दुधारू पशुओं का चयन: खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें

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दुधारू पशुओं का चयन: खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातें

दुधारू पशुओं का चयन

पशुपालक की आमदनी दुधारू पशुओं पर निर्भर होती है. अगर पशुओं से अच्छा दूध उत्पादन मिलेगा, तभी पशुपालक को अच्छा मुनाफ़ा मिल पाएगा. ये सब तभी मुमकिन हो पाए, जब पशुपालक दुधारू पशुओं का चुनाव सही तरीके से करेंगे. बता दें कि एक पशुपालक को पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आइए पशुपालक को बताते हैं कि एक अच्छे दुधारू पशुओं को खरीदते समय किन-किन बातों पर ज्य़ादा ध्यान देना चाहिए.

पशुपालक की आमदनी दुधारू पशुओं पर निर्भर होती है. अगर पशुओं से अच्छा दूध उत्पादन मिलेगा, तभी पशुपालक को अच्छा मुनाफ़ा मिल पाएगा. ये सब तभी मुमकिन हो पाए, जब पशुपालक दुधारू पशुओं का चुनाव सही तरीके से करेंगे. बता दें कि एक पशुपालक को पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता और स्वास्थ्य पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. आइए पशुपालक को बताते हैं कि एक अच्छे दुधारू पशुओं को खरीदते समय किन-किन बातों पर ज्य़ादा ध्यान देना चाहिए.

शारीरिक संरचना

पशुपालक को दुधारू पशुओं के शरीरिक संरचना पर विशेष ध्यान देना चाहिए. बता दें कि पशुओं का शरीर आगे से पतला और पीछे से चौड़ा होना चाहिए. इसके साथ ही नथुना खुला हो, जबड़ा मजबूत हो, आंखे उभरी और चमकदार होनी चाहिए. इसके अलावा त्वचा पतली, पूंछ लंबी होनी चाहिए.

दूध उत्पादन की क्षमता

दुधारू पशुओं को खरीदने से पहले 2 से 3 दिन तक अच्छी तरह परख लेना चाहिए. जैसे, पशुओं  का दूध निकालते समय धार सीधी गिरनी चाहिए, साथ ही थन सिकुड़ जाना चाहिए. अयन में दूध की शिराएं उभरी हुई और अच्छी तरह से विकसित दिखाई देनी चाहिए.

आयु

पशुओं की आयु कम से कम 10 से 12  साल की होनी है. पशुओं से तीसरे और चौथे ब्यांत तक दुग्ध उत्पादन चरम सीमा पर रहता है, लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे घट जाता है. ऐसे में दुग्ध उत्पादन व्यवसाय के लिए 2 से 3 दांत वाले यानी कम आयु वाले पशु अधिक लाभकारी माने जाते हैं.

स्वास्थ्य

आप जिस पशु को खरीद रहे हैं, उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए. इसके लिए आप आस-पास के पड़ोसियों से जानकारी ले सकते हैं. अगर पशुओं का टीकाकरण हुआ है, साथ ही पशु अर ज्यादा बीमार नहीं पड़ें हैं, तो आप उन्हें खरीद सकते हैं.

प्रजनन क्षमता

पशुपालक को पशुओं की प्रजनन क्षमता पर विशेष ध्य़ान देना चाहिए, क्योंकि इस पर पशुओं का दूध उत्पादन निर्भर होता है. बता दें कि एक आदर्श दुधारू पशुओं के लिए हर साल में एक बच्चा अवश्य देना चाहिए. ऐसे में आपको पशुओं की प्रजनन क्षमता की जानकारी भी लेनी चाहिए. ध्यान दें कि पशु में किसी प्रकार की कमी न हो. अगर पशु की प्रजनन क्षमता सही न हो, तो कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

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दुधारू पशुओं की पहचान

तिकोने आकार की गाय अधिक दुधारू होती है। ऐसी गाय की पहचान के लिए उसके सामने खड़े हो जाएँ। इससे गाय का अगला हिस्सा पतला और पिछला हिस्सा चौड़ा दिखाई देगा। शरीर की तुलना में गाय के पैर एवं मुंह-माथे के बाल छोटे होने चाहिए। दुधारू पशु की चमड़ी चिकनी, पतली और चमकदार होनी चाहिए। आँखे चमकली, स्पष्ट और दोष रहित होनी चाहिए। अयन पूर्ण विकसित और बड़ा होना चाहिए। थनों और अयन पर पाई जानी वाली दुग्ध शिराएँ जितनी उभरी और टेड़ी-मेडी होंगी पशु उतना ही अधिक दुधारू होगा। दूध दोहन के उपरांतथन को पूरी तरह से सिकुड़ जाना चाहिए। चारों थनों का आकार एवं आपसी दूरी समान होनी चाहिए। गाय/भैंस के पेट पर पाई जाने वाली दुग्ध शिरा जितनी स्पष्ट, मोटी और उभरी हुई होगी पशु उतना ही अधिक दूध देने वाला होगा। दुधारू पशु को खरीदते समय हमेशा दूसरे अथवा तीसरे ब्यांत की गाय/भैंस को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। क्योंकि इस दौरान दुधारू पशु अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप खुलकर दूध देने लगते हैं और यह क्रम लगभग सातवें ब्यांत तक चलता है। इसके पहले अथवा बाद में दुधारू पशु के दूध देने की क्षमता कम रहती है। दूसरे-तीसरे ब्यांत के पशु को खरीदते समय प्रयास यह होना चाहिए कि गाय/भैंस उस दौरान एक माह की ब्याही हुई हो और उसके नीचे मादा बच्चा हो। ऐसा करने से उक्त पशु के दूध देने की क्षमता का पूरा ज्ञान होने के साथ ही मादा पड़िया अथवा बछडी मिलने से भविष्य के लिए एक गाय/भैंस और प्राप्त हो जाती है, जोकि भविष्य की पूंजी है। दुधारू पशु को खरीदते समय लगातार तीन बार दोहन करके देख लें। क्योंकि व्यापारी चतुराई से काम लेते हैं और आपको पशु खरीदते समय मात्र एक बार सुबह अथवा शाम को ही दोहन करके दिखाएँगे। ऐसा करने से आप को प्रतीत होगा कि यह पशु अधिक दूध देने वाला है, लेकिन सच्चाई यह नहीं होती है। व्यापारी एक समय का दोहन नहीं करता अथवा कम दुग्ध दोहन करता है जिससे दूध की मात्रा अयन में रह जाती है। इस कारण लगता है कि गाय/भैंस अधिक दूध देने वाली है। इसलिए दुधारू पशु की खरीददारी करते समय तीन बार लगातार दुग्ध दोहन अपने सामने अवश्य करा लेना चाहिए।

दुधारू पशु का चयन करते समय उसकी सही आयु का पता लगाना आवश्यक होता है। पशु की सही आयु का पता लगाने के ली उसके दांतों को देखा जाता है। मुंह की निचली पंक्ति में स्थाई दांतों के चार जोड़े होते हैं। ये सभी जोड़े एकसाथ नहीं निकलते हैं। दांत का पहला जोड़ा पौने दो साल की उम्र में, दूसरा जोड़ा ढाई साल की उम्र में, तीसरा जोड़ा तीन साल के अंत में और चौथा जोड़ा चौथे साल के अंत की उम्र में निकलता है। इस प्रकार से दांतों को देखकर नई और पुरानी गाय/भैंस की सटीक पहचान की जा सकती है। औसतन एक गाय/भैंस 20-22 वर्षो तक जीवित रहती है।  गाय/भैंस की उत्पादकता उसकी उम्र के साथ-साथ घटती चली जाती है। दुधारू पशु अपने जीवन के यौवन और मध्यकाल में अच्छा दुग्ध उत्पादन करता है। इसलिए दुधारू पशु का चयन करते समय उसकी उम्र की सही जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है।

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भैंस के सींग के छल्ले भी आयु का अनुमान लगाने में सहायक होते हैं। प्रथम छल्ला सींग की जड़ पर प्राय: तीन वर्ष की आयु में बनता है। इसके बाद प्रतिवर्ष एक-एक छल्ला और आता रहता है। सींग पर छल्लों की संख्या में दो जोड़कर भैंस की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु देखने में आया है कि कुछ लालची लोग अधिक रुपया कमाने के चक्कर में दुधारू पशु खरीददार को धोखा देने के लिए रेती से छल्लों को रगड़ देने हैं। इसलिए यह विधि विश्वसनीय नहीं कही जा सकती है। दूध देने वाले दुधारू गाय/भैंस में सींग पशु की नस्ल की पहचान का मुख्य चिन्ह होते हैं। यद्यपि सींग के होने या नहीं होने का पशु के दुग्ध उत्पादन की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता है। भैंस की मुर्रा नस्ल आज भी अपने मुड़े सींगों के कारण ही पहचानी जाती है।

पशु की सेहत से आयु का अनुमान

पशु की सेहत देखकर पशु की आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। बूढ़े पशु की अस्थि सन्धियाँ कमजोर हो जाती है और पशु धीमी गति से चलता है। उसकी त्वचा ढीली हो जाती है और मुंह से दांत गिर जाते हैं। बूढ़े पशु की आँख के पीछे तथा कान के बीच के टेम्पोरल क्षेत्रों में गड्ढा बन जाता है। इसके विपरीत युवा अवस्था की भैंसों व गायों का शरीर सुंदर, सुडौल, चुस्त, चमकदार त्वचा तथा चर्बी कम होती है। अच्छी खुराक होने पर भी बूढ़े पशु और स्वस्थ पशु में अंतर कर पाना संभव नहीं हो पाता है। कई बार व्यापारी ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाकर दूध दोहन कराते हैं। इससे बचने के लिए जब भी दुग्ध दोहन कराए तो अपने सामने कम से कम आधा घंटा व्यापारी से बात करने में गुजार दें फिर इसके बाद ही दोहन कराएं।

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खुले बाजार, मेलों, हाट पेंठ आदि से पशुओं को खरीदने में कभी-कभी पशु की पहचान करने में धोखा हो जाता है। अत: खरीदते समय उक्त स्थान पर यदि गर्भ इ जांच करने वाला कोई जानकार या पशु चिकित्सक हो तो उससे गर्भ जाँच करा लेना चाहिए। भैंस के सींगों का बारीकी से निरिक्षण करलें कि कहीं दरातींसे घिसे हुए तो नहीं हैं। त्वचा की चमक पर धोखा खाने से पहले देख लेना चाहिए कि भैंस पर चमक पैदा करने के काला तेल तो नहीं चुपड़ दिया गया है। कई बार चालाक किस्म के लोग बकरी, गाय/भैंस के नीचे किसी दूसरी अनुपयोगी गाय/भैंस का नवजात लवारा बाँध देते हैं तथा उसे ताज़ी ब्याही बताकर अधिक कीमत में बेचकर धोखा दे देते है। इससे बचने के लिए बच्चे को उसकी माँ के नीचे लगाकर देखना चाहिए। दूध बढ़ाने के लिए चीनी, गुलकंद, जलेबी की चासनी, ओवर फीडिंग करके भी व्यापारी दूध की मात्रा में वृद्धि करके दिखा देते हैं। अत: इसकी पहचान अनुभवी पशुपालकों के माध्यम से अथवा संभव हो तो तीन-चार दिन नजर रखकर की जा सकती है। भैंस के रंगे खुर तथा काजल लगी आँखों  को सफेद कपड़े से पोछकर पता किया जा सकता है।

दुधारू गाय/भैस की खरीद करते समय अयन और थनों की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए, जिससे थनैला बीमारी के बारे में भली प्रकार से पता चल सके। यदि थन में गाँठ, सूजन आदि के लक्षण हैं तो थनैला हो सकता है। ऐसे पशु को भूलकर भी नही खरीदना चाहिए। फूल देने वाली गाय/भैंस की जांच हेतु उसे ढलान वाले स्थान पर पीछे का हिस्सा करके बिठाकर देखने से पता लगाया जा सकता है। कई बार व्यापारी कमजोर पशु में तथा उसके अयन में हवा भरवा देते हैं, जिससे वह हष्टपुष्ट, गर्भवती अथवा अधिक दूध देने वाली प्रतीत हो सके। ऐसे पशु के पेट, अयन आदि फूले लग रहे अंगों पर दबाव देकर देख लेना चाहिए। हमेशा ऐसे पशुओं को खरीदने का प्रयास करना चाहिए जिनका जन्म, प्रजनन आदि से लेकर उत्पादन आदि का रिकार्ड रखा गया हो। लेकिन ऐसा रिकार्ड केवल सरकारी फार्मों, कामर्शियल डेरी फार्मो एवं प्रजनन संबंधी शोध केन्द्रों पर ही रखा जाता है। अत:अम्ल में लाकर दुधारू पशुओं का चयन करेंगे तो अधिक लाभ कमाने के साथ ही धोखा खाने से बच सकते हैं।

सभार - लाइवस्टोक इंस्टीट्यूट आफ ट्रेंनिंग एंड डेवलपमेंट (LITD), टेक्निकल टीम

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