सूकर की प्रमुख बीमारियॉ एवं प्रबंधन

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सूकर की प्रमुख बीमारियॉ एवं प्रबंधन

डॉ अर्पिता श्रीवास्तव, नीरज श्रीवास्तव, सुलोचना सेन, राजीव रंजन, अमित कुमार झा, राजेष वान्द्रे, नीतेष कुमार

पषुचिकित्सा एवं प्षुपालन महाविघालय रीवा

 

किसी शासकीय, अर्धशासकीय या निजि सूकर पालन व्यवसाय से संबंधित संस्था के लिए यह अति आवश्यक है कि प्रबंधन इस प्रकार रखा जाये कि बीमारियॉं पैदा ही न हों। सूकरों की कुछ मुख्य बीमारियॅा निम्नानुसार हैंः-

जीवाणु एवं विषयाणुजन्य बीमारियों में मुख्य रूप से –

  1. स्वाईन फीवर या हॅाग कॅालरा – यह अत्यंत छूतदार विषाणुजन्य बीमारी है जिसमें तेज बुखार, सस्ती, खाना छोड़ना, बाद में अपच,पतले दस्त, वमन तथा आंखों से स्त्राव निकलना तथा सफेद चमड़ी का रंग पेट तथा बाजू में चमड़ी का रंग बदलना जो नीला या काला हो सकता है। पोस्टमार्टम करने पर छोटी आंत में बड़े बटन के आकार के छाले हो जाते हैं।

स्वाईनफीवर टीका लगाने से लगभग पूरी आयु तक सूकर इस बीमारी से सुरक्षित रहते हैं।

  1. एन्थ्रेक्स  (Anthrax) – अत्यंत तीव्र छूतदार तेज बुखार वाली जीवाणुजन्य बीमारी है। गले में सूजन तथा तुरंत मृत्यु होती है। खून काला तथा जमता नहीं है। इस बीमारी से मृत सूकर दूर ले जाकर गहरे गड्ढ़े में दफनाया जाता है तथा बिना बुझा चूना और नमक इत्यादि डालकर मिट्टी से दबा देते हैं। इसका कोई इलाज नहीं है।
  2. स्वाईन इरसिपेलस (Swine Erysipelas) – जीवाणुजन्य बीमारी है। जो मादाओं में जनन से तत्काल बाद अक्सर देखी जाती है। यह अत्यंत तेज तथा चमड़ी के अर्टीकेरिया ;न्तजपबंतपंद्ध के रूप में होती है। पीछे तथा बाजू की तरफ हीरे के आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। इस बीमारी का टीका लगाया जाना उचित होता है।
  3. स्वाईन इन्फ्लूयेन्जा (Swine Influenza) अत्यंत छूतदार श्वॅास संबंधी बीमारी है लेकिन यह बीमारी केवल यूरोप और अमेरिका में ही देखी गई है।
  4. स्वाईन पॅाक्स (Swine Pox) हमारे देश में यह बीमारी सामान्यतः सूकरों में नहीं होती है।
  5. मुॅंहखुरी रोग (F.M.D.) इसका टीका प्रत्येक 6 माह में लगाया जाना उचित होता है अन्य पशुओं में जो जुगाली करते हैं उनको भी यह बीमारी होती है।
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कृमिनाशक दवापान :-

सूकरों में कृमि होना आम बात है जिसके लिए सूकर शावकों को वीनिंग के समय कृमिनाशक दवापान अवश्य कराना चाहिए। इनमें लम्बे गोलकृमि जिन्हें एसकेरिस कहते हैं पिपराजीन दवा विशेष रूप से कारगर होती है। इसे दाने या पीने के पानी में मिलाकर देना चाहिए। सूकरों में यदि कोई सूकर बीमार है तो वही दूसरों सूकरों की बीमार करता है। स्वस्थ पशुओं से अलग कर दें। बाहर रहकर भी वह पशु स्वस्थ होने के बाद भी बीमारी का कारक होता है। बीमार पशु की दूषित सामग्री का भी वैज्ञानिक तरीके से नष्ट किया जाना चाहिए।

  1. पशुओं को जीवाणु,विषाणु, आंतरिक तथा बाह्य परजीवियों से सुरक्षित रखने के सभी उपाय करें।
  2. प््राबंधन के द्वारा सुरक्षा की जा सकती है।
  3. पशुओं को स्वस्थ रखने के लिए प्रजनन स्टॉक, जनन से वीनिंग तक का स्टॅाक, वीनिंग से मारकेटिंग तथा सामान्य स्वच्छता बनाये रखना।
  4. प्रजनन स्टॅाक मेंShaky Pig बीमारी, मादा में थनों का उचित अंतर पर न होना या कम अथवा छोटे होना अथवा खराबी होना पाया जाता है तो ऐसे पशु को नहीं रखना चाहिए।
  5. हार्निया, क्रिपटाकिडिज्म, एट्रेसिया एनीआई, एगेलेश्शिया तथा नर्वसनेस आदि से बचाया जाये या ऐसे पशु को अलग कर दिया जाये।
  6. वीनिंग के तत्काल बाद या प्रजनन के पूर्व मादा सूकर के रक्त की जांच और बू्रसेलोसिस बीमारी के लिए जांच करवा लेना चाहिए।
  7. जरूरत हो तो मादा को लेप्टोस्पाइरोसिस (lepto spirosis) का टीका लगाना चाहिए और प्रत्येक ब्रीडिंग सीजन में इसे दुहराना चाहिए।
  8. 18 माह से ऊपर प्रजनन स्टॅाक रखने पर पशु चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।
  9. स्वाईन इरीसिप्लास का टीका भी नर मादा दोनों को लगायें। गर्भवती मादा को जनन के 3 सप्ताह से 4 सप्ताह पूर्व टीका लगाना उचित होता है। इससे मादा सूकर के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है इसलिए शावकों को एक सप्ताह की उम्र से टीकाकरण नहीं करना चाहिए।
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जनन से वीनिंग तक :-

  1. शावकों को ठंड से बचाया जाय तथा नॅाल जहॅा से काटना है उसके 1‘‘ ऊपर निर्जन्तुकृत धागा बांध कर उसके 1‘‘ नीचे से निर्जतुकृत कैंची, ब्लेड,छुरी आदि से काटा जाय तथा उस स्थान पर 7ः टिंचर आयोडीन लगाना चाहिए।
  2. जनन के 1-2 दिन पश्चात् सुई के आकार के दांत (Needle Teeth)  अवश्य काटे ।
  3. सूकर शावकों में खून की कमी ऐ एनीमिया (Piglet Anacusies) होता है।
  4. पतले दस्त से बचाने के लिए बेलामिल इंजेक्शन 0.5 उण्सण् कान के पीछे मांस में 5 वें दिन तथा 15 वें दिन लगाना चाहिए।
  5. सूकर कचरे में थोड़ी मिट्टी भी रखी जा सकती है जो खाने से खनिज तत्वों की पूर्ति हो जाती है। इसलिए कंडिका (3) में उल्लेखित व्यय को कम किया जा सकता है। बुझा हुआ चूना भी मिटट्ी या दाना में मिलाकर खिलाने से कैल्सियम की पूर्ति की जा सकती है। आयरन इंजेक्शन के रूप में इनफीरॅान चौथे दिन तथा चौदहवें दिन 0.5 उण्सण् लगाकर पिगलेट एनीमिया से बचाया जा सकता है।
  6. नर शावकों के जनन में 3-4 दिन पश्चात् अगले 2 सप्ताह के पूर्व बधिया कर देना चाहिए यदि मांस के लिए पाले जा रहे हैं।
  7. दाने में जीवाणु तथा विषाणु नाशक दवायें और खनिज मिश्रण अवश्य मिलाना चाहिए।बाह्य परजीवियों को मारने के लिए लिंडेन या सुमिथियॅान का छिड़काव करें।
  8. स्वाईनफीवर तथा इरीसिप्लॅास बीमारियों से बचाव के तरीके अपनाएं। मुंहखुरी रोग का भी टीका अवश्य लगायें।

वीनिंग से मार्केटिंग तक :-

सूकरों में आंतरिक एवं बाह्य कृमि की समस्या को स्वच्छता के माध्यम से दूर कर सकते हैं चारागाह चक्र तथा दवाओं के उपयोग से निदान या हल संभव है। इस प्रकार उन्नत नस्ल के सूकर पालन से एवं बीमारियों से बचाकर देशी सूकर से कम समय में लगभग चार गुना लाभ कमाया जा सकता है।

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