि बकरी द्वारा चरे जाने पर पौधों की बाढ़ रूक जाती है, यह धारणा गलत है, क्योंकि बकरी किसी पौधे को पूरी तरह से नहीं चरती बल्कि केवल कुछ पत्तियों ही चुनकर खाती है। इसमें पौधे की भाकाओं की सामान्य से अधिक वृद्धि होती है। कुछ क्षेत्रों में तो चने के खेतों से बकरियों को चरने के लिए बकायदा आमंत्रित किया जाता है, ताकि अधिक से अधिक भाकाओं का फैलाव हो तथा चना उत्पादन में वृद्धि की जा सकें।

बकरियों के चरने एवं खान-पान का व्यवहार अन्य पशुओं की तुलना में अति विशिष्ट होती है। मुख की विशिष्टता बनावट उसे कांटेदार पत्तियां चरने में मदद करती है। बकरियाँ खाने में बड़ी नखरेवाली होती है। जो चारा एक बकरी को पसंद है वह दूसरी को नापसंद हो सकता है। पैरों द्वारा रौंदा गया मिट्टी लगा चारा खाने के बजाए वे भूखी रहना पसंद करती है। अन्य पशुओं के विपरित बकरियाँ कम नमी युक्त चारे पर आश्रित रहना पसंद करती है। बकरियों का खान-पान धीरे-धीरे बदलना चाहिए। अधिक दुध व मांस उत्पादन हेतु दुधारू, गाभिन बच्चे तथा प्रजनन के काम आने वालेबकरों आदि को उनके वनज व उत्पादन के अनुसार संतुलित दाना-चारा तथा अन्य पोशक तत्व के साथ उचित मात्रा में खनिज लवण नियमित रूप से देना चाहिए।

चराने एवं पोषण प्रबंधन चार पद्धति

टीथरिंग प्रणालीः

यह छोटे पशुपालकों द्वारा अपनायी जाने वाली प्रणाली है, जो 5-6 बकरियाँ पालते हैं और उन्हें चराई क्षेत्र में खुटे या झाड़ी से 1-5 मीटर रस्से से बॉध कर रखते हैं। बकरी उस सीमित क्षेत्र में चराई करते है।

लाभ:-

  • पशुओं के आवारा घूमने की प्रकृति कम होती है और पड़ोसियों की फसल भी सुरक्षित रहती है।
  • बकरियों को चारागाह में या खेतों में भी कटाई के बाद कहीं भी बांधा जा सकता है।

हानिः

  • चराई सीमित होने के कारण बकरियाँ कुपोषण का शिकार हो जाती है।
  • बकरियों को बहुत कम पानी पिलाया जाता है।
  • बंधी हुयी बकरियाँ आसानी से शिकार हो सकती हैं या फिर पागल कुत्ते काट सकते हैं, क्योंकि उन्हें भागने/दौड़ने में/ बंधे होने के कारण रूकावट होता है। (यद्यपि अक्सर ऐसा नहीं होता है।)

गहन चराई/ब्राउजिंग प्रणालीः

यह प्रणाली देश में सामान्य प्राथमिकता के तौर पर देखी जा सकती है। दिन के समय बकरियाँ प्राकृतिक वनस्पति या फिर झाड़ियों को चरते हैं या फिर फसल के अवशेष को खाते है। चराई के लिये बकरीयों को चारवाहे के माध्यम से गांव के पास उपयुक्त स्थान पर ले जाया जाता है। परन्तु रात्रिकाल में बकरियों के झुंड को रात्री कालीन आवास में रखा जाता है। आवास में आहार का कोई प्रबंधन नहीं होता। है। कुछ प्रदेशों में चरवाहे 3-6 माह तक झुन्ड के साथ अपने ग्राम से बहुत दूर चले जाते है एवं फिर लौटते है।

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लाभ :-

  • बकरियाँ प्राकृतिक वनस्पति पर निर्भर रहते हैं, जिसके कारण उनके पास विविध उपलब्ध होते है।
  • बकरियाँ अपने चारागाह का चुनाव स्वयं करते है।
  • बकरियों के झुंड में होने के कारण वे उन्हें चोरी और शिकारी जानवरों से बचाना आसान होता है।

हानि :-

  • नियंत्रित प्रजनन में कठिनाई आ सकती है।
  • सामाजिक परिवेश के कारण बकरियों में अंतः परजीवी एवं बाह्य परजीवी के संकट का खतरा अधिक होता है।
  • यदि झुंड में नही हो एवं रखवाला नही हो तो चोरी होने की आशंका रहती है।
  • बीमार पशु को पहचानना और इलाज करना कठिन होता है।

शून्य चराई प्रणालीः

बकरियाँ स्थायी रूप से एक ही स्थान पर रखी जाती है और चारा-दाना वहीं पर दिया जाता है। यह एक अत्यंत ही गहन पद्धति है। प्रक्षेत्र में ही चारा उगाया जाता है अथवा सार्वजनिक क्षेत्रों से इकट्ठा किया जाता है। यह प्रणाली उनके लिये उपयोगी होता है जो व्यापक पैमाने पर बकरी पालन कर रहें हों या अनुसंधान हेतु कुछ कार्य कर रहे हों।

लाभ :-

  • बकरियाँ विषम परिस्थियों/वातावरण से, शिकारी से और चोरी से सुरक्षित रहती हैं।
  • कम मात्रा में कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है, क्योंकि बकरियाँ सीमित दायरे/स्थान पर पर रहते है तथा तकनीकी एवं आधुनिक उपकराणों का उपयोग किया जाता है।
  • नियंत्रित प्रजनन संभव है जिससे इन प्रक्षेत्रों में लाभ अपेक्षाकृत अधिक होने की संभावना रहती है।

हानि :-

  • छोटे झुड (10 से कम बकरियों) के लिये उचित नहीं है।
  • प्रक्षेत्र प्रारंभ करने हेतु उत्याधिक लागत लगती है।
  • बकरियों को केवल दिये गये आहार पर ही निर्भर रहना होता है और वे अपने इच्छानुसार मनचाहा आहार प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

अर्धगहन प्रणाली :

इस पद्धती में उपरोक्त दोनों प्रणालीयों का फायदा रहता है। इसमें चराई एवं बांधकर बकरीयों को पालना दोनों की समुचित व्यवस्था पशुपालक अपने आवश्यकता एवं संसाधनों के हिसाब से करता है। इसमें 40-60 प्रतिशत पोषण चराई से एवं शेष, बकरी आवास में, पशुआहार के माध्यम से दिया जाता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में यह प्रणाली अत्यन्त उपयोगी एवं अपनाने योग्य है।

  • कृषि कार्य तथा पशुपालन दोनों अपनाये है ऐसे किसानों के द्वारा यह पद्धति अपनायी जाती है।
  • यह मिश्रित कृषि प्रणाली है, जिसमें पशुपालन को विशेष महत्व दिया गया है। (40% फसल + 60% पशुपालन)
  • चराने के लिये सार्वजनिक भूमि पर निर्भर रहते है। साथ-साथ फसल के काटने के बाद अवशेष भी चराये जाते है।
  • गर्मी के मौसम में झुंड को पानी और चारे के लिये अन्यत्र चारागाह ले जाया जाता है, शेष दुधारू जानवरों को छोड़कर।
  • उत्पादन क्षमता इस प्रणाली में अधिक हाती है, क्योंकि इन्हें मिश्रित भोजन मिलता है।

पशु पोषण में जल का उपयोग

प्रत्येक बकरी की पानी की आवश्यकता उसकी प्रजाति, वातावरण/ मौसम, आहार की प्रकृति एवं शारीरिक आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। (उदाहरण : दूधारू पशु में अन्य के तुलना में अधिक जल की अवश्यकता होती है) बकरियों को खाये गये चारे के शुष्क पदार्थ की मात्रा का चार गुना पानी की आवश्यकता होती है, परन्तु दुधारू बकरियों को प्रत्येक लीटर दूध के लिये 1.3 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। पूरे समय साफ पानी उपलब्ध कराना चाहिये।

  • जल/चारे के लिये आदर्श बर्तन ऐसे मटेरियल का हो जो आसानी से साफ किया जा सके और जो किसान के संसाधन संपन्नता के अनुरूप/सुविधा के हिसाब से हो।
  • इसकी गहराई कम होनी चाहिये, तकरीबन 30 से.मी. ताकि मेमने भी पी सकें।
  • इसकी गहराई इतनी कम भी न हो कि मेमने/ बकरियाँ इस पर खड़े हो सकें और पानी जल को प्रदूषित करें।
  • प्रत्येक बर्तन पात्र के मध्य 45 से.मी. का रिक्त स्थान रखना चाहिये।

बकरी पोषण में लवण का उपयोग

यह बात समझने योग्य है कि किसी भू–भाग मे खनिज लवणों की कमी, क्षेत्र के उगाये जाने वाले चारे में परिलक्षित होती है जो पुनः क्षेत्र के पशुओं मे रोग के रूप प्रदर्शित होती है। मृदा मे खनिज लवणों की कमी क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होती है अतः यह आवश्यक है कि किसान अपने कीमती बकरियों को वैज्ञानिकों के परामर्श के अनुसार, क्षेत्र के अनुसार विकसित किये गये खनिज लवणों का मिश्रण चारे व दाने के साथ प्रदान करें जिससे खनिज की पूर्ति हो सके । अतः राज्य क्षेत्र के अनुसार विकसित खनिज लवण मिश्रण आई.एस.आई-2 बाजार में उपलब्ध है। इनका प्रयोग 10-20 ग्राम रोजाना बकरियों को दाने के साथ मिलाते रहना चाहिये, जिससे उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

बकरी पोषण से संबंधित कुछ सावधानियाँ

  1. एक ही चारागाह में बकरियों को ज्यादा समय तक चरने नहीं देना चाहिए, ऐसा करने से उन्हें कृमि रोग हो सकता है।
  2. बकरियाँ ठंड और बरसात सहन नहीं कर पाती, अतः अधिक ठंड में धूप के समय चरने के लिए भेजना चाहिए। बरसात में गीली जगह, दलदल में चराई नहीं कराना चाहिए।
  3. बीमार बकरी को चरने नहीं भेजना चाहिए।
  4. गर्भावस्था के अंतिम दो सप्ताह व बच्चा जनने के दो सप्ताह तक चरने नहीं भेजना चाहिए।
  5. नियंत्रित प्रजनन के लिए बकरी व बकरे को साथ में चरने नहीं भेजना चाहिए या उन्नत नस्ल के बकरों को साथ भेजना चाहिए।
  6. बकरियों को चराने के लिये छोड़ना बहुत जरूरी है। उनको हर दिन 6 से 7 घंटा चरायें।
  7. हर रोज बकरी जाने के बाद कोठे की सफाई करें।
  8. जहां बकरियाँ को चरने के लिये छोड़े उस जगह को पहले से देखकर निश्चित करले कि वहां बकरी के चरने के लिये पर्याप्त चारा हो।
  9. बकरियाँ और बड़े जानवर साथ-साथ न चरायें।
  10. बकरियों को छोड़ने से पहले दाने की आधी मात्रा खिलायें और बकरियाँ वापस आने के बाद आधी मात्रा दें।
  11. जिन बकरों का वजन कम हो, और जिनकी बाढ बराबर न हो। ऐसे बकरों का अपने पशु चिकित्सक के सहायता से खस्सी करवायें।
  12. बरसात के दिनों में बकरियों को सूखा चारा जैसे चना कुटार, तुवर का कुटार, 400 से 500 ग्राम प्रति बकरी के हिसाब से खाने के लिये दें।
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बकरी पोषण संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

तालिका 1: बकरियों द्वारा पसंद किये जाने वाले दलहनी व अदलहनी चारे।

क्र. चारे का किस्म दलहनी चारे अदलहनी चारे
1. सूखे चारे भूसा, चना, मटर, अरहर, मूंग, उड़त, ग्वार, सेम, मटर व सनई भूसाः गेहू, जौ व जई कड़बीः ज्वार, बाजरा व मक्का है : सूखी घास

 

2. हरे चारे बरसीम, लुसर्न, मटर, लोबिया, ग्वार, स्टाइलो व अन्य नैपियर, चारागाह दलहन ज्वार, मक्का, बाजरा, मक्काचरी, पैरा, घास, जई व मानसूनी घासें

तालिका 2: एक वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए दाना मिश्रण का संगठन।

क्र. खाद्य पदार्थ भाग
1. मक्का का दाना 47
2. मुंगफली की खली 30
3. गेंहू का चोकर 20
4. खनिज मिश्रण 1.5
5. साधारण नमक 1.5
योग – 100

तलिका 3: वयस्क बकरियों के लिए दाना मिश्रण का संगठन

क्र. खाद्य पदार्थ भाग
1. जौ या मुक्का या ज्वार या बाजरा 32
2. खली (मूंगफली/अलसी/तिल/सूरजमुखी) 30
3. गेंहू या चावल की चोकर 20
4. दाल चुनी 15
5. खनिज मिश्रण 1.5
6. साधारण नमक 1.5
योग 100
संगठन 2 :
1. सूखी नीम की पत्तियां 30
2. दाना मिश्रण 70
योग 100

तलिका 4: बकरी के बच्चों के लिए उपयोगी दानों का भौतिक संगठन तथा उनकी पोशक गुणवत्ता

क्र. खाद्य पदार्थ अनुपातिक मात्रा
फार्मूला-1 फार्मूला–2 फार्मूला-3
1. मक्का का दाना 40 12
2. जौ दाना 7 20
3. बाजरा 20 10
4. मूंगफली की खेती 20
5. तिल की खेती 15 20 23
6. अलसी की खेती 15 11
7. गेंहू की चोकर 15 10 10
8. चना का चोकर 07 26
9. अरहर की चूनी 26
10. खनिज मिश्रण 02 01 01
11. साधारण मिश्रण 01 01 01
पोषक तत्त्व
1. प्रोटीन 19.03 20.71 21.41
2. कुल पाचक तत्त्व 76.94 74.80 66.12

तलिका 5: बकरी के बच्चों में अपेक्षित शरीरिक वृद्धि के अनुसार दूध तथा दाने की दैनिक आवश्यकता।

आयु प्रतिदिन अपेक्षित शारीरिक वृद्धि
150 ग्राम 1 100 ग्राम 2 100 ग्राम 3
दूध की मात्रा दाने की मात्रा दूध की मात्रा दाने की मात्रा दूध की मात्रा दाने की मात्रा
जन्म से 15 दिन 500 ग्राम 400 ग्राम 200 ग्राम
15 दिन से 1 माह 800 ग्राम 120.0 ग्राम 600 ग्राम 75.00 ग्राम 300 ग्राम 40.0 ग्राम
1 से 2 माह 700 ग्राम 175.0 ग्राम 500 ग्राम 110.0 ग्राम 260 ग्राम 60.0 ग्राम
2 से 3 माह 400 ग्राम 300 ग्राम 300 ग्राम 200.0 ग्राम 150 ग्राम 100.0 ग्राम

तलिका 6 – 4.30 कि.ग्रा. भार वाली बकरी की दैनिक आहार की आवश्यकता।

क्र. खाद्य पदार्थ दैनिक आवश्यकता (ग्राम) उपलब्ध पोषक तत्वों की मात्रा (ग्राम) अनुमानित कीमत (रूपए)
शुष्क पदार्थ प्रोटीन
1. दाना 200.0 185.0 37.0 1.40
2. हरा चारा 500.0 156.0 15.0 0.50
3. सूखा चारा 500.0 475.0 15.0 1.50
योग 816 67.0 3.40

अनुपूरक आहार

अनुपूरक/अतिरिक्त आहार निम्न वर्ग के बकरियों को दिया जा सकता है:-

  • चारागाह की कमी या शुष्क मौसम में सभी बकरियों को दिया जा सकता है।
  • बीमार बकरियों को।
  • गाभिन बकरीयों को अंतिम 6 हफ्तों में।
  • प्रसव के बाद दुग्धकाल के प्रथम चार हफ्तों तक।
  • मेमनों को वीनिंग के पहले और वीनिंग 5 हफ्तों बाद तक।
  • बाजार में भेजने की तैयारी के 4 हफ्ते पहले।

कोमल पत्ते अनुपूरक के तौर परः

जब भी अतिरिक्त/बतौर अनुपूरक पत्ते आदि देना हो तो यह अवश्य याद रहे कि बकरी पालन के व्यवसाय में नगद आय की आवक ज्यादा से ज्यादा मेमने/ बच्चे होने से एवं वयस्कों के विकय से होती है। आर्थिक रूप से उपयुक्त होने के लिये मॉस/दुग्ध उत्पादन के लिये बकरियों को आवश्यक पोषण पत्ते । आदि से ही प्राप्त करना चाहिये।

प्रोटीन अनुपूरकः

  • प्रोटीन अनुपूरक अनेक प्रकार के हो सकते है।
  • ताजा रबी चारा उदाहरण :- लबलब, ल्यूसीना, कैलीएन्ड्रा, ग्लीरीसिडिया आदि।
  • लेग्यूम हे- उपरोक्त सभी के शुल्क प्रकार
  • उच्च प्रोटीन के कृषि-उद्योग के सह-उत्पाद; उदाहरण – बिनौला व सोयाबीन की खली।

दुग्ध उत्पादन और मेमनों की शारीरिक वृद्धि के लिये प्र्याप्त ऊर्जा की आवश्यकता अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। उच्च ऊर्जा के अनुपूरक स्त्रोत हैं:-

  • मक्का , धान, गेंहू के चोकर
  • गोट पेलेट्स।

आहार अनुपूरक:-

दाना उच्च पौष्टिकता वाला और सुपाच्य आहार है। अलग-अलग मात्रा में विभिन्न अनुपूरक मिलाकर अलग-अलग प्रकार के राशन तैयार किये जा सकते हैं। बकरियों को प्रोटीन की आवश्यकता अलग मौसम एवं शारीरिक अवस्था बढ़ते हुये मेमने, गर्भवती मादा बकरी, दधारू, प्रजनन योग्य बकरा। शारीरिक जरूरत/आवश्यकताओं के आधार पर बकरियों में निम्नानुसार प्रोटीन की मात्रा दी जा सकती है।

मेमने 8-16 सप्ताह 29% प्रोटीन (कुल राशन का)
वीनेर्स 3-4 महीने 19% प्रोटीन (कुल राशन का)
गर्भवती मादा 25% प्रोटीन (कुल राशन का)
प्रजनन योग्य बकरा 16% प्रोटीन (कुल राशन का)
दुधारू बकरी 29% प्रोटीन (कुल राशन का)

स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

डॉ राजेश कुमार सिंह, प्रखंड पशुपालन पदाधिकारी, बहरागोड़ा, पूर्वी सिंहभूम

डॉ आरती विना एका

कृषि वैज्ञानिक -सह- निदेशक ,कृषि विज्ञान केंद्र, दारिसाई ,पूर्वी सिंहभूम

Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

Image-Courtesy-Google

Reference-On Request.

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