भेड़-बकरियों में होने वाले पीपीआर रोग : रोकथाम व उपचार

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भेड़-बकरियों में होने वाले पीपीआर रोग : रोकथाम व उपचार

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसमे अधिकांश भाग में किसान अपनी आजीविका पूर्ण करने हेतु कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते हैं पशु पालन में अधिकांश गाय, भैंस, बकरी, भेड़, आदि पालते हंै इन सभी में बकरियाँ किसानों के लिए आर्थिक उन्नति पाने का अति उत्तम स्रोत होता है क्योंकि बकरियों को कम लागत एवं कम जगह में आसानी से पाला जा सकता है परंतु बकरी पालन के समय किसानों को बकरियों में होने बाली बीमारियों से ध्यान रखें उन्हीं सभी होने वाली घातक बीमारियों में से एक है पीपीआर जिसे सामान्यत: बकरियों का प्लेग भी कहा जाता है। भेड़-बकरियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ होती हैं, जिसमें से एक पीपीआर रोग भी शम्मिलित है।

पीपीआर (पेस्टिस डि पेटटिस कमीनेंट) एक जानलेवा विषाणु बीमारी है जो कि जुगाली करने वाले छोटे जानवरों में होती है यह बकरी एवं भेड़ में बहुत ही भयानक बीमारी है क्योंकि यह बीमारी बकरियों के आपस में रहने, बैठने एवं खाना खाने से फैलती है।

यह गंभीर बीमारी भेड़-बकरियों को पूर्णतय कमजोर कर देती है। परंतु, अगर आप शुरू से ही पीपीआर रोग का टीकाकरण एवं दवा का प्रयोग करें, तो भेड़-बकरियों को संरक्षित किया जा सकता है। साथ ही, इसकी रोकथाम भी की जा सकती है।

बहुत सारे किसानों और पशुपालकों की आधे से ज्यादा भेड़-बकरियां अक्सर बीमार ही रहती हैं। अधिकांश तौर पर यह पाया गया है, कि इनमें पीपीआर (PPR) बीमारी ज्यादातर होती है। PPR को बकरियों में महामारी’ अथवा बकरी प्लेग’ के रूप में भी जाना जाता है। इसी वजह से इसमें मृत्यु दर सामान्य तौर पर 50 से 80 प्रतिशत होती है, जो कि बेहद ही गंभीर मामलों में 100 प्रतिशत तक बढ़ सकती है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताऐंगे भेड़-बकरियों में होने वाली बीमारियों और उनकी रोकथाम के बारे में।

आपको ज्ञात हो कि पीपीआर एक वायरल बीमारी है, जो पैरामाइक्सोवायरस (Paramyxovirus) की वजह से उत्पन्न होती है। विभिन्न अन्य घरेलू जानवर एवं जंगली जानवर भी इस बीमारी से संक्रमित होते रहते हैं। परंतु, भेड़ और बकरी इस बीमारी से सर्वाधिक संक्रमित होने वाले पशुओं में से एक हैं।

भेड़-बकरियों में इस रोग के होने पर क्या संकेत होते हैं

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इस रोग के चलते भेड़-बकरियों में बुखार, दस्त, मुंह के छाले तथा निमोनिया हो जाता है, जिससे इनकी मृत्यु तक हो जाती है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में बकरी पालन क्षेत्र में पीपीआर रोग से साढ़े दस हजार करोड़ रुपये की हानि होती है। PPR रोग विशेष रूप से कुपोषण और परजीवियों से पीड़ित मेमनों, भेड़ों एवं बकरियों में बेहद गंभीर और घातक सिद्ध होता है। इससे इनके मुंह से ज्यादातर दुर्गंध आना एवं होठों में सूजन आनी चालू हो जाती है। आंखें और नाक चिपचिपे अथवा पुटीय स्राव से ढक जाते हैं। आंखें खोलने और सांस लेने में भी काफी कठिनाई होती है।

कुछ जानवरों को गंभीर दस्त तो कभी-कभी खूनी दस्त भी होते हैं। पीपीआर रोग गर्भवती भेड़ और बकरियों में गर्भपात का कारण भी बन सकता है। अधिकांश मामलों में, बीमार भेड़ व बकरी संक्रमण के एक सप्ताह के भीतर खत्म हो जाते हैं।

रोग के लक्षण

  • पशु को अत्यंत तीव्र बुखार (400-410 से.) तक हो जाता है
  • पशु मुरझाया हुआ दिखाई देता है।
  • पशु चारा खाना व जुगाली करना बंद कर देता है।
  • पशु की चमड़ी सूखी हो जाती है।
  • पशु को लगातार छीकों के साथ नाक एवं मुंह से पानीदार स्राव आने लगता है।
  • आंखें लाल पड़ जाती हंै एवं आँखों की शलेषमा सफेद पड़ जाती है।
  • मुहँ एवं जीभ में छाले पड़ जाते है।
  • पशु के मुंह से मवाद युक्त बदबू आने लगती है।
  • इस बीमारी के चलते पशु को एक-दो दिन में दस्त आने शुरू हो जाते हंै।
  • मुहँ में मवादयुक्त श्राव होने की वजह से पशु को सांस लेने मे तकलीफ होती है।

पीपीआर रोग का उपचार एवं नियंत्रण इस प्रकार करें

पीपीआर की रोकथाम के लिए भेड़ व बकरियों का टीकाकरण ही एकमात्र प्रभावी तरीका है। वायरल रोग होने की वजह से पीपीआर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है। हालांकि, बैक्टीरिया एवं परजीवियों पर काबू करने वाली औषधियों का इस्तेमाल करके मृत्यु दर को काफी कम किया जा सकता है। टीकाकरण से पूर्व भेड़ तथा बकरियों को कृमिनाशक दवा देनी चाहिए। सबसे पहले स्वस्थ बकरियों को संक्रमित भेड़ तथा बकरियों से अलग बाड़े में रखा जाना चाहिए, जिससे कि रोग को फैलने से बचाया जा सके। इसके पश्चात बीमार बकरियों का उपचार शुरू करना चाहिए।

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फेफड़ों के द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को नियंत्रित करने हेतु पशु चिकित्सक द्वारा निर्धारित एंटीबायोटिक्स औषधियों (Antibiotics) का इस्तेमाल किया जाता है। आंख, नाक और मुंह के समीप के घावों को दिन में दो बार रुई से अच्छी तरह साफ करना चाहिए। इसके अतिरिक्त मुंह के छालों को 5% प्रतिशत बोरोग्लिसरीन से धोने से भेड़ और बकरियों को काफी लाभ मिलता है। बीमार भेड़ एवं बकरियों को पौष्टिक, स्वच्छ, मुलायम, नम एवं स्वादिष्ट चारा ही डालना चाहिए। PPR के माध्यम से महामारी फैलने की स्थिति में तत्काल समीपवर्ती शासकीय पशु चिकित्सालय को सूचना प्रदान करें। मरी हुई भेड़ और बकरियों को जलाकर पूर्णतय समाप्त कर देना चाहिए। इसके साथ-साथ बकरियों के बाड़ों और बर्तन को साफ व शुद्ध रखना अत्यंत आवश्यक है।

चिकित्सा –

इस रोग की कोई विशिष्ट चिकित्सा नहीं है। रोग के लक्षणों के आधार पर निम्नानुसार चिकित्सा की जा सकती है-

(क) मुँह के छालों के घोल को 0.1% पौटेशियम परमैग्नेट अथवा 5.0% फिटकरी के घोल से साफ करने के बाद बोरिक एसिड एक भाग तथा ग्लिसरीन आठ भाग (बोरोग्लिसरीन) मिलाकर लगानी चाहिये ।

(ख) दस्तों के लिये इण्डीजीनस दस्त अवरोधक दवा में से किसी एक दवा का प्रयोग करना चाहिये ।

(ग) फ्यूराजोलाडोन बोलस, एमौक्सीसिलीन बोलस, टैट्रासाइक्लिन बोलस, ऑक्सीटैट्रासाइक्लीन बोलस, सल्फा तथा ट्राइमैथोप्रिम बोलस में से किसी एक दवा का प्रयोग करना चाहिये। (आहार नाल में द्वितीयक जीवाणु संक्रमण रोकने के लिये)

(घ) बुखार के लिये ज्वरहरी दवाओं में से किसी एक का प्रयोग करें।

(च) द्वितीयक जीवाणु संक्रमण रोकने के लिये एण्टीबैक्टीरियल दवा; जैसे- पैनिसिलीन्स, क्विनोलोन्स, स्ट्रैप्टोपैनिसिलीन, ऑक्सीटेट्रासाइक्लीन में से किसी एक दवा का प्रयोग करें।

(छ) विटामिन बी काम्पलैक्स में से किसी एक दवा का प्रयोग करें।

(ज) इलैक्ट्रोलाइट इनफ्यूजन में से किसी एक दवा का प्रयोग करें।

(छ) एण्टीहिस्टैमिनिक दवाओं में से किसी एक दवा का प्रयोग करें

रोकथाम एवं बचाव

पीपीआर रोग का उपचार और रोकथाम

  • पीपीआर को रोकने के लिए भेड़ और बकरियों का टीकाकरण ही एकमात्र प्रभावी तरीका है.
  • वायरल रोग होने के कारण पीपीआर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है. हालांकि, बैक्टीरिया और परजीवियों को नियंत्रित करने वाली दवाओं का उपयोग करके मृत्यु दर को कम किया जा सकता है.
  • टीकाकरण से पहले भेड़ और बकरियों को कृमिनाशक दवा देनी चाहिए.
  • सबसे पहले स्वस्थ बकरियों को बीमार भेड़ और बकरियों से अलग बाड़े में रखा जाना चाहिए ताकि रोग को नियंत्रित और फैलने से बचाया जा सके.
  • इसके बाद बीमार बकरियों का इलाज शुरू करना चाहिए.
  • फेफड़ों के द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए पशु चिकित्सक द्वारा निर्धारित एंटीबायोटिक्स औषधियों (Antibiotics) का प्रयोग किया जाता है.
  • आंख, नाक और मुंह के आसपास के घावों को दिन में दो बार रुई से साफ करना चाहिए.
  • इसके अलावा, मुंह के छालों को 5% बोरोग्लिसरीन से धोने से भेड़ और बकरियों को बहुत फायदा होता है.
  • बीमार भेड़ और बकरियों को पौष्टिक, स्वच्छ, मुलायम, नम और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए.
  • PPR के माध्यम से महामारी फैलने की स्थिति में तत्काल नजदीकी शासकीय पशु चिकित्सालय को सूचना दें.
  • मरी हुई भेड़ और बकरियों को जलाकर पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए.
  • साथ ही बाड़ों और बर्तन को शुद्ध रखना बहुत जरूरी है.
  • इस बीमारी की रोकथाम हेतु प्रथम प्रक्रिया इस बीमारी से बचाव है जो कि स्वस्थ बकरी की समय-समय पर निगरानी रखते हुए पीपीआर का टीका लगवाते रहें। बकरियों के रहने की जगह को साफ सुथरा रखें।
  • रोगी बकरी को कभी भी स्वस्थ बकरी के साथ नहीं रखें।
  • यदि कोई बकरी इस रोग से संक्रमित पाई जाती है तो उस बकरी को एक अलग स्थान पर सभी बकरियों से दूर रखें तथा उसके खाने पीने का इंतजाम भी अलग करें।
  • रोगी क्षेत्र की भेड़ व बकरियों के आवागमन पर पूर्ण तरीके से रोकथाम लगा देें।
  • मृत होने वाले पशुओं का एवं उनके संपर्क वाली वस्तुओं का पूर्ण रूप से निस्तारण कर देें।
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Compiled  & Shared by- This paper is a compilation of groupwork provided by the

Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)

Image-Courtesy-Google

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Disclaimer: This blog is vet-approved and includes original content which is compiled after thorough research and authenticity by our team of vets and content experts. It is always advisable to consult a veterinarian before you try any products, pet food or any kind of treatment/medicines on your  livestock/pets, as each livestock/ pet is unique and will respond differently.

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