लम्पी स्कीन डीजीज (गाठदार त्वाचा रोग)

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लम्पी स्कीन डीजीज (गाठदार त्वाचा रोग)

डा.मनोज कुमार सिन्हा, डा. अवनिश कुमार गौतम एवं डा. मंजू सिन्हा

बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना14

 

परिचय

लम्पी त्वचा रोग मवेशियों की विषाणुजनित संक्रमण एवं धातक बीमारी है। यह capripox virus(Poxviride) द्वारा होती है। यह बीमारी मूल रूप से दक्षिण एवं पूर्वी अफ्रीका में पाया जाता है। यह मध्यपूर्व, एशिया और पूर्वी युरोप के देशों  में फैला हुआ है। हाल के दिनों में रूस,जार्जिया, बांगलादेश, चीन एवं नेपाल में पहली बार लम्पी त्वचा रोग के प्रकोप की सूचना है। भारत में सर्वप्रथम अगस्त 2019 में पहली बार उड़ीसा के मयूरगंज जिले से शुरू होकर पाच जिलों में इसका प्रकोप देखा गया। भारत के अन्य राज्यों यथा गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, महाराष्ट्, मध्यप्रदेश, केरल, तमिलनाडु एवं बिहार में भी इसका प्रकोप देखा गया।

बिहार में सर्वप्रथम सितम्बर 2019 में गया जिले के वार्ड सं0 32 में लम्पी त्वचा रोग जैसे लक्षण मवेशियों में देखा गया। एल एस डी रोगों से ग्रसित पशुओं से नमूनों को एकत्रित कर उच्च स्तरीय प्रयोगशाला NIHSAD (National Institute of High Security Animal Diseases ) भोपाल भेजा गया एवं नवम्बर 2019 में पहली बार बिहार राज्य के गया जिले के वार्ड सं0 32 में इस बिमारी की पुष्टी NIHSAD भोपाल के द्वारा किया गया। तत्पश्चात् बिमारी के प्रसार को राकने के लिए Ring टीकाकरण संग्रमण के Epicenter के 5 कि0मी0 के दायरे में कुल 20,000 मवेशियों को किया गया। हाल के वर्षो में भौगोलिक प्रसार के कारण यह अंतर्राष्टीय चिंता का विषय बना हुआ है।

संक्रमण एवं फैलाव- एल0 एस0 डी0 के विषाणु अर्थोपाडे वेक्टर जैसे मच्छर, टिक्स, फलाई इत्यादि काटने वाले कीड़े यांत्रिक वेक्टर से फैलते है। इस बिमारी का प्रकोप भीषण गर्मी में सर्वाधिक होता है। हार्डटिक्स की तीन प्रजातियों को वायरस को जैविक रूप से प्रसारित करते हुंए पाया गया है। संक्रमित लार द्वारा भी वायरस संचरित होता है। सर्वाधिक संग्रमण संपर्क संक्रमण के द्वारा होता है।

प्रमुख लक्षण- लम्पी त्वचा रोग के लिए उष्मायन अवधि 4-14 दिनों का होता है।

  • शुरूआती लक्षण के तौर पर 2-3 दिनों तक हल्का बुखार होता है।
  • नाक से स्त्राव और हाइपरसैलिवेशन भी होता है।
  • इसके उपरान्त 02 से 05 से0मी0 व्यास की गालाकार गाॅठ लगभग पूरे शरीर के चमड़ी पर पाया जाता है, विशेष रूप से सिर, गर्दन, अंगों, थन और जननांगो के आस पास पाया जाता है। यह गांठ गोलाकार, थोड़े उभरे हुए, दृढ़ एवं दर्दनाक होते है। यह पुरे त्वचा एवं त्वचा के नीचे के भागों में तथा कभी-कभी मांस तक को प्रभावित करता है। द्वितीयक जीवाणु संक्रमण स्थिति को और बढ़ा देती है। त्वचा के पिंड में मलाईदार ग्रे एवं पीले रंग का तरल पदार्थ बन जाता है। माध्यमिक संक्रमण के कारण व्यापक दमन एवं चमड़ी में Sloughing हो जाता है एवं जानवर बेहद कमजोर हो जाता है। समय के साथ गाठें धीरे धीरे अल्सर का रूप ले लेते हैं जो सही उपचार एवं देखभाल के उपरान्त ठीक हो जातें है एवं अपना निशान छोड़ देते हैं।
  • मॅुह, श्वासनली एवं गले में धाव भी हो जाता है।
  • पैरों में सुजन एवं क्षेत्रीय लीम्फ नोड भी बढ़ जाता है।
  • दुधारू गायों में दुध उत्पादन में कमी आ जाती है।
  • गाभीन गायों में गर्भपात एवं नपुसंकता के लक्षण भी पाये जाते हैं।
  • कभी कभी पशुओं की मृत्यु भी हो जाती है।
  • संक्रमण की Morbidity दर 10 – 20 प्रतिशत एवं मृत्यु दर लगभग 01 – 06 प्रतिशत तक होती है।
  • प्रायः लक्षण के अनुरूप (Symptomatic treatment) चिकित्सा द्वारा पशु 2-3 सप्ताह में ठीक हो जाता है। परन्तु कई सप्ताह तक दुग्ध उत्पादन में कमी रहती है।
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निदानः लक्षणों के आधार पर एवं चेचक वायरस को प्रारंभिक त्वचा के धावों मे इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी के द्वारा वायरस की पहचान की जा सकती है।

  • वायरस अलगाव
  • हिस्टोपैथोलाजी
  • पी0सी0आर0 एवं अन्य बिमारियों जैसे डर्माटोफिलस कांगोलेंसिस बोवाइन हर्पीज मैमिलिटिस आदि से (Differential Diagnosis) के आधार पर अलग कर सकते हैं।

संक्रमण के प्रसार को नियंत्रित करने के उपाय- भारत सरकार द्वारा एल एस डी के रोकथाम हेतु उपाय जारी किये गये हैं उसे अनुपालन कर इस रोग की रोकथाम संभव है।

  1. नैदानिक निगरानी (Clinical Survellance) – एल0 एस0 डी0 संदिग्ध क्षेत्रों में रोगग्रस्त एवं मृत्यु दर का आंकड़ा तैयार करने के साथ साथ गांठदार त्वचा के संवेदनशील पशुओं की नैदानिक निगरानी की जानी चाहिए। संदिग्ध पशुओं से EDTA Vail में Blood/Skin/Biopsy/Swab को ICAR-NIHSAD भोपाल जांच हेतु भेजना चाहिए।
  2. पशुओं के पारगमन पर रोक- एल0 एस0 डी0 के रोकथाम एवं आर्थिक हानि को कम करने हेतु एल0 एस0 डी0 प्रभावित इलाकों के पारगमन को रोकना चाहिए।

3-LSD से ग्रसित पशुओं एवं उनके साथ काम करने वाले व्यक्तियों को प्रतिबंधित करना।

LSD से ग्रसित इलाकों से लोगों के पारगमन को कम करना एवं ग्रसित पशुओं के देखभाल करनेवाले व्यक्ति को स्वस्थ पशु से दूर रखना चाहिए।

4-टीकाकरण  LSD से ग्रसित गाँव / इलाकों की पहचान करना ताकि सम्भावित इलाकों में एहतियाती उपायों को लागू किया जा सके तथा ग्रसित गाँव से 5 कि0मी0 के परिधि में रिंग टीकाकरण (Ring Vaccination) किया जा सके। चार महीने एवं उंससे अधिक उम्र के गाय एवं भैसों में Goat Pox Vaccine (Uttarkashi Strain)से S/C रूट (चमड़ी के नीचे) में टीकाकरण करना चाहिए।

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5.जैव सुरक्षा उपाय

  • तत्काल प्रभाव से संक्रमित एवं रोगग्रस्त पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए जबतक कि पशु पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाये, पशुओं को तरल एवं मुलायम भोजन देना चाहिए।
  • LSD से प्रभावित ग्रामों एवं क्षेत्रों के पशुओं को अप्रभावित क्षेत्रों के पशुओ से अलग रखना तथा सार्वजनिक चारागाह एवं उनके सीधे संपर्क से बचा जा सके। LSD से प्रभावित जिला एवं आस-पास के गाॅवो का निगरानी बढ़ाया जाना चाहिए।
  • प्रभावित क्षेत्रों में वेक्टर आबादी (मच्छर ध् टिक्स ध् फ्लाई इत्यादिद्ध को कम करने का प्रयास करना चाहिए तथा इनके रोकथाम के लिए Insect repellent का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  • पशु स्थल को नियमित रूप से Disinfect करना चाहिए।
  • प्रभावित क्षेत्रों में रोग की पुष्टि होने पर जीवित पशुओं के व्यापारए पशु मेला इत्यादि में भाग लेने पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
  • प्रभावित पशुओं से नमूने लेने के दौरान सभी जैव सुरक्षा (Bio-security) उपाय एवं Strict sanitary measures को पालन करते PPE Kit का disposal करना चाहिए।
  • जो व्यक्ति इन पशुओं की देखभाल करता है उन्हें गलब्स एवं मास्क का उपयोग करना चाहिए।
  • किसी भी असामान्य बीमारी को नजदीकी पशु चिकित्सालय में सूचित करना चाहिए।
  • LSD से संक्रमित पशु फार्म में नजदीकी पशु चिकित्सक द्वारा नियमित जाँच किया जाना चाहिए जबतक पशु पूर्ण रूप से स्वस्थ न हो जाये।
  • पशुओं के मृत्यु की स्थिति में पशु शव को गहरे गढ़े में स्वच्छता उपायों के साथ दफन करना चाहिए।
  • LSD के केन्द्र से 10 कि0मी0 तक के पशु हाट को बन्द किया जाना चाहिए एवं पशुओं के क्रय विक्रय पर रोक लगाना चाहिए।
  • समूह चराई क्षेत्र और पशु समूहों की निगरानी एवं टीकाकरण करना चाहिए। प्रभावित जिलों एवं राज्यों से पशुओं की आवाजाही की निगरानी एवं कीटाणु शोधन (Disinfection) प्रणाली के साथ चेक पोस्ट को सक्रीय करना चाहिए।
  • 6.भेक्टर का रोकथाम– गोशालाओं एवं आसपास के क्षेत्रों को मच्छर एवं मक्खी से मुक्त करने हेतु कीटनाशक एवं अन्य केमिकल का उपयोग करना चाहिए।
  • 7.जागरूकता अभियान– LSD जाँच में च्वेपजपअम पाया गया हो तो उस जगह के पशुपालकों को LSD बीमारी से संबंधित पूरी जानकारी से अवगत करानी चाहिए।
  • 8.डीसइन्फेक्सन एवं सफाई उपाय– LSD ग्रसित पशुओं को रखने की जगह एवं उपयोग में लाये गये वाहन को डीसइन्फेक्ट करने हेतु (Ether-20%) (Chloroform, Formalin-1%) (Phenol-2% minimum), (Sodium hypochlorite 2-3%),(Iodine Compound -1:33 dilution) and (Quaternary Ammonium compound 0.5%) का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • 9.गौ जाति वीर्य– LSD से ग्रसित पशुओं के वीर्य को नहीं लिया जाना चाहिए ना ही इनका इस्तेमाल फ्रोजेन सीमेन उत्पादन में किया जाना चाहिए। पूर्व में संकमित पशु का PCR के द्वारा निगेटिव रिपोर्ट आने के उपरान्त ही उस पशु का AI/natural service के लिए उपयोग होना चाहिए।
  • 10.चिकित्सा
  • पशु चिकित्सक की सलाह पर चिकित्सा किया जाना चाहिए तथा 5.7 दिनों तक ।दजपइपवजपब का उपयोग करना चाहिएए ताकि Sके संक्रमण का खतरा न हो।
  • Antihistaminic एवं Anti-inflammatory दवाओं का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • बुखार की स्थिति में पारासिटामोल दिया जाना चाहिए।
  • पशुओं को तरल एवं मुलायम खाद्य पदार्थ दिया जाना चाहिए।
  • त्वचा पर एंटिसेप्टीक दवाओं जिसमे सिल तमचमससमदज की क्षमता हो का उपयोग किया जाना चाहिए।
  • मल्टी विटामिन औषधि का उपयोग किया जाना चाहिए।
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https://hindi.news18.com/news/delhi-ncr/lumpy-skin-disease-here-is-the-traditional-treatment-for-lsdv-infected-cows-by-nddb-dlpg-4451257.html

https://www.pashudhanpraharee.com/lumpy-skin-disease-in-animals/

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