हाईड्रोपोनिक्स हरा चारा उत्पादन तकनीक

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हाईड्रोपोनिक्स हरा चारा उत्पादन तकनीक

डॉक्टर- जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

विश्व में सर्वाधिक पशुधन संख्या में सुमार होने के कारण भारत सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। देश की कुल सकल आय का लगभग 5-6 प्रतिशत आय पशुधन से प्राप्त होती है। परन्तु हमारे देश में प्रति पशु उत्पादकता बहुत कम है जिसका मुख्य कारण पशुधन को संतुलित आहार का उपलब्ध न होना है। भारतीय दुग्ध उत्पादन में 70 % दूध की आपूर्ति भूमिहीन किसानो से होती है। दूध का उत्पादन तेजी से बढ़ाने के लिए पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला चारा आवश्यक है। यह सर्व विदित है की दुधारू पशुओं पर करीब 60 से 70 फीसदी खर्च सिर्फ उनकी खुराक पर होता है। आवश्यक है कि पशुओं की खुराक उनके उत्पादन के अनुरूप उचित एंव संतुलित हो जिसमे सभी आवश्यक तत्व यथा प्रोटीन, खनिज लवण,विटामिन, वसा,कार्बोहाइड्रेट एवं जल संतुलित मात्रा में विद्यमान हो। प्राय: पशुपालक सूखा चारा तथा थोड़ा बहुत दाना ही अपने दुधारू पशुओं को खिलाते हैं, जिससे पशु पालक को जितना उत्पादन मिलना चाहिए उतना नहीं मिलता। परिणामस्वरूप अधिकांश किसानों का पशुपालन व्यवसाय से मोह भंग होता जा रहा है।

पशुधन आबादी एवं चारा फसलों का क्षेत्रफल

पशुओं के संतुलित आहार में हरे चारे का विशेष महत्व होता है क्योंकि हरा चारा पशुओं के लिए पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व के संपूर्ण भू-भाग का मात्र 2 प्रतिशत है जबकि यहॉं पशुओं की संख्या विश्व की संख्या का 15 प्रतिशत है। देश में पशुओं की संख्या अमूमन 450 मिलियन है जिसमें प्रतिवर्ष 10 लाख पशु के हिसाब से बढ़ोत्तरी हो रही है। हमारे देश में पशुओं के लिए आवश्यक पौष्टिक आहार की हमेशा से ही कमी रही है क्योकिं हमारे देश में लगभग 4 % भूमि में ही चारा उत्पादन का कार्य किया जाता है। जबकि पशुधन की आबादी के हिसाब से 12 से 16 % क्षेत्रफल में चारा उगाने की आवश्यकता है।
पशुधन के लिए चारा उत्पादन के लिए संभावित विकल्प —-

देश में कृषि योग्य भूमि की उपलब्धता दिन प्रति दिन कम होती जा रही है। सीमित भूमि एवं अन्य संसाधनो में ही हमें खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, गन्ना, कपास, सब्जिओं आदि फसलों की खेती करना है। अतः चारा फसलों के अंतर्गत उपलब्ध क्षेत्र एवं बेकार परती पड़ी जमीनों एवं चरागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की जरूरत है। शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पशुधन की बाहुल्यता है यहां बंजर एवं लवणीय भूमि में चारा उगा कर 90 मिलियन टन हरे चारे की पैदावार की जा सकती है। इसके साथ ही बहुवर्षीय घास लगाकर तथा फसलों के अवशेष के प्रसंस्करण से तैयार चारा भारत के पशुधन को उपलब्ध कराया जा सकता है ।अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को भी अमल में लाना होगा जिससे कि हरे चारे की कमी के समय पर इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके। पशु पालन एवं दुग्धोत्पादन की सफलता मुख्य रूप से उत्तम नश्ल के दुधारू पशुओं एवं पौष्टिक चारे की उपलब्धता पर निर्भर करती है । ईस संदर्भ मे हयड्रोपोणिक पद्धति से हारा चारा का उत्पादन येक अच्छा विकल्प उभरकर सामने आया है ।
हाइड्रोपोनिक चारा : हरा चारा बनाने की आधुनिक विधि—-

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भारत दुनिया में सर्वाधिक दुग्ध उत्पादन करता है। ऐसे में पशुओं के लिए हरा चारे का प्रबंध करना काफी चुनौती पूर्ण है। खासकर उन इलाकों में जहां पानी की उपलब्धता कम है। अधिकांश रकबा सूखे की चपेट में है। इन जगह पर पशुपालन कर डेयरी उद्दोग को आमदनी का जरिया बनाना लाभकारी है। राष्ट्रीय कृषि विकास परियोजना के अन्तर्गत देश में आधुनिक विधि से हरा चारा उत्पादन की तकनीकों का प्रचलन शुरु हुआ। यह हमारे यहां कोई नई शुरुआत नहीं है इसके लिए वैज्ञानिक पिछले 30 वर्षों से सतत प्रयास कर रहें हैं। इस आधुनिक विधि का नाम हाइड्रोपोनिक विधि है। इस विधि द्वारा पानी की बचत होती है। साथ ही किसान कम मेहनत में पशुओं के लिए हरा चारे का उत्पादन कर सकता है।
इसके अन्तर्गत कम समय व लागत में बोहतर हरा चारा के उत्पादन किया जाता है। पशुओं के लिए हरा चारा संतुलित एवं पौष्टिक आहार है। अतएव किसानों के समक्ष चारे का प्रबंध करने का सिरदर्द होता है। देश में कुछ हिस्से ऐसे भी हैं जहां वर्षा बहुत कम होती है। ऐसी जगहों पर यह विधि काफी हद तक कारगर साबित हुई है। हरा चारा दूध में पोषकता बढ़ाने के लिए उपयोगी है। जिसके द्वारा दूध में असंतृप्त वसा,वसीय अम्लों,विटामिन्स की मात्रा बढ़ती है। आधुनिक अनुसंधान के मुताबिक हरा चारे से गाय का दूध उच्च वसीय अम्लों से युक्त है। इस प्रकार के गाय के दूध में ओमेगा 3 नामक महत्वपूर्ण तत्व पाया जाता है। जो आंखों एवं मस्तिष्क के लिए काफी लाभदायक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत में अधिक लाभकारी विधि का इस्तेमाल सर्वाधिक महाराष्ट्र में किया गया है।

क्या है हाईड्रोपोनिक विधिः ——————-

इस विधि में प्लास्टिक की एक ट्रे में जिनकी माप 2 फीट x1.5 फीट x3 इंच होती है। इसमें बाजरा या गेहूं के बीजों को पानी में भिगोकर लगभग 12 घंटे के लिए रख ली जाती है। 72 ट्रे( तश्तरी) का प्रबंध किया जाता है। जिनमें प्रत्येक ट्रे में 1 किलो सूखे बीज रखते हैं। प्रारंभ में जमे बीजों पर लगातार पानी का छिड़काव करते हैं। इस लगतार प्रक्रिया के द्वारा 7 से 8 दिन के अंदर पशुओं को खिलाने योग्य हरा चारे की प्राप्ति होती है। ज्ञात हो कि इस प्रक्रिया के दौरान एक टाइमर एसेंबली का भी प्रयोग किया जाता है। सात दिनों के भीतर लगभग एक किलोग्राम बीज से 8 से 10 किग्रा चारा उत्पादित किया जाता है। एक ट्रे से लगभग एक गाय को खिलाने के लिए पर्याप्त चारा प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रकार एक सप्ताह के लिए प्रति गाय के लिए एक ट्रे से पर्याप्त मात्रा में चारा प्राप्त किया जा सकता है। अर्थात एक किसान यदि 10 गाय हैं तो उसे लगभग 80 ट्रे का प्रबंध करना होगा। मक्का द्वारा प्राप्त किये जाने वाले चारे के लिए एक किलोग्राम के लिए लगभग दो रुपए का खर्चा आता है।
हाईड्रोपोनिक विधि से चारा बनाने के लिए किसान को पूरा ढांचा तैयार करने के लिए कुल लगभग 35000-50000 हजार रुपए की लागत लगानी होगी। जिसमें 80 ट्रे साथ ही 1 हॉर्स पावर का इलेक्ट्रानिक मोटर व फॉगर एवं टाइमर की लागत शामिल है।

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मक्के से उगाया जाता है यह चारा-——-

यह चारा मक्के से उगाया जाता है। इसके लिए 1.25 किलोग्राम मक्के के बीज को चार घंटे पानी में भिगोया जाता है फिर उसे 90X32 सेमी की ट्रे में रख दिया जाता है। एक हफ्ते में यह हरा चारा तैयार हो जाता है। ट्रे से निकालने पर यह चारा जड़, तना और पौधे वाले मैट की तरह दिखता है। एक किलोग्राम पीला मक्का से 3.5 किलोग्राम और एक किलोग्राम सफेद मक्का से 5.5 किलोग्राम हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा तैयार होता है। सफेद मक्के से तैयार किए गये हाइड्रोपोनिक्स चारे की उत्पादन लागत चार रुपए प्रति किलोग्राम जबकि पीला मक्का से तैयार करने पर उत्पादन लागत पांच रुपए प्रति किलोग्राम आती है। परंपरागत हरा चारा में क्रूड प्रोटीन 10.7 प्रतिशत होती है जबकि हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा में क्रूड प्रोटीन 13.6 प्रतिशत होती है। परंपरागत हरा चारा में क्रूड फाइबर 25.9 प्रतिशत जबकि हाइड्रोफोनिक्स हरा चारा में क्रूड फाइबर 14.1 प्रतिशत ही होता है। एक डेयरी मवेशी के लिए एक दिन में 24 किलो हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा पर्याप्त है। हरा चारा डेयरी मवेशियों के लिए अनिवार्य है। हालांकि जहां पर इसकी उपलब्ध्ता न हो वहां हाइड्रोपोनिक्स हरा चारा का उत्पादन किसान कर सकते हैं।

घर में कैसे तैयार करें हाइड्रोपोनिक्स चारा : —

हाइड्रोपोनिक्स ट्रे बनाने के लिए 8×2 फुट की टीन की चादर या प्लास्टिक ट्रे का इस्तेमाल किया जा सकता है. हाइड्रोपोनिक्स चारा 10 दिनों में पशुओं को खिलाने लायक हो जाता है, इसलिए आप को कम से कम 10 ट्रे की जरूरत होगी.
इस से आप को रोजाना हरा चारा हासिल होगा. एक ट्रे में करीब 10 किलोग्राम चारा हो जाता है.
बीज : हाइड्रोपोनिक्स ग्रास ट्रे के लिए करीब 1किलोग्राम मक्के के बीज लें. उन बीजों को 10 से 12 घंटे तक किसी बालटी में भीगने के लिए रख दें. अब इन भीगे हुए बीजों को 24 घंटे के लिए जूट के बोरे में लपेट कर रख दें. अगले दिन बीज अंकुरित हो जाएंगे, फिर इन अंकुरित बीजों को किसी ट्रे में रख दें.
पशुओं को रोजाना ताजा हरा चारा मिले, इस के लिए रोजाना बीजों को 12 घंटे के लिए भिगाएं और फिर उन्हें अगले 24 घंटे तक जूट के बोरे में लपेट कर रखें, जिस से बीजों में अंकुर आ जाएं. इस बात पर खास ध्यान दें कि हर दिन इसी तरह काम करना होगा. आप मक्के के बीजों के अलावा ज्वार, बाजरा और बरसीम के बीजों से भी पशुओं के लिए हरा चारा उगा सकते हैं.
मिट्टीपानी की जरूरत नहीं : हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से चारा उगाने के लिए पानी और मिट्टी की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गरमियों में 10 दिनों में 1 या 2 बार पानी का हलका सा छिड़काव किया जा सकता है, क्योंकि अंकुरित बीजों में पहले से ही नमी रहती है.
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से लाभ : इस तकनीक का सब से बड़ा लाभ यह है कि इस से काफी कम जगह में पोषणयुक्त हरा चारा आसानी से मुहैया हो जाता है.
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से आम किसान सालभर दुधारू पशुओं के लिए कम जगह में हरा चारा उगा सकते हैं, जिन्हें आमतौर पर कई एकड़ में चारा उगाना पड़ता है. इस विधि से लागत भी काफी कम आती है और मिट्टी के उपजाऊ न होने का फर्क भी नहीं पड़ता.
* रिसर्च में पाया गया कि परंपरागत हरे चारे में क्रूड प्रोटीन 10.7 फीसदी होता है, जबकि मक्के से तैयार हाइड्रोपोनिक्स चारे में कू्रड प्रोटीन 13.6 फीसदी होता है, परंपरागत हरे चारे में कू्रड फाइबर भी कम होता है. हाइड्रोपोनिक्स चारे में अधिक ऊर्जा और विटामिन होते हैं. इस से पशुओं में दूध का उत्पादन अधिक होने लगता है.
* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक में मिट्टी की जरा भी जरूरत नहीं होती और पानी भी बहुत कम देना पड़ता है.
इस वजह से पौधों के साथ न तो अनावश्यक खरपतवार उगते हैं और न ही इन पर कीड़ेमकोड़े लगने का डर रहता है. इसलिए कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता और न ही खाद का. इस तकनीक से हरा चारा उगाने में मौसम का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता. इसे किसी भी मौसम में उगाया जा सकता है.
* हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से हरा चारा 8 से 10 दिनों में पशुओं को खिलाने के लायक हो जाता है. परंपरागत तकनीक में चारा तैयार होने में 40 से 45 दिन लगते हैं. 100 पशुओं के लिए परंपरागत विधि से चारा उगाने के लिए करीब 15 एकड़ जमीन की जरूरत पड़ती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से 1000 वर्गफुट में 15 एकड़ के बराबर चारा आसानी से कम लागत में उगाया जा सकता है.
इस चारे को मशीन से काट कर खिलाया जाता है और चारे की जड़ को भी पशुओं को खिलाया जाता है, क्योंकि उस में मिट्टी नहीं होती है.
हाइड्रोपोनिक्स तकनीक से दूध उत्पादन में बढ़ोतरी : इस तकनीक से उगाया गया चारा अंकुरित होने के कारण अधिक प्रोटीन और मिनरल से भरपूर होता है. इस से दूध में फैट की मात्रा बढ़ जाती है.
दूध देने वाले पशुओं को अतिरिक्त प्रोटीन व मिनिरल्स की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने के लिए बाजार से अधिक कीमत में खरीद कर तरल प्रोटीन दिया जाता है.
बाजार से खरीदा गया प्रोटीन काफी मंहगा पड़ता है. इस की पूर्ति के लिए डेरी वाले ग्राहकों से ज्यादा कीमत वसूलते हैं.

हरे चारे का दुग्ध उत्पादन में महत्त्व : हरा चारा उत्पादन तकनीक

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