पशुओं की वैज्ञानिक आहार पद्धति का महत्व

0
412

IMPORTANCE OF SCIENTIFIC ANIMAL FEEDING SYSTEM

पशुओं की वैज्ञानिक आहार पद्धति का महत्व

     डॉ. दिव्यांशु पांडे1, कुमार गोविल2

1पशु आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल हरियाणा –132001

2पशु पोषण विभाग, पशु पालन चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्द्यालय रीवा

 

पशु आहार पर उत्पादन की कुल लागत का 70% हिस्सा व्यय होता है। पशुओं को गुणवत्तापूर्ण आहार उचित मात्रा में खिलाने से पशु स्वस्थ रहता है, उसकी शारीरिक वृद्धि होती है, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन क्षमता में सुधार होता है। भारत में मुख्यतः छोटी डेयरी का प्रचलन है जिनका फीडिंग सिस्टम मुख्य रूप से कम पोषक मूल्य के देशी चरागाहों की चराई पर आधारित है. पशुओं को आमतौर पर गेहूं, धान, बाजरा, गन्ने और अन्य पुआल और स्टोवर खिलाया जाता है। इन्हें चराई से उपलब्ध घास की थोड़ी मात्रा के साथ पूरक किया जाता है। पशुओं को बहुत सीमित मात्रा में सांद्रण खिलाया जाता है। हालांकि, समय के साथ फ़ीड और फीडिंग आवश्यकताओं के लिए संसाधन भी विकसित हुए हैं। भेड़ एक करीबी चरवाहा है जबकि बकरी एक ब्राउज़र है। पशु आहार विधि जो भी हो, मुख्य उद्देश्य पशु शरीर में पोषक तत्वों का अंतर्ग्रहण होना चाहिए। उत्पादक पशुओं को किफायती और अनुकूलित करने के लिए, चारा अच्छी गुणवत्ता और उचित मात्रा का होना चाहिए।

वैज्ञानिक दृष्टि से दुधारू पशुओं के शरीर के भार के अनुसार उसकी विभिन्न आवश्यकताओं जैसे जीवन निर्वाह, विकास उत्पादन तथा गर्भ आदि के लिए आहार के विभिन्न तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट्स, वसा, खनिज,विटामिन तथा पानी की आवश्यकता होती है| पशु को 24 घण्टों में खिलाया जाने वाला आहार (दाना व चारा) जिसमें उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतू पोषक तत्व मौजूद हों, पशु आहार कहते है, एवं जिस आहार में पशु की आवश्यकता अनुसार सभी आवश्यक पोषक तत्व उचित अपुपात तथा मात्रा में उपलब्ध हों, उसे संतुलित आहार कहते हैं| अगर डेयरी फार्म पर हर साल एक बछड़ा या बछड़ी एक गाय या भैंस से मिल रहा है तो हम कह सकते हैं कि यह फार्म आर्थिक रूप से लाभ में है।

पशु से निरंतर दूध लेने के लिए उसका सही समय पर गर्भित होना जरुरी है। विदेशी नस्ल की गायों यौन परिपक्वता 12-16 महीने में आ जाती है तथा देशी नस्ल में यह 2- 2.5 साल में आ जाती है भैसों में यौन परिपक्वता 2.5-3 साल में आ जाती है। अगर पशु सही उम्र पर पहुँचने के बाद भी गर्मी पर नहीं आता है अथवा गाभिन नहीं होता है तो उसके आहार प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार दूध देने वाले पशुओं में व्याहने के 45-60 दिन में गर्भधारण हो जाना चाहिए। एक अनुसन्धान के अनुसार एक पशु में गर्भधारण में देरी होने से प्रतिमाह लगभग 7-8 हजार रुपये का नुकसान होता है। पशुओं के लिए वैज्ञानिक पद्धति से आहार को तैयार आहार देने से निम्न फायदे होते है-

  1. पशु स्वस्थ रहता है
  2. पशु की उचित शारीरिक वृद्धि होती है
  3. प्रजनन क्षमता में सुधर होता है.
  4. पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है.
  5. उत्पादन क्षमता में भी सुधार होता है
  6. दूध उत्पादन में वृद्धि होती है.
  7. वैज्ञानिक आहार देने से मुर्गियों, सूकरों द्वारा द्वारा मांस उत्पादन में वृद्धि होती है.
  8. अंडे उत्पादन में वृद्धि
  9. पशुओं की दो ब्यांतों के बिच का अंतराल कम होता है.
  10. पशु सही समय में हीट में अत है.
  11. गर्भ में पल रहे भ्रूण का उचित विकास होता है.
READ MORE :  पशुओं के संतुलित आहार  में ऋणात्मक और घनात्मक आहार का महत्त्व

 

पशुओं में आहार की मात्रा उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन की अवस्था पर निर्भर करती है| पशु को कुल आहार का 2/3 भाग चारे से तथा 1/3 भग दाने के मिश्रण द्वारा मिलाना चाहिए| चारे में दलहनी तथा गैर दलहनी चारे का मिश्रण दिया जा सकता है| दलहनी चारे की मात्रा आहार में बढने से काफी हद तक दाने की मात्रा को कम किया जा सकता है| वैसे तो पशु के आहार की मात्रा का निर्धारण उसके शरीर की आवश्यकता व कार्य के अनुरूप तथा उपलब्ध भोज्य पदार्थों में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के आधार पर गणना करके किया जाता है लेकिन पशुपालकों को गणना कार्य की कठिनाई से बचाने के लिए थम्ब रुल को अपनाना अधिक सुविधाजनक है| इसके अनुसार हम मोटे तौर पर व्यस्क दुधारू पशु के आहार को तीन वर्गों में बांट सकते है-

1.जीवन निर्वाह के लिए आहार

2.उत्पादन के लिए आहार तथा

3.गर्भवस्था के लिए आहार|

1.जीवन निर्वाह के लिए आहार:-

यह पशु आहार की वह मात्रा है जो पशु को अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिया जाता है| पशुओं को दिया जाने वाला जीवन निर्वाह आहार से पशुओं के शरीर का वजन भी एक सीमा में स्थिर बना रहता है| इस आहार से पशु अपने शरीर के तापमान को उचिर सीमा में बनाए रखने, शरीर की विभिन्न आवश्यक क्रियायें जैसे पाचन क्रिया ,रक्त परिवाहन, श्वसन, उत्सर्जन, चयापचय आदि के लिए काम में लाता है| चाहे पशु उत्पादन में हो या न हो इस आहार को उसे देना ही पड़ता है इसके आभाव में पशु कमज़ोर होने लगता है जिसका असर उसकी उत्पादकता तथा प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है| इस में देसी गाय (ज़ेबू) के लिए तूड़ी अथवा सूखे घास की मात्रा 4 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल के लिए यह मात्रा 4 से 6 किलो तक होती है| इसके साथ पशु को दाने का मिश्रण भी दिया जाता है जिसकी मात्रा स्थानीय देसी गाय (ज़ेबू) के लिए 1 से 1.25 किलो तथा संकर गाय, शुद्ध नस्ल की देशी गाय एवं भैंस के लिए इसकी मात्रा 2.0 किलो रखी जाती है|

READ MORE :  स्वस्थ्य एवं दुधारू पशुओं के लिए हरा चारा की वैज्ञानिक उत्पादन एवं प्रबंधन

2.उत्पादन के लिए आहार:-

उत्पादन आहार वह मात्रा है जिसे पशु को जीवन निर्वाह के लिए दिए जाने वाले आहार के अतिरिक्त पशु द्वारा किया जा रहा दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है| इसमें स्थानीय गाय (ज़ेबू)या देसी गाय के लिए प्रति 2.5 किलो दूध के उत्पादन के लिए जीवन निर्वाह आहार के अतिरिक्त 1 किलो दाना देना चाहिए जबकि संकर/देशी दुधारू गायों/भैंसों के लिए यह मात्रा प्रति 2 किलो दूध के लिए दी जाती है| यदि हर चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो हर 10 किलो अच्छे किस्म के हरे चारे को देकर 1 किलो दाना कम किया जा सकता है जिससे पशु आहार की कीमत कुछ कम हो जाएगी और उत्पादन भी ठीक बना रहेगा| पशु को दुग्ध उत्पादन तथ आजीवन निर्वाह के लिए साफ पानी दिन में कम से कम तीन बार जरूर पिलाना चाहिए.
3.गर्भवस्था के लिए आहार:-

पशु की गर्भवस्था में उसे 5वें महीने से अतिरिक्त आहार दिया जाता है क्योंकि इस अवधि के बाद गर्भ में पल रहे बच्चे की वृद्धि बहुत तेज़ी के साथ होने लगती है| अत: गर्भ में पल रहे बच्चे की उचित वृद्धि व विकास के लिए तथा गाय/भैंस के अगले ब्यांत में सही दुग्ध उत्पादन के लिए इस आहार का देना नितान्त आवश्यक है| इसमें स्थानीय या देसी गायों (ज़ेबू कैटल) के लिए 1.25 किलो तथा संकर नस्ल की गायों व भैंसों के लिए 1.75 किलो अतिरिक्त दाना दिया जाना चाहिए| अधिक दूध देने वाले पशुओं को गर्भवस्था में 8वें माह से अथवा ब्याने के 6 सप्ताह पहले उनकी दुग्ध ग्रंथियों के पूर्ण विकास के लिए की इच्छानुसार दाने की मात्रा बढा देनी चाहिए| इस के लिए ज़ेबू नस्ल के पशुओं में 3 किलो तथा संकर गायों व भैंसों में 4-5 किलो दाने की मात्रा पशु की निर्वाह आवश्यकता के अतिरिक्त दिया जाना चाहिए| यदि गर्भावाश्ता में पशुओं का उचित पोषण प्रभंधन किया जाए तो वह ब्यांत के बाद के  अधिक दूध उत्पादन करने में सक्षम होती है एवं उसकी प्रजनन क्षमता भी अच्छी बनी रहती है जिससे वह अगली बार पुनः हीट में जल्दी आ जाती है.

READ MORE :  पशुपालकों के लिए पशुपालन कार्यों का माहवार कैलेंडर

पशु आहार की वैज्ञानिक पद्यति के कुछ महतवपूर्ण बिंदु-

  1. जो पशु ज्यादा दूध देते हैं उनको दाना जरूर दें। दाने की मात्रा दूध उत्पादन के हिसाब से निर्धारित की जाती है। इसका नियम यह है कि प्रति 5 लीटर दूध के लिए 1 किलो दाना गाय के लिए तथा प्रति 2 लीटर दूध पर 1 किलो दाना भैंस के लिए दिया जाता है।
  2. जो पशु 5-7 लीटर दूध प्रतिदिन देते हैं तथा अगर हरा चारा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है तो सिर्फ हरा चारा 40-45 किलो देने से पशु की आहार की पूर्ती हो जाती है दाने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार दाने पर होने वाला व्यय बचा सकते हैं।
  3. हरे चारे को कभी अकेला न खिलाये उसके साथ भूसा भी मिलाएं।
  4. हरा चारा हमेशा कुट्टी काटकर दे जिससे उसकी पाचनशीलता अधिक होती है।
  5. पशुओं के आहार में रोजाना 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण भी देना चाहिए जिससे कि उनके आहार में खनिज तत्वों की कमी पूरी हो सके।

अगर पशुपालक इस नियम से आहार देते हैं तो जरूर अपनी आमदनी बड़ा सकते हैं। क्युकि जो पशु कम दूध दे रहें है उनके आहार में कटौती करके होने वाले व्यय को बचा सकते हैं तथा जो अधिक दूध देने वाले पशु हैं उनको अच्छा आहार देकर उनसे अच्छा दूध उत्पादन ले सकते हैं। जिससे कि निश्चित तौर पर आय में वृद्धि होगी।

 

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON